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    प्रणब मुखर्जी का सफर: क्लर्क से राष्ट्रपति बन गए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बनने का मलाल रहा

    प्रणब मुखर्जी का सफर: क्लर्क से राष्ट्रपति बन गए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बनने का मलाल रहा
    लेखन भारत शर्मा
    Aug 31, 2020, 09:16 pm 1 मिनट में पढ़ें
    प्रणब मुखर्जी का सफर: क्लर्क से राष्ट्रपति बन गए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बनने का मलाल रहा

    कई दिनों से डीप कोमा में चल रहे भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। 77 साल की उम्र में राष्ट्रपति बनने वाले मुखर्जी ने अपने जीवन में कई बड़ी जिम्मेदारियां निभाई। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक क्लर्क के तौर पर की थी। अपने ज्ञान और कौशल से वह राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन हुए। हालांकि, उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बन पाने का मलाल जरूर रहा। आइए जानें उनका सफर।

    बंगाली परिवार में हुआ था मुखर्जी का जन्म

    प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरती गांव में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी एक स्वतंत्रा सैनानी थे। मुखर्जी ने सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक करने के बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर और LLB की डिग्री हासिल की थी। उनकी शुरू से ही राजनीति और कानून में बड़ी रुचि थी और इसी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाया।

    मुखर्जी ने क्लर्क के तौर पर की थी करियर की शुरुआत

    मुखर्जी ने अपने करियर की शुरुआत साल 1963 में कलकत्ता के पोस्ट और टेलीग्राफ कायार्लय में एक अपर डिवीजन क्लर्क (UDC) के रूप में की थी। हालांकि, कुछ समय बाद ही उन्होंने विद्यानगर कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। राजनीति के मैदान में उतरने से पहले उन्होंने देशर डाक (मातृभूमि की पुकार) मैगजीन में पत्रकारिता भी की थी। बाद में वह दिग्गज नेता साबित हुए।

    इंदिरा गांधी के ऑफर पर थामा था कांग्रेस का हाथ

    मुखर्जी ने साल 1969 में इंदिरा गांधी ने ऑफर पर कांग्रेस का हाथ थामा था। इसी साल इंदिरा गांधी की मदद से वह राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचे थे। उनकी राजनीतिक समझ और बेहतरी कार्य का ही प्रभाव था कि वह साल 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यसभा के लिए चुने गए। इंदिरा गांधी उनकी राजनीतिक समझ कि इतनी बड़ी कायल थी कि उन्हें कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दे दिया था।

    साल 1973 में पहली बार मंत्री बने थे मुखर्जी

    मुखर्जी की काबिलियत के कारण इंदिरा गांधी ने साल 1973 में आर वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे कद्दावर नेताओं पर तहरीज देते हुए मुखर्जी को राजस्व और बैंकिंग मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दे दिया।

    मुखर्जी ने 1982 में पहली बार संभाली थी वित्त मंत्री की बागडोर

    मुखर्जी ने कुल सात बाद वित्त मंत्री रहते हुए बजट पेश किया था। वह 15 जनवरी, 1982 में इंदिरा गांधी सरकार में वित्त मंत्री बने थे और उन्होंने 31 दिसंबर, 1984 तक पद पर रहते हुए तीन बार बजट पेश किया। उसके बाद वह मनमोहन सिंह की सरकार में 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे और चार बार बजट पेश किया। इसी से उनकी राजनीतिक मामलों की समझ को पहचाना जा सकता है।

    इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बनाने की जगह कैबिनेट से बाहर निकाला

    31 अक्टूबर, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में मुखर्जी का नाम भी चर्चा में था, लेकिन पार्टी ने राजीव गांधी को चुन लिया। दिसंबर 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं, लेकिन मुखर्जी को कैबिनेट में जगह नहीं मिली। मुखर्जी ने लिखा था कि कैबिनेट का हिस्सा नहीं होने पर वह दंग रह गए थे, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और पत्नी के साथ शपथ ग्रहण समारोह देखा था।

    पार्टी से निकालने पर बनाई दूसरी पार्टी

    राजीव गांधी से बढ़ते मतभेदों के बाद कांग्रेस ने मुखर्जी को छह साल के लिए निलंबित कर दिया। इसके बाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन साल 1989 में राजीव गांधी से समझौते के बाद पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया।

    राजीव गांधी की हत्या के बाद भी नहीं बन सके प्रधानमंत्री

    साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में भी कांग्रेस सत्ता में आई। सभी को उम्मीद थी कि मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। पार्टी ने पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बना दिया। इस कैबिनेट में मुखर्जी को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री बना दिया गया। इसी तरह वह 24 अक्टूबर, 2006 से 22 मई, 2009 तक मनमोहन सरकार में भी विदेश मंत्री रहे।

    साल 2004 में मुखर्जी की जगह मनमोहन सिंह को बनाया गया प्रधानमंत्री

    मुखर्जी के पास साल 2004 में फिर से प्रधानमंत्री बनने का मौका आया था, लेकिन इस बार सोनिया गांधी में अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया। मुखर्जी की काबिलियत का अंदाजा तीन साल पहले मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए एक बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा था जब वह प्रधानमंत्री बने थे तो मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन वह कर ही क्या सकते थे, कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें चुना था।

    सोनिया गांधी ने किया था प्रणब को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने का ऐलान

    सोनिया गांधी ने 15 जून, 2012 को मुखर्जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया था। इसके बाद उन्होंने पीए संगमा को हराकर राष्ट्रपति पद हासिल किया था। उन्होंने 25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला था।

    गत वर्ष देश के सबसे बड़े सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित हुए थे मुखर्जी

    मुखर्जी के देश के प्रति योगदान की बदौलत 8 अगस्त, 2019 को भाजपा सरकार में उन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। इस सम्मान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था कि कांग्रेस सरकार में नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह को 'भारत रत्न' नहीं मिला। परिवार से बाहर किसी को नहीं मिला। प्रणब दा ने देश के लिए जीवन खपाया। उन्हें 'भारत रत्न' उनके काम के लिए दिया गया है।

    पढ़ने-लिखने के अलावा मुखर्जी को था पाइप का शौक

    मुखर्जी को पढ़ने-लिखने का शौक था। उनकी निजी लाइब्रेरी में आत्मकथाओं से लेकर इतिहास और अर्थशास्त्र पर सैकड़ों किताबें थी। इसके अलावा उन्हें पाइप रखने का भी शौक था। धूम्रपान छोड़ने के बाद भी वह खाली पाइप मुंह में दबाए रखते थे। मुखर्जी को कभी-कभी बहुत गुस्सा भी आता था। एक बार पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने इंटरव्यू के दौरान उनको टोक दिया था तो उन्होंने कहा था, "मत भूलिए कि आप भारत के पूर्व राष्ट्रपति से इंटरव्यू कर रहे हैं।"

    मैं हमेशा पीएम ही रहूंगा- मुखर्जी

    मुखर्जी ने अपने लगभग 50 साल के राजनीतिक जीवन में प्रधानमंत्री को छोड़ कर हर महत्वपूर्ण पद पर काम किया। उन्होंने एक बार मजाक में कहा था, "प्रधानमंत्री तो आते जाते रहेंगे, लेकिन मैं हमेशा पीएम (प्रणब मुखर्जी) ही रहूंगा।"

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