राम मंदिर के उद्घाटन से कैसे बदले राजनीतिक समीकरण और कैसे विपक्ष की मुश्किलें बढ़ीं?
22 जनवरी, 2024 का दिन देश के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक क्षण में अयोध्या स्थित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की। इससे न केवल हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा मिला, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक नया अध्याय जुड़ गया। आइए जानते हैं कि कैसे राम मंदिर ने भारतीय राजनीति को न केवल बदला है, बल्कि विपक्ष की चुनौतियों को भी बढ़ा दिया है।
राम मंदिर ने कैसे समीकरण बदले?
राम मंदिर के निर्माण के जरिए भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की वैचारिक जीत हुई है, जो दशकों से इसके लिए लड़ते रहे। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा को ऐतिहासिक बनाने में भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी और लोकसभा चुनावों से ठीक पहले राम मंदिर को राजनीति के केंद्र में लाकर रख दिया। विपक्ष की कई कोशिशों के बाद भी राम मंदिर का मुद्दा चुनावों से पहले सबसे महत्वपूर्ण बन गया है।
मामले में विपक्ष स्थिति स्पष्ट कर पाने में रहा असमर्थ
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से विपक्ष ने खुद को मंदिर आंदोलन से दूर ही रखा। 1989 में भाजपा ने जब पालमपुर प्रस्ताव में इसके हल के लिए बातचीत या कानून को महत्व दिया, तब विपक्षी दलों ने इसे न्यायपालिका पर छोड़ दिया। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री ने 2020 में भूमि पूजन किया, लेकिन विपक्ष अब तक अपनी स्थिति तय कर पाने में असमर्थ रहा है।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने से क्यों पीछे हटा विपक्ष?
इस समारोह में हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए, लेकिन कई विपक्षी नेता इसमें शामिल नहीं हुए। विपक्षी नेताओं ने अलग-अलग कारण देकर कार्यक्रम से दूरी बना ली। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP) समेत कई बड़े विपक्षी दलों के नेताओं ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाई और इसे भाजपा का कार्यक्रम करार दिया। यदि विपक्ष इसमें शामिल होता तो कहीं न कहीं भाजपा की वैचारिक जीत को दर्शाता और यही विपक्ष नहीं चाहता था।
विपक्ष ने कैसे संतुलन बनाने की कोशिश की?
वास्तव में भाजपा की रणनीति ने विपक्षी दलों को धर्मसंकट में डाल दिया। न चाहते हुए भी उन्हें अपने अन्य मुद्दों को फिलहाल के लिए ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। राम मंदिर न जाने के निर्णय से विपक्ष खुद को "हिंदू भावनाओं" के प्रति असंवेदनशील नहीं दिखाना चाहता था। यही संतुलन बनाने के लिए राहुल गांधी ने मंदिर जाने और ममता बनर्जी ने सर्व-धर्म रैली का कार्यक्रम बनाया, वहीं अरविंद केजरीवाल समेत अन्य दलों ने धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाया।
कैसे आगे मुश्किल हो सकती है राह?
मुस्लिम समुदाय के भीतर विपक्ष के रुख को लेकर नाराजगी जरूर है, लेकिन कोई दल इसे भुनाते नहीं दिखाई दिया। ऐसा लगता है कि राम मंदिर के कारण कुछ पार्टियां अपनी रणनीति बदल रही हैं। अब मथुरा और वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास के विवाद पर भी जल्द ही फैसले आने की उम्मीद है। ऐसे में यह फैसले भी राष्ट्रीय राजनीति पर असर डाल सकते हैं और विपक्ष के लिए स्थिति और कठिन हो सकती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
सोमवार को राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा अभिजीत मुहूर्त और मृगशिरा नक्षत्र के शुभ संयोग में हुई, जो दोपहर 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक था। इसी 84 सेकंड के अभिजीत मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा और सभी धार्मिक क्रियाएं संपन्न किये गए। रामलला को जगाने के लिए विशेष मंत्रों का उच्चारण किया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान राम की आरती भी की।