लोकसभा चुनाव में झटके के बाद विधानसभा के लिए भाजपा ने कैसे बदली रणनीति?
आज से करीब 6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को उम्मीदों के मुताबिक सफलता नहीं मिली थी। खासतौर से महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उसे कई सीटों का नुकसान हुआ था, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। महाराष्ट्र में फिर से भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार बनने जा रही है। आइए जानते हैं कि भाजपा ने 6 महीने के भीतर ही अपनी रणनीति में क्या बदलाव किया।
स्थानीय नेतृत्व और मुद्दों पर ध्यान
पहले विधानसभा चुनावों में भी सबसे ज्यादा चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रहती थी। पार्टी ने अब रणनीति में बदलाव करते हुए विधानसभा चुनावों को स्थानीय नेतृत्व और मुद्दों पर केंद्रित किया है। हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने केवल 4 रैलियां की थीं। यही रणनीति महाराष्ट्र में भी अपनाई गई। भाजपा की ओर से प्रचार का जिम्मा देवेंद्र फडणवीस ने संभाले रखा। केंद्रीय नेतृत्व दूर ही रहा।
भाजपा ने RSS की ओर रुख किया
लोकसभा चुनाव में भाजपा को हुए नुकसान की एक वजह पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के बीच तालमेल की कमी को भी माना जाता है। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार RSS की मदद ली और दोनों ने एक टीम की तरह काम किया। RSS के कार्यकर्ता घर-घर गए और सरकार की योजनाओं की जानकारी पहुंचाई। पूरे महाराष्ट्र में RSS की मजबूत पकड़ है, जो भाजपा के पक्ष में काम कर गई।
आधी आबादी पर पूरा भरोसा
महाराष्ट्र चुनाव से पहले एकनाथ शिंदे की सरकार ने लाडली बहना योजना शुरू की, जिसमें महिलाओं के लिए 1500 रुपये हर महीने दिए गए। मतदान से ठीक पहले इसकी एक किश्त जारी की गई। इस वजह से मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लंबी कतारें देखने को मिलीं और उन्होंने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। इससे पहले मध्य प्रदेश में मिली जीत का श्रेय भी भाजपा ने 'शांत महिला मतदाताओं' को दिया था।
किसी एक वर्ग को साधने में नहीं रही पार्टी
हरियाणा की तरह भाजपा ने महाराष्ट्र में भी किसी एक खास वर्ग को नहीं साधा। मराठा आरक्षण पर भी पार्टी ने चुप्पी साधे रखी। MVA के जातिगत समीकरणों के मुकाबले के लिए भाजपा धर्म के मुद्दे पर मुखर रही। भाजपा का 'कटोगे तो बटोगे' और 'एक रहोगे तो सेफ रहोगे' के नारे ने हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया। मुस्लिम उलेमाओं द्वारा MVA के समर्थन में दिए गए बयानों ने महायुति की राह और आसान कर दी।
झारखंड में क्यों हार गई भाजपा?
झारखंड में भाजपा के पास हेमंत सोरेन जैसा कोई स्थानीय चेहरा नहीं था। भाजपा सामूहिक नेतृत्व के भरोसे रही। भाजपा ने आदिवासी और मुस्लिम समीकरण को तोड़ने पर ध्यान दिया। बाहरी और स्थानीय का मुद्दा उठाया, लेकिन JMM स्थानीय मुद्दे को लेकर जनता के बीच गई। झारखंड में भी महिलाएं हार-जीत की बड़ी वजह रही। 68 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया। सोरेन ने यहां मैया सम्मान योजना लागू की।