क्या है डायरेक्ट-टू-मोबाइल (D2M) टेक्नोलॉजी? इंटरनेट के बिना करेगी काम
क्या है खबर?
दूरसंचार विभाग और भारत की पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टर प्रसार भारती एक नई टेक्नोलॉजी पर विचार कर रहे हैं।
इस डायरेक्ट-टू-मोबाइल टेक्नोलॉजी के साथ बिना इंटरनेट की जरूरत के वीडियो और दूसरा मल्टीमीडिया कंटेंट ब्रॉडकास्ट किया जा सकेगा।
माना जा रहा है कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पब्लिक सर्विस अनाउंसमेंट्स और दूसरे मेसेजेस भेजने के लिए किया जा सकेगा।
D2M ब्रॉडकास्टिंग के साथ बेहतर ब्रॉडबैंड और स्पेक्ट्रम यूटिलाइजेशन की उम्मीद की जा रही है।
टेक्नोलॉजी
क्या है डायरेक्ट-टू-मोबाइल ब्रॉडकास्टिंग?
नई टेक्नोलॉजी को ब्रॉडबैंड और ब्रॉडकास्ट को मिलाकर तैयार की गई है।
जैसे पुराने डिजिटल टीवी में सिग्नल्स भेजे जाते थे, उसी तरह मोबाइल फोन्स पर भी सिग्नल भेजे जा सकते हैं।
यह टेक्नोलॉजी ऐसे ही काम करेगी, जैसे अभी स्मार्टफोन्स में FM रेडियो चैनल्स सुने जा सकते हैं।
D2M के साथ मल्टीमीडिया कंटेंट भी सीधे फोन्स में बीम किया जा सकेगा और किसी थर्ड-पार्टी की जरूरत भी नहीं होगी।
जरूरत
इसलिए इस्तेमाल की जाएगी D2M टेक्नोलॉजी
नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ना सिर्फ नागरिकों को जरूरी जानकारी देने के लिए सरकार की ओर से किया जा सकता है, बल्कि अफवाहों और फेक न्यूज को फैलने से रोकने में भी इसकी मदद ली जा सकती है।
साथ ही आपातकालीन स्थिति में अलर्ट्स भेजकर जान-माल का नुकसान होने से रोका जा सकता है।
इससे जुड़ी अच्छी बात यह है कि वीडियो मेसेजेस को बिना इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल किए और बफरिंग के दिखाया जा सकेगा।
संभावना
मौजूदा प्लेटफॉर्म्स की जगह ले सकती है D2M
ग्राहकों के लिए नई टेक्नोलॉजी फायदेमंद हो सकती है और मौजूदा प्लेटफॉर्म्स की जगह ले सकती है।
अभी वीडियो ऑन डिमांड (VoD) और ओवर द टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म्स इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल करते हैं।
वहीं, D2M में इंटरनेट की जरूरत नहीं पड़ती और यह ग्रामीण क्षेत्रों में भी काम करेगी।
यानी कि स्लो कनेक्टिविटी जैसी दिक्कतों का सामना यूजर्स को नहीं करना पड़ेगा। हालांकि, आधिकारिक रूप से इसका इस्तेमाल प्राइवेट कंपनियों ने नहीं शुरू किया है।
फायदा
टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को भी मिलेगा फायदा
नई टेक्नोलॉजी का फायदा टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को इस तरह मिलेगा कि वे वीडियो ट्रैफिक को उनके मोबाइल नेटवर्क से हटा सकेंगे।
इस तरह उनके पास सेवाएं देने के लिए ज्यादा मोबाइल स्पेक्ट्रम होंगे।
बाकी मोबाइल स्पेक्ट्रम्स के साथ बैंडविद फ्री होने का फायदा यह होगा कि कम कॉल ड्रॉप्स देखने को मिलेंगी और डाटा स्पीड्स बेहतर होंगी।
प्राइवेट कंपनियां अगले कुछ महीनों में इसकी टेस्टिंग शुरू कर सकती हैं।
शुरुआत
सरकार की ओर से की गई है शुरुआत
दूरसंचार विभाग (DoT) ने इस टेक्नोलॉजी से जुड़ी टेस्टिंग के लिए एक कमेटी बनाई है।
DoT सेक्रेटरी के राजाराम ने बताया है कि मोबाइल और ब्रॉडकास्ट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम बैंड दिए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, "बैंड 526-582 MHz को मोबाइल और ब्रॉडकास्ट सेवाओं के साथ काम करने के लिए रखा गया है। इस बैंड का इस्तेमाल सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से टीवी ट्रांसमिशन के लिए किया जाएगा।"
जानकारी
मोबाइल ऑपरेटर्स को साथ लाने की चुनौती
प्रसार भारती के CEO शशि शेखर वामपति का कहना है कि शुरुआत में महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर्स और मोबाइल ऑपरेटर्स को साथ लाना बड़ी चुनौती होगा। इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और रेग्युलेशंस में बदलाव करने पड़ सकते हैं।