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    जलवायु परिवर्तन: क्या है नेट जीरो उत्सर्जन और ये क्यों अहम है?

    जलवायु परिवर्तन: क्या है नेट जीरो उत्सर्जन और ये क्यों अहम है?
    लेखन मुकुल तोमर
    Nov 02, 2021, 05:54 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जलवायु परिवर्तन: क्या है नेट जीरो उत्सर्जन और ये क्यों अहम है?
    क्या है नेट जीरो उत्सर्जन और ये क्यों अहम है?

    भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (COP26) में भारत के 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का ऐलान किया। उनके इन ऐलान से सुस्त चल रहे इस सम्मेलन में हलचल बढ़ गई है और अन्य देशों पर भी नेट जीरो को लेकर महत्वाकांक्षी ऐलान करने का दबाव बढ़ गया है। आखिर ये नेट जीरो उत्सर्जन है क्या और ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है, आइए जानते हैं।

    क्या है नेट जीरो उत्सर्जन?

    नेट जीरो उत्सर्जन का मतलब है कि वातावरण में केवल उतनी ग्रीनहाउस गैसें छोड़ी जाएं जितनी पेड़ या नई टेक्नोलॉजी आदि सोख सकें, यानि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़े नहीं। कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरिनेटेड गैस मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं। कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग करने पर वातावरण में ये गैसें छूटती हैं। यातायात से लेकर उद्योगों तक में इन ईंधनों का उपयोग होता है।

    उदाहरण से समझिए

    अगर कोई कंपनी जितना कार्बन पैदा करती है, साथ ही इतने पेड़ या कोई सयंत्र लगा देती है जिससे वह सारा कार्बन सोख सके, तो उसका नेट उत्सर्जन जीरो हो जाएगा। वहीं पैदा करने से ज्यादा कार्बन सोखने पर नेट उत्सर्जन नेगेटिव हो जाएगा।

    क्यों जरूरी है ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम करना?

    जब वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा अधिक हो जाती है तो सूर्य की गर्मी धरती पर आ तो जाती है, लेकिन इन गैसों के "कवच" के कारण वातावरण से निकल नहीं पाती, जिससे धरती का तापमान बढ़ने लगता है। इसे ग्रीनहाउस इफेक्ट के नाम से जाना जाता है और ये ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा कारण है। ग्लोबल वॉर्मिंग को नियंत्रित करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना जरूरी है।

    कितने प्रकार का होता है नेट जीरो उत्सर्जन?

    नेट जीरो उत्सर्जन को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- राष्ट्रीय और वैश्विक। राष्ट्रीय नेट जीरो का मतलब कोई भी देश जितना उत्सर्जन करे, उतनी ही ग्रीनहाउस गैसों को वातावरण से हटाए। वैश्विक नेट जीरो का मतलब वैश्विक स्तर पर उतनी ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो, जितना पेड़ और टेक्नोलॉजी सोख सकें। वैश्विक नेट जीरो एक नई संकल्पना है जिसे आगे बढ़ाने में भारत का एक अहम योगदान रहा है।

    दुनिया में केवल दो देशों का नेट उत्सर्जन निगेटिव

    पूरी दुनिया में केवल दो देश- भूटान और सूरीनाम, ऐसे हैं जिनका नेट उत्सर्जन निगेटिव है। जिसकी वजह इन देशों की कम आबादी और हरियाली है। सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के मामले में भारत दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है।

    कैसे हासिल किया जा सकता है नेट जीरो?

    नेट जीरो हासिल करने के लिए वातावरण से कार्बन को हटाना जरूरी है और इस प्रक्रिया को कार्बन डाईऑक्साइड रिमूवल (CDR) कहा जाता है। CDR तीन प्रकार के होते हैं- बायोलॉजिक, टेक्नोलॉजिकल और जियो-केमिकल। बायोलॉजिक CDR में बड़ी संख्या में पेड़ लगाना और सतत वन प्रबंधन शामिल हैं। टेक्नोलॉजिकल में कार्बन को स्टोर करने वाली तकनीकें और जियो-केमिकल में महासागरों की उत्पादन बढ़ाना शामिल है ताकि जीव-जंतुओं में कार्बन ट्रैप हो सके।

    क्यों अहम है नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य?

    विशेषज्ञों के अनुसार, अगर मानवता को जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों से बचाना है तो वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखना होगा। इसके लिए 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना अनिवार्य है। अगर ऐसा नहीं होता तो जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा। इसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए COP26 हो रहा है जो 14 नवंबर तक चलेगा।

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