चीन के चंद्रमा मिशन से कैसे अलग है भारत का चंद्रयान-2, विस्तार से जानिये
क्या है खबर?
भारत ने चांद की सतह पर उतरने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने सोमवार दोपहर 2.43 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 को लॉन्च कर दिया है।
लॉन्चिंग के 48वें दिन यह चांद की सतह पर पहुंच जाएगा। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन चांद की सतह पर पहुंच चुके हैं। चीन ने इस साल की शुुरुआत में चेंग'ए 4 (Chang'e 4) मिशन भेजा था।
जानकारी
चीन के मिशन से कितना अलग है भारत का मिशन
भारत के चंद्रयान-2 और चीन के Chang'e 4 की अकसर तुलना होती है। Chang'e 4 को 3 जनवरी को लॉन्च किया गया था, वहीं चंद्रयान-2 22 जुलाई को लॉन्च हुआ। आइये, जानते हैं कि इन दोनों मिशन में क्या-क्या समानताएं और अंतर हैं।
Chang'e 4
क्या था चीन का Chang'e 4 मिशन
चंद्रमा से जुड़ी जानकारी हासिल करने के लिए चीन एक सीरीज के तहत मिशन भेज रहा है।
Chang'e 4 इस सीरीज का चौथा मिशन था। इससे पहले Chang'e 1 को 2007, Chang'e 2 को 2010 और Chang'e 3 को 2013 में लॉन्च किया गया था।
इस स्पेसक्राफ्ट में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर को भेजा गया था। लैंडर को पावर देने के लिए रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (RTG) का इस्तेमाल किया गया था।
इसे चंद्रमा के ऐटकेन बेसिन में उतारा गया था।
चंद्रयान-2
क्या है भारत का चंद्रयान-2 मिशन
भारत का चंद्रयान-2 2008 में भेजे गए चंद्रयान-1 का अगला वर्जन है। चंद्रयान-2 मिशन में एक ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान शामिल है। लैंडर का नाम ISRO के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।
चांद की सतह पर पहुंचने के बाद रोवर चांद की सतह पर पानी की तलाश करेगा और वहां से तस्वीरें भेजेगा।
लैंडर और रोवर दोनों 14-14 दिन तक एक्टिव रहेंगे, जबकि ऑर्बिटर एक साल तक चंद्रमा के चक्कर लगाएगा।
मकसद
क्या था Chang'e 4 भेजने का मकसद
चांद की सतह और चट्टानों की केमिकल कंपोजिशन का पता लगाना।
चांद की सतह के तापमान के बारे में जानकारी जुटाना।
एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेशन के लिए Chang'e 4 में लो-फ्रीक्वैंसी रेडियो लगाया गया था।
चांद की सतह का निरीक्षण करना और मिनरल कंपोजिशन का पता लगाने और चंद्रमा की दूसरी तरफ के पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए न्यूट्रॉन रेडिएशन और न्यूट्रल एटम्स को मापना।
चांद की गतिविधियों का चांद के बनने की प्रक्रिया का पता लगाना।
चंद्रयान-2
ये हैं चंद्रयान-2 का मकसद
चंद्रयान-2 का पहला मकसद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की क्षमता हासिल करना है।
चांद की सतह का अध्ययन करना।
चांद के आयनमंडल में इलेक्ट्रॉनों की डेन्सिटी का अध्ययन करना, जो वायुमंडल का सबसे ऊपरी भाग है।
साथ ही ISRO चंद्रयान-2 के सहारे चांद की सतह पर मैग्निशियम, कैल्शियम जैसे खनिज तत्वों को खोजने, पानी की मौजूदगी को तलाशने और चांद की बाहरी परत की जांच की कोशिश करेगा।
ट्विटर पोस्ट
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग का वीडियो
#WATCH: GSLVMkIII-M1 lifts-off from Sriharikota carrying #Chandrayaan2 #ISRO pic.twitter.com/X4ne8W0I3R
— ANI (@ANI) July 22, 2019
अंतर
चंद्रयान-2 चीन के Chang'e 4 से कैसे अलग है?
चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर है जो चांद के चारों ओर चक्कर लगाएगा, जबकि Chang'e-4 में एक रीले सैटेलाइट इस्तेमाल किया गया था, जो अंतरिक्ष में एक खाली जगह के चक्कर लगा रहा था।
Chang'e-4 में कुल चार पेलोड्स थे- रीले सैटेलाइट, ऑर्बिटिंग माइक्रोसैटेलाइट, लैंडर और रोवर जबकि चंद्रयान में ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर समेत कुल तीन पेलोड्स हैं।
Chang'e-4 के पेलोड्स जर्मनी, स्वीडन और नीदरलैंड में बने थे, जबकि चंद्रयान-2 को पूरी तरह भारत में विकसित किया गया है।
अंतरिक्ष की दौड़
अंतरिक्ष की दौड़ में साथ-साथ भारत और चीन
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत और चीन एक-दूसरे का मुकाबला करने में लगे हैं। चंद्रयान-2 के बाद भारत गगनयान, शुक्र ग्रह और मंगल पर दूसरे मिशन की तैयारी शुरू करेगा।
चीन ने 2018 में 38 लॉन्चिंग के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किया था।
भारत और चीन दोनों ने स्वदेशी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) तैयार कर लिए हैं।
अंतरिक्ष के लिए बजट के मामले में चीन अभी भी भारत से काफी आगे है।