क्यों खास है NASA का नया सैटेलाइट कैपस्टोन? भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में करेगा मदद
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA की ओर से बीते दिनों माइक्रोवेव ओवन के आकार का क्यूब सैटेलाइट कैपस्टोन लॉन्च किया गया है। करीब 55 पाउंड (25 किलोग्राम) वजन वाले कैपस्टोन को बेहद अनोखे गोलाकार लूनर ऑर्बिट की टेस्टिंग के लिए डिजाइन किया गया है। CAPSTONE का पूरा नाम सिस्लूनर ऑटोनोमस पोजीशननिंग सिस्टम टेक्नोलॉजी ऑपरेशंस एंड नेविगेशन एक्सपेरिमेंट है। बता दें, यह सैटेलाइट भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में भी मददगार साबित हो सकता है।
बुधवार को लॉन्च किया गया सैटेलाइट
सैटेलाइट का लॉन्च बुधवार को रॉकेट लैब लॉन्च कॉम्प्लेक्स 1 से कंपन के इलेक्ट्रॉन रॉकेट की मदद से किया गया। यह सैटेलाइट एक खास ऑर्बिट में भेजा जा रहा है, जो भविष्य के मिशन के लिए टेस्टिंग का काम करेगा। कैपस्टोन का ऑर्बिट नासा के आर्टेमिस प्रोग्राम के टेस्टिंग प्रोग्राम की तरह होगा और इस प्रोग्राम का मून-ऑर्बिटिंग आउटपोस्ट तय करेगा। बता दें, आर्टेमिस मिशन के साथ NASA एक बार फिर इंसानों को चांद पर भेजने वाली है।
सैटेलाइट के जिम्मे सुरक्षित रास्ता खोजने का काम
गेटवे का रास्ता खोजने गए कैपस्टोन सैटेलाइट का मकसद भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को सुरक्षित बनाना है। सैटेलाइट मौजूदा इनोवेटिव नेविगेशन टेक्नोलॉजी को वैलिडेट करने के अलावा हेलो-शेप वाले ऑर्बिट से जुड़ी संभावनाओं की सटीकता को परखना है। दरअसल, नासा ने एक ऐसे ऑर्बिट का पता लगाया है, जो इसके लॉन्ग-टर्म मिशन्स का आधार बन सकता है। सैटेलाइट को मौजूदा नेविगेशन सिस्टम की सटीकता मापने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसलिए खास है नए सैटेलाइट का ऑर्बिट
कैप्स्टोन सैटेलाइट को जिस ऑर्बिट में भेजा गया है, उसे नियर-रेक्टिलाइनर हेलो ऑर्बिट (NRHO) कहते हैं। यह ऑर्बिट उन ऑर्बिट्स से अलग होता है, जिनमें बाकी सैटेलाइट्स चक्कर लगाते हैं। आसान भाषा में समझें तो यह उस संतुलित बिंदु पर होता है, जहां पृथ्वी और चांद दोनों का गुरुत्वाकर्षण लगभग एक जैसा होता है। इस तरह ऑर्बिट में भेजे गए सैटेलाइट्स को बिना अतिरिक्त ऊर्जा खर्च किए लंबे वक्त तक स्थिर रखा जा सकेगा।
चांद के उत्तरी ध्रुव से होकर गुजरेगा सैटेलाइट
कैपस्टोन सैटेलाइट NRHO में जाने के बाद चांद के उत्तरी ध्रुव के करीब 1,600 किलोमीटर की रेंज में उड़ान भरेगा। यह सैटेलाइट चांद के दक्षिणी ध्रुव से इसकी कक्षा की सबसे ज्यादा दूरी 70,000 किलोमीटर से गुजरेगा। यह स्पेसक्राफ्ट हर साढ़े-छह दिनों में यह सर्कल पूरा करेगा और छह महीने तक तय ऑर्बिट में चक्कर लगाते हुए डायनमिक्स की स्टडी करेगा। अमेरिकी एजेंसी ने कहा है कि आगे भी कैप्स्टोन के साथ क्यूबसैट्स के डेडिकेटेड लॉन्च किए जाएंगे।
क्या है NASA का आर्टेमिस मिशन?
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी एक बार फिर इंसान को चांद पर भेजना चाहती है। इस मिशन को आर्टेमिस मिशन नाम दिया गया है और इसके लिए एजेंसी ने अब तक का सबसे शक्तिशाली रॉकेट तैयार किया है। इसे स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) नाम से जाना जा रहा है और यह आर्टेमिस मिशन के स्पेसक्राफ्ट पार्ट को चांद पर ले जाएगा। बता दें, आर्टेमिस 1 मिशन के अगस्त में लॉन्च होने का अनुमान है।
न्यूजबाइट्स प्लस
कैपस्टोन मिशन सफल होता है तो साफ हो जाएगा कि भविष्य में अंतरिक्ष में जाने वाले स्पेसक्राफ्ट धरती पर मौजूद ट्रैकिंग सिस्टम की मदद लिए अपनी लोकेशन का पता कर सकेंगे। यानी यह अंतरिक्ष में नेविगेशन को बदल देगा।