कर्नाटक: येदियुरप्पा ने पार की विश्वास मत की बाधा, ध्वनि मत से साबित किया बहुमत
शुक्रवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेता बीएस येदियुरप्पा आज कर्नाटक विधानसभा में बहुमत साबित करने में कामयाब रहे। विश्वास मत पर वोटिंग नहीं हुई और येदियुरप्पा ध्वनि मत से ही बहुमत परीक्षण जीत गए। ध्वनि मत में सदन के सदस्य मेज थपथपाकर अपना समर्थन देते हैं और उसी से फैसला होता है। बहुमत साबित करने के बाद वह आज ही वित्त बिल पेश करेंगे, जिसे पिछली सरकार ने तैयार किया था।
येदियुरप्पा ने पार की बहुमत परीक्षण की बाधा
स्पीकर ने रद्द की सभी बागी विधायकों की सदस्यता
बता दें कि विधानसभा स्पीकर केआर रमेश कुमार कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के सभी 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द कर चुके हैं। पिछले हफ्ते उन्होंने 2 बागी विधायकों और 1 निर्दलीय विधायक की सदस्यता रद्द की थी और फिर कल बाकी बचे 14 बागी विधायकों की सदस्यता भी रद्द कर दी। स्पीकर ने इन सभी विधायकों के विधानसभा भंग होने तक चुनाव लड़ने या कोई संवैधानिक पद ग्रहण पर पाबंदी लगा दी है।
आंकड़े थे भाजपा के पक्ष में
स्पीकर के इस फैसले के बाद विधानसभा का संख्याबल घटकर 208 रह गया है और बहुमत का आंकड़ा 105 है। भाजपा के पास खुद 105 विधायक हैं और उसे एक निर्दलीय विधायक का समर्थन भी हासिल है। ऐसे में आंकड़ों के लिहाज से अभी के लिए येदियुरप्पा के लिए बहुमत साबित करना मुश्किल नहीं था। इसी को देखते हुए कांग्रेस और JD(S) ने वोटिंग कराए जाने पर जोर नहीं दिया और बहुमत का फैसला ध्वनि मत से ही हो गया।
येदियुरप्पा ने कहा, वित्त बिल को तत्काल पास करना बेहद जरूरी
बहुमत साबित करने के बाद अब येदियुरप्पा विधानसभा में वित्त बिल पेश करेंगे, जिसके बारे में वह रविवार को ही बता चुके हैं। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा था, "वित्त बिल को तत्काल पास किए जाने की जरूरत है अन्यथा हम सैलरी देने के लिए भी फंड नहीं निकाल पाएंगे। इसलिए कल विश्वास मत के बाद हम सबसे पहले वित्त बिल को पेश करेंगे। मैंने इसमें कोमा और फुल स्टॉप भी नहीं बदला है।"
चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं येदियुरप्पा
येदियुरप्पा इससे पहले 3 बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह 2007, 2008 और 2018 में मुख्यमंत्री रहे हैं लेकिन संयोग ये है कि एक भी बार उनकी सरकार पूरे 5 साल नहीं चली। 2018 में तो उनकी सरकार मात्र 3 दिन चली थी और वह बहुमत साबित करने में नाकामयाब रहे थे। इसी से जुडा एक तथ्य ये भी है कि कर्नाटक के इतिहास में आजतक महज तीन मुख्यमंत्री 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा कर सके हैं।