महाराष्ट्र सियासी संकट: क्या होता है फ्लोर टेस्ट और इससे संंबंधित नियम क्या हैं?

महाराष्ट्र का सियासी संकट अपने अंतिम चरण में पहुंचता हुआ दिखाई दे रहा है और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कल शाम 5 बजे तक अपना बहुमत साबित करने को कहा है। ठाकरे और उनकी पार्टी शिवसेना फ्लोर टेस्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए हैं जो शाम 5 बजे मामले पर सुनवाई करेगा। आइए आपको बताते हैं कि फ्लोर टेस्ट क्या होता है और इसे लेकर क्या नियम हैं।
फ्लोर टेस्ट यानि बहुमत परीक्षण से विधानसभा की पटल पर ये तय होता है कि मुख्यमंत्री और सरकार के पास बहुमत का समर्थन है या नहीं। फ्लोर टेस्ट ध्वनि मत और वोटिंग दोनों तरीके से हो सकता है। ध्वनि मत में विधायक मेज पीटकर मुख्यमंत्री के लिए अपने समर्थन का ऐलान करते हैं, वहीं वोटिंग में सभी विधायक अपना वोट देते हैं और उनकी संख्या गिनने के बाद मुख्यमंत्री के भविष्य का फैसला होता है।
अगर राज्यपाल को लगता है कि सरकार और मुख्यमंत्री विधानसभा में बहुमत खो चुके हैं तो वह फ्लोर टेस्ट का निर्देश दे सकता है। शिवराज सिंह चौहान बनाम मध्य प्रदेश विधानसभा स्पीकर के केस में सुप्रीम कोर्ट इस बात की पुष्टि कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा का विशेष सत्र भी बुला सकता है। सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल केवल कैबिनेट की सिफारिश पर ही सत्र बुला सकता है।
फ्लोर टेस्ट का राज्यपाल का फैसला अंतिम नहीं होता है और इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अगर कोर्ट को लगता है कि राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट का निर्देश देने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं तो फैसला रद्द हो सकता है।
संवैधानिक संकट खड़ा होने पर सुप्रीम कोर्ट भी बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का निर्देश दे सकता है और इसके लिए विधानसभा का सत्र बुला सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के ठीक बाद 2019 में पैदा हुए सियासी संकट के समय भी सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दिया था। तब देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी। अन्य कई मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ऐसा ही निर्देश दे चुका है।
कोर्ट बागी विधायकों समेत अन्य किसी भी विधायक को फ्लोर टेस्ट में उपस्थित रहने का आदेश नहीं दे सकता और ये पूरी तरह से उनकी मर्जी होती है। हालांकि राजनीतिक पार्टियां अपने विधायकों को फ्लोर टेस्ट में मौजूद रहने का व्हिप जारी कर सकती हैं। इससे अनुपस्थित रहने पर उनकी सदस्यता चली जाती है। सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य आदेश के अनुसार, विधायकों की सदस्यता खारिज करने संबंधित कार्यवाही लंबित होने के कारण फ्लोर टेस्ट को नहीं टाला जा सकता।
राष्ट्रपति को सौंपी गई राज्यपालों की एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, अगर मुख्यमंत्री बहुमत साबित करने से इनकार कर देते हैं तो इसे उनके बहुमत खोने का सबूत माना जाएगा। इसके बाद राज्यपाल दूसरी पार्टी को सरकार बनाने का मौका दे सकते हैं।