राष्ट्रपति के मेहमानों को परोसी जाने वाली दाल रायसीना की शुरुआत करने वाले शेफ से बातचीत
भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह पर टिकी हैं। इस समारोह में कई देशों के शासनाध्यक्ष समेत हजारों मेहमान हिस्सा लेंगे। इन मेहमानों को खास दाल रायसीना परोसी जाएगी। हमने इस दाल की शुरुआत करने वाले शेफ मछिंद्र कस्तूरे से खास बात की। हमने उनसे जानना चाहा कि दाल रायसीना को लेकर इतनी चर्चा क्यों हो रही है। उन्होंने इसकी क्या वजह बताई? आइये जानते हैं।
हर जगह है दाल रायसीना की चर्चा
प्रधानमंत्री मोदी का शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया जाएगा। इसकी तैयारियां आसान नहीं रही हैं। आयोजकों ने दिन-रात मेहनत कर इस कार्यक्रम का आयोजन करने की तैयारियां की हैं। यहां आने वाले मेहमानों को शाकाहारी और मांसाहारी भोजन परोसा जाएगा। इन सारे भोजन में सबसे ज्यादा चर्चा दाल रायसीना की हो रही है। कस्तूरे ने भी नहीं सोचा था कि उड़द दाल और टमाटर के भर्ते से बनी यह दाल इतनी मशहूर हो जाएगी।
कैसे हुई इस दाल को बनाने की शुरुआत
कस्तूरे 2007 से 2015 तक राष्ट्रपति भवन में शेफ होते थे। फिलहाल वो अशोका होटल में एग्जीक्यूटिव शेफ हैं। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने दाल रायसीना की शुरुआत कैसे की तो उन्होंने कहा कि यह बस हो गई। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कस्तूरे को कुछ अलग बनाने को कहा था। राष्ट्रपति की पसंद का ख्याल रखते हुए कस्तूरे ने दाल रायसीना बनाई थी। उसके बाद से यह दाल मशहूर होती गई।
दाल बनाने पर नहीं मिली थी कोई तारीफ
इस दाल की इतनी चर्चा हो रही है। हमने सोचा कि जब कस्तूरे ने इसे पहली बार बनाया होगा तो उनकी काफी तारीफ हुई होगी, लेकिन ऐसा नहीं था। उन्होंने बताया, "जब दाल खाने के बाद कोई कमेंट नहीं आया तो इसका मतलब था कि परोसने से लेकर दाल के स्वाद तक सब ठीक था।" उन्होंने बताया कि विदेशी मेहमान अपने देश का खाना खाना पसंद करते हैं, लेकिन उनका काम भारतीय खाने को विदेशी टच देकर परोसना था।
अकसर दाल की तारीफ करती थी पाटिल
कस्तूरे ने कहा, "यह बात समझनी होगी कि आप हर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकते। कोई नमक की शिकायत करेगा, कोई कुछ। किसी ने मेरी तारीफ नहीं की, हां खाना अच्छा होना चाहिए। कई बार मैडम (पाटिल) खाने की तारीफ करती थीं।"
ओबामा को परोसा पूरन पोली
हमने कस्तूरे से पूछा कि हमारे पूर्व राष्ट्रपतियों को खाने में क्या पसंद था। इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि पाटिल शाकाहारी थीं। उन्होंने कहा, "उनका निजी रसोइया था, लेकिन जब विदेशी मेहमानों को आमंत्रित किया जाता तो मेनू तैयार करने की जिम्मेदारी मेरी थी। मुझे याद है कि हमने एक बार बराक ओबामा को पूरन पोली परोसी थी।" दूसरी तरफ प्रणब मुखर्जी को मछली खाना बहुत पसंद था। इसलिए कस्तूरे उसी हिसाब से मेनू तैयार करते थे।
प्रणब दा ने की कैवियार की तारीफ
कस्तूरे ने बताया, "एक बार प्रणब दा ने कहा कि वह कैवियार खाना चाहते हैं। हर कोई चिंतित था कि हम यह कैसे करेंगे। कैसे भी करके मैंने इसे पकाया। कुछ दिन बाद जब उन्होंने मुझे देखा तो उस डिश की तारीफ की।"
राष्ट्रपति भवन में है बड़ी टीम
राष्ट्रपति और उनके मेहमानों के लिए खाना बनाने के लिए राष्ट्रपति भवन में एक बड़ा किचन है। कस्तूरे ने बताया कि उनके पास लगभग 12-15 लोगों की टीम थी। हमने उनसे पूछा कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि किचन में कभी कोई संकट आया हो? इस पर उन्होंने कहा कि यह आम बात है। उन्होंने बताया, "हम हमेशा योजना बनाकर चलते थे। किसी भी इमरजेंसी से बचने के लिए हम अतिरिक्त खाना बनाते थे।"
मुश्किल में फंसते-फंसते बचे थे कस्तूरे
कस्तूरे ने बताया, "एक बार मुझे याद है कि मैं खीर की ट्रे ले जा रहा था और यह फिसलकर गिर गई। हमारे पास बैकअप था। इसलिए मैं किचन से दोबारा गिलास भरकर लाया। मैंने 10 मिनट में 40-50 लोगों को खीर परोसी।"
दाल रायसीना का मशहूर होना सम्मान की बात- कस्तूरे
हमने जब दाल रायसीना के मशहूर होने पर उनसे सवाल पूछा तो कस्तूरे ने कहा, "मेरे लिए यह बड़े सम्मान की बात है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी डिश इतनी मशहूर हो जाएगी, लेकिन अब मुझे खुशी होती है।" उन्होंने बताया कि किसी भी शेफ के लिए सबसे बड़ा डर यह होता है कि उसका तैयार किया गया खाना वापस आ जाए, लेकिन उनके साथ ऐसा कभी नहीं हुआ है।
अपनी पत्नी के हाथों से बना खाना पसंद करते हैं कस्तूरे
कस्तूरे बेशक वर्ल्ड-क्लास डिशेस बनाते हो, लेकिन उन्हें खुद पत्तेदार सब्जियां और चपाती खाना पसंद है। उन्हें उनकी पत्नी के हाथ से बनाया गया खाना अच्छा लगता है। उन्होंने बताया कि वो घर पर नई डिश ट्राई करते हैं। कस्तूरे ने कहा, "मेरी बेटी को खाना बहुत पसंद है। वह मुझे बताती रहती है कि इसमें यह मिलाओ, वो मिलाओ।" न्यूजबाइट्स के पाठकों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि मेहनत करते रहना चाहिए। मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।