नागरिकता संशोधन बिल पर शिवेसना का यू-टर्न; पहले किया विरोध, फिर "राष्ट्रहित" में किया समर्थन
क्या है खबर?
सोमवार को लोकसभा से पारित हुए नागरिकता (संशोधन) बिल के समर्थन में जिन पार्टियों ने वोट दिया उनमें भाजपा की पूर्व सहयोगी और हाल ही में उस पर बेहद हमलावर रही शिवसेना शामिल रही।
दिलचस्प बात ये है कि शिवसेना ने इस वोटिंग से पहले अपने मुखपत्र 'सामना' में संपादकीय लिखते हुए बिल का विरोध किया था और इसे हिंदुओं और मुस्लिमों में अदृश्य बंटवारा करने की कोशिश बताया था।
विरोध
बिल पेश होने से पहले उठाए सवाल
दरअसल, सोमवार को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) बिल पेश होने से पहले अपने संपादकीय में शिवसेना ने लिखा था, 'ऐसा लगता है कि केंद्र ने बिल के ऊपर हिंदू और मुस्लिमों का अदृश्य बंटवारा कर दिया है।'
पार्टी ने आगे कहा था, 'ये सच है कि हिंदुओं के पास हिंदुस्तान के अलावा और कोई देश नहीं है। लेकिन क्या अवैध प्रवासियों में से केवल हिंदुओं को स्वीकार करना देश में एक धार्मिक युद्ध शुरू होने का कारण नहीं बनेगा?'
समर्थन
लोकसभा में बिल के समर्थन में वोटिंग
महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ सरकार चला रही शिवसेना की ओर से जब बिल को लेकर सरकार पर इतना तीखा हमला किया गया तो ऐसा लगा कि वो संसद में भी बिल का विरोध करेगी।
लेकिन लोकसभा में हुई वोटिंग में उसने यू-टर्न लेते हुए बिल का समर्थन किया और इसके पक्ष में मतदान किया। बिल सदन में 80 के मुकाबले 311 वोटों से पारित हुआ।
बयान
शिवसेना सांसद बोले- राष्ट्रहित में किया बिल का समर्थन
शिवसेना के इस यू-टर्न पर NDTV से बात करते हुए शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने कहा, "हमने राष्ट्रहित में बिल का समर्थन किया। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम केवल महाराष्ट्र में लागू है।"
बता दें कि सावंत महाराष्ट्र में सत्ता के बंटवारे को लेकर भाजपा और शिवसेना की राह जुदा होने से पहले केंद्र सरकार में शामिल शिवसेना के एकमात्र मंत्री थे।
हालांकि, भाजपा से टकराव के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
वजह
क्या है शिवसेना के यू-टर्न का कारण?
दरअसल, विचारधारा के मामले में शिवसेना और भाजपा में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है और उसकी छवि भी एक हिंदुत्ववादी पार्टी की है।
ऐसे में बिल का विरोध करके वो अपने वोटबैंक के एक हिस्से को भाजपा के हाथों गंवाने का खतरा नहीं लेना चाहती।
इस बीच उसे महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी कांग्रेस और NCP को भी संभालना है जो बिल के विरोध में हैं।
शिवसेना का यू-टर्न इन दोनों परिस्थितियों में सामंजस्य बैठाने की कोशिश का नतीजा ही है।
नागरिकता संशोधन बिल
मुस्लिमों को बाहर रखे जाने के कारण हो रहा बिल का विरोध
बता दें कि नागरिकात संशोधन बिल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार का सामना कर रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को छह साल भारत में रहने के बाद देश की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन किया जाएगा।
मुस्लिमों को इसके दायरे से बाहर रखे जाने के कारण इसका विरोध हो रहा है और विरोधी इसे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बता रहे हैं।
जानकारी
अब राज्यसभा में पेश होगा बिल
लोकसभा से पारित होने के बाद बिल को अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा और यहां सरकार के लिए असली चुनौती होगी। भाजपा को इसके लिए 123 वोट चाहिए जबकि सदन में उसके 83 सांसद हैं। शिवसेना राज्यसभा में भी इसका समर्थन कर सकती है।