कार्बन उत्सर्जन: महामारी के कारण हो रही कमी हुई बंद, इस साल फिर बढ़ेगा
क्या है खबर?
ग्लासगो में जुटे वैश्विक नेताओं के वादों और बयानों के बाद अब गंभीर चेतावनी सामने आई है।
अंतरराष्ट्रीय शोध समूह द ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट का कहना है कि महामारी के कारण कार्बन उत्सर्जन में आने वाली कमी अब बंद हो चुकी है और इस साल से इसमें दोबारा बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
अनुमान है कि पिछले साल की तुलना में इस साल कार्बन उत्सर्जन 4.9 प्रतिशत बढकर 2019 के स्तर के पास पहुंच जाएगा।
कार्बन उत्सर्जन
पिछले साल 1.9 बिलियन टन की हुई थी कटौती
कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था का पहिया थम गया था। इससे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी देखी गई थी।
2019 में जहां 36.7 बिलियन टन कार्बन का उत्सर्जन हुआ था, वहीं 2020 में यह गिरकर 34.8 बिलियन हो गया था। एक साल में उत्सर्जन में 1.9 बिलियन टन (5.4 प्रतिशत) की कटौती देखने को मिली थी।
इस साल कार्बन उत्सर्जन फिर से बढ़कर 36.4 बिलियन टन होने की उम्मीद है।
जानकारी
भारत में अधिक होगा उत्सर्जन
भारत में इस साल पिछले साल की तुलना में 12.6 प्रतिशत अधिक कार्बन उत्सर्जन होगा। इसका मतलब होगा कि 2019 की तुलना में इस साल भारत से 4.4 प्रतिशत अधिक कार्बन वातावण में फैलेगा। महामारी से पहले ऐसी ही बढ़ोतरी देखने को मिलती थी।
जानकारी
अगले साल भी कार्बन उत्सर्जन में इजाफे का अनुमान
द ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े उत्सर्जकों के लिए 2021 में कार्बन उत्सर्जन महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच जाएगा। इस रिपोर्ट में केवल कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को शामिल किया गया है और बाकी ग्रीनहाउस गैसों को नहीं जोड़ा गया है।
रिपोर्ट में बताया गया है अगर सड़क और हवाई परिवहन महामारी से पहले के स्तर पर पहुंचता है तो अगले साल भी कार्बन उत्सर्जन में इजाफा जारी रहेगा।
जलवायु परिवर्तन
नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य करने के लिए बड़ी कटौती जरूरी
अगर इसी गति से वातावरण में कार्बन घुलता रहेगा तो 11 सालों बाद धरती के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस और 32 सालों में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाएगी।
रिपोर्ट के अनुसार, अगर दुनिया को 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना है तो पिछली साल की तरह उत्सर्जन में कटौती करने की जरूरत होगी।
बता दें कि अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने 2050 तक ऐसा लक्ष्य रखा है।
जानकारी
क्या होता है नेट जीरो उत्सर्जन?
नेट जीरो उत्सर्जन का मतलब है कि वातावरण में केवल उतनी ग्रीनहाउस गैसें छोड़ी जाएं जितनी पेड़ या नई टेक्नोलॉजी आदि सोख सकें, यानि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़े नहीं।
कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरिनेटेड गैस मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं। कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग करने पर वातावरण में ये गैसें छूटती हैं। यातायात से लेकर उद्योगों तक में इन ईंधनों का उपयोग होता है।
जलवायु परिवर्तन
क्यों अहम है नेट जीरो उत्सर्जन?
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर मानवता को जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों से बचाना है तो वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखना होगा।
इसके लिए 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना अनिवार्य है। अगर ऐसा नहीं होता तो जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा।
इसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए COP26 हो रहा है जो 14 नवंबर तक चलेगा।