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    उत्तर प्रदेश: क्या है करहल का इतिहास और जातिगत समीकरण जहां से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश यादव?
    क्या है करहल सीट का इतिहास और जातिगत समीकरण जहां से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश यादव?

    उत्तर प्रदेश: क्या है करहल का इतिहास और जातिगत समीकरण जहां से चुनाव लड़ेंगे अखिलेश यादव?

    लेखन भारत शर्मा
    Jan 22, 2022
    04:31 pm

    क्या है खबर?

    उत्तर प्रदेश में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों को राजनीतिक दलों की तैयारियां जोरों पर है। अधिकतर दलों ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा करना शुरू कर दिया है।

    इस कड़ी में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। यहां तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होगा।

    ऐसे में यहां जानते हैं कि करहल सीट का इतिहास और जातिगत समिकरण क्या है।

    पृष्ठभूमि

    अखिलेश यादव ने गुरुवार को किया था ऐलान

    बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को करहल सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था।

    यह उनका पहला विधानसभा चुनाव होगा। 2012 में जब वह मुख्यमंत्री बने थे, तब वो कन्नौज से लोकसभा सांसद थे। बाद में विधान परिषद के सदस्य बने और पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे।

    उनका पहली बार करहल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय सभी के लिए चर्चा का विषय है। लोगों का मानना है यह सीट सपा का गढ़ है।

    कारण

    अखिलेश ने करहल सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय क्यों किया?

    इस सीट पर साल 1993 से सपा का कब्जा है। हालांकि, 2002 में वर्तमान सपा विधायक सोबरन सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन बाद में वह सपा में शामिल हो गए। उसके बाद से यह सीट उनके कब्जे में हैं।

    सोबरन सिंह ने अखिलेश को अपने पहले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए इस सीट से उतरने का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने कहा था वह अखिलेश को यहां से रिकॉर्ड मतों से जिताकर भेजेंगे।

    जानकारी

    सपा संस्थापक मुलायम सिंह का करहल से रहा है करीबी लगाव

    सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का भी करहल से करीबी लगाव है। उन्होंने यहां के जैन इंटर कॉलेज से ही शिक्षा ग्रहण की थी और कुछ समय शिक्षक भी रहे। वह लंबे समय से लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

    राजनीतिक इतिहास

    1956 के परिसीमन में विधानसभा सीट बनी थी करहल

    साल 1956 के परिसीमन के बाद करहल विधानसभा सीट बनी थी। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पहलवान नत्थू सिंह यादव पहले विधायक बने थे।

    उसके बाद 1962, 1967 और 1969 में स्वतंत्र पाटी, 1974 में भारतीय क्रांति दल और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर नत्थू सिंह, 1980 में कांग्रेस के शिवमंगल सिंह ने जीत हासिल की थी।

    उसके बाद जातिगत हवा के कारण 1985 से 1996 तक बाबूराम यादव ने इस सीट से चुनाव जीता था।

    सपा

    करहल सीट पर 1993 से है सपा का कब्जा

    बता दें बाबूराम यादव ने तीन चुनाव जनता दल के टिकट से जीते थे, लेकिन 1993 में वह सपा में शामिल हो गए थे।

    उसके बाद वह दो बार विधायक रहे, लेकिन 2002 में उन्हें भाजपा के सोबरन सिंह से हार का सामना करना पड़ा था।

    हालांकि, कुछ समय बाद सोबरन सिंह सपा में शामिल हो गए और तब से वह जीतते आ रहे हैं। 2017 में भाजपा की लहर के बाद भी सपा उम्मीदवार को भारी वोट मिले थे।

    जातिगत समीकरण

    करहल विधानसभा में क्या है जातिगत समीकरण?

    करहल विधानसभा में जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या 3,71,241 है।

    इनमें 2,01,394 पुरुष, 1,69,851 महिला और 16 मतदाना अन्य श्रेणी के हैं। कुल मतदाताओं में से 40 प्रतिशत यादव समुदाय से आते हैं।

    इसी तरह 17 प्रतिशत मतदाता अनुसूचित जाति (SC), 13 प्रतिशत शाक्य, नौ प्रतिशत ठाकुर, सात प्रतिशत ब्राह्मण, छह प्रतिशत अल्पसंख्यक और अन्य जाति और समुदाय के आठ प्रतिशत मतदाता हैं। ऐसे में इस सीट पर यादव मतदाता निर्णयक हैं।

    जानकारी

    सपा के आंतरिक सर्वे में भी सुरक्षित पाई गई है करहल सीट

    सपा ने अखिलेश यादव की सुरक्षित सीट की पहचान करने के लिए आतंरिक सर्वे भी कराया था। इसमें करहल सीट को यादव बाहुल्य अन्य सीट गोपालपुर व गुन्नौर से अधिक सुरक्षित पाया गया है। ऐसे में पार्टी ने उनके लिए इस सीट को चुना है।

    परिणाम

    न्यूजाबइट्स प्लस (जानकारी)

    बता दें कि साल 2017 के विधानसभा चुनावों में करहल सीट से सपा के सोबरन सिंह यादव को 38,405 वोटों से जीत मिली थी।

    उस दौरान सोबरन सिंह को कुल वोटों में से 49.57 प्रतिशत यानी 10,421 वोट मिले थे।

    इसी तरह दूसरे नंबर पर रहे भाजपा के राम शाक्य को 31.31 प्रतिशत यानी 65,816 और बसपा के दलवीर सिंह को 14.12 प्रतिशत यानी 29,676 वोट ही मिले थे। ऐसे में यहा यादव वोटरों का दबदबा माना जाता है।

    चुनाव

    उत्तर प्रदेश में कब होंगे विधानसभा चुनाव?

    चुनाव आयोग की ओर से घोषित किए गए कार्यक्रम के अनुसार उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होंगे।

    इसके तहत 10 फरवरी, 14 फरवरी, 20 फरवरी, 23 फरवरी, 27 फरवरी, 3 मार्च और 7 मार्च को वोट डाले जाएंगे।

    इसके बाद उत्तर प्रदेश और चार अन्य राज्यों की मतगणना 10 मार्च को होगी और उसी दिन परिणाम घोषित किए जाएंगे। राज्य में भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा समेत कई प्रमुख दल मैदान में हैं।

    पिछला परिणाम

    साल 2017 के चुनावों में 47 सीटें ही जीत पाई थी सपा

    उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 403 सीटें हैं। 2017 में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने 324 सीटें जीती थीं और राज्य में सरकार बनाई थी।

    समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और 54 सीटें जीती थीं। इनमें से सपा ने 47 और कांग्रेस ने सात सीटें जीती थीं।

    वहीं बहुजन समाज पार्टी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। चुनाव बाद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

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