
वोडाफोन-आइडिया के डूबने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या और कितना असर होगा?
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा टेलीकॉम कंपनियों को सरकार का बकाया चुकाने का आदेश देने के बाद वोडाफोन-आइडिया पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है।
कंपनी को सरकार को लगभग 53,000 करोड़ रुपये चुकाने हैं और उसका कहना है कि अगर सरकार उसे किश्तों में बकाया चुकाने का विकल्प नहीं देती तो उसे अपना काम बंद करना पड़ेगा।
अगर वोडाफोन-आइडिया बंद होती है तो इसका टेलीकॉम सेक्टर और देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ सकता है, आइए जानते हैं।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से शुरू होता है मामला
टेलीकॉम कंपनियों को अपने राजस्व (AGR) का एक हिस्सा लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम शुल्क के तौर पर सरकार को देना होता है।
कंपनियों और दूरसंचार विभाग (DoT) के बीच AGR की परिभाषा को लेकर विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर सुनवाई हुई थी।
अक्टूबर, 2019 में अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने DoT की परिभाषा को सही बताया और टेलीकॉम कंपनियों को सरकार को बकाया रकम अदा करने का आदेश दिया।
बकाया
सरकार के कंपनियों पर 1.47 लाख करोड़ रुपये बकाया
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ टेलीकॉम कंपनियों ने पुनर्विचार याचिका दायर की जिसे कोर्ट ने 14 फरवरी को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कंपनियों को तत्काल सरकार का बकाया चुकाने को कहा।
सभी कंपनियों पर मिलाकर सरकार के लगभग 1.47 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं जिसमें सबसे अधिक 53,000 करोड़ रुपये वोडाफोन-आइडिया पर बकाया हैं। वहीं भारती एयरटेल पर लगभग 21,000 करोड़ रुपये बकाया हैं।
जानकारी
वोडफोन ने कहा- एक साथ नहीं चुका सकते सारा बकाया
सोमवार को वोडाफोन ने सरकार को 2,500 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। लेकिन कंपनी का कहना है कि अगर सरकार उसे किश्तों में बकाया रकम का भुगतान करने का विकल्प नहीं देती तो उसे भारत में अपना कार्य बंद करना पड़ेगा।
असर
वोडाफोन के डूबने का अर्थव्यवस्था पर होगा बड़ा असर
लगातार घाटे में जा रही वोडाफोन अगर बंद होती है तो इसका पहले से ही मंदी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है।
वोडाफोन पर बैंकों का करीब 2.2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और अगर ये दिवालिया होती है तो इससे बैंकों को बड़ा नुकसान होगा।
पहले ही कई कंपनियों के कर्ज न चुकाने के कारण संकट में चल रहे बैंकिंग सेक्टर के लिए ये एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
राजकोषीय घाटा
सरकार की कमाई में होगी एक लाख करोड़ रुपये की कमी
विशेषज्ञों के अनुसार, वोडाफोन के दिवालिया होने और बैंकों का कर्ज न चुकाने पर भारत का राजकोषीय घाटा 40 बेसिस पॉइंट बढ़ सकता है।
राजकोषीय घाटे में 40 बेसिस पॉइंट की वृद्धि का मतलब सरकार की कमाई में करीब एक लाख करोड़ रुपये की कमी है।
ये मोदी सरकार के लिए समस्याओं को और बढ़ा देगा जो पहले से ही दशकों में पहली बार डायरेक्ट टैक्स में कमी का सामना कर रही है।
जानकारी
वोडाफोन के 13,000 कर्मचारी होंगे बेरोजगार
वोडाफोन के बंद होेने पर सरकार के सामने रोजगार के क्षेत्र में भी सवाल खड़े होंगे। इस समय वोडाफोन में 13,000 से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं और अगर कंपनी बंद होती है तो इन सभी को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।
असर
मार्च के अंत में 5G की नीलामी पर भी पड़ सकता है असर
वोडाफोन के डूबने का असर टेलीकॉम क्षेत्र पर भी पड़ेगा।
उसके प्रतिस्पर्धा से हटने के बाद टेलीकॉम क्षेत्र में केवल दो कंपनियां, एयरटेल और रिलायंस जियो, रह जाएंगी और इसका असर मार्च के अंत में 5G स्पेक्ट्रम के लिए होने वाली नीलामी पर पड़ेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वोडाफोन डूबती है तो इससे 5G के क्षेत्र में निवेश करने की इच्छुक कंपनियों के उत्साह में कमी आएगी जिसके कारण नीलामी में सरकार को कम कमाई हो सकती है।
कड़ी प्रतिस्पर्धा
पिछले दो साल में बंद हो चुकी हैं दो टेलीकॉम कंपनियां
बता दें कि अगर वोडाफोन-आइडिया डूबती है तो पिछले दो सालों में डूबने वाली तीसरी ऐसी टेलीकॉम कंपनी होगी।
इससे पहले जियो के आने के बाद टेलीकॉम क्षेत्र में बढ़ी प्रतिस्पर्धा के कारण रिलायंस कम्युनिकेशन और एयरसेल को अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ी थी।
इसी प्रतिस्पर्धा के कारण 31 अगस्त, 2018 को ब्रिटेन की वोडाफोन और भारत की आइडिया का विलय हो गया था।
आगे का रास्ता
राहत योजना पर विचार कर रही है सरकार
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए सरकार वोडाफोन को बचाने के लिए तमाम विकल्पों पर विचार कर रही है।
अधिकारियों के अनुसार, दूरसंचार मंत्रालय लगातार प्रधानमंत्री कार्यालय के संपर्क में बना हुआ है।
उन्होंने बताया कि सरकार ऐसी राहत योजना तैयार कर रही है जिससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन न हो।
इसे 17 मार्च को होने वाली अगली सुनवाई में कोर्ट के सामने पेश किया जा सकता है।
जानकारी
कोर्ट से कंपनियों को अधिक वक्त देने का अनुरोध कर सकती है सरकार
टेलीकॉम सेक्टर के वकीलों के अनुसार सरकार कोर्ट से बकाया चुकाने के लिए कंपनियों को अधिक वक्त देने का अनुरोध कर सकती है। हालांकि, विशेषज्ञों ने इस बात पर आशंका जाहिर की है कि सरकार समय पर कोई राहत योजना ला पाएगी।