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    भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने लॉन्च की नई पार्टी, मायावती की बढ़ेंगी मुश्किलें

    भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने लॉन्च की नई पार्टी, मायावती की बढ़ेंगी मुश्किलें
    लेखन मुकुल तोमर
    Mar 15, 2020, 05:47 pm 1 मिनट में पढ़ें
    भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने लॉन्च की नई पार्टी, मायावती की बढ़ेंगी मुश्किलें

    भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने रविवार को अपनी नई पार्टी लॉन्च की। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम 'आजाद समाज पार्टी' रखा है। आजाद ने अपनी पार्टी लॉन्च करने के लिए आज का दिन इसलिए चुना था क्योंकि आज दलित नेता और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का जन्मदिन है। आजाद के पार्टी बनाने के बाद कांशीराम की मृत्यु के बाद मायावती के हाथों में जा चुकी बसपा की मुश्किलें बढ़ना तय हैं।

    नीले रंग का होगा पार्टी का झंडा

    नोएडा के सेक्टर 51 स्थित अशोका वाइट फार्म में आयोजित एक कार्यक्रम में चंद्रशेखर आजाद ने अपनी नई पार्टी का ऐलान किया। पार्टी का झंडा नीले रंग का होगा। इस दौरान बड़ी संख्या में भीम आर्मी के समर्थक मौके पर मौजूद रहे। पुलिस के कार्यक्रम पर रोक लगाने के कारण वे ताला तोड़कर गेस्ट हाउस में दाखिल हुए। पुलिस ने कोरोना वायरस का हवाला देकर इस कार्यक्रम की अनुमति वापस ली थी।

    2015 में पहली बार चर्चा में आए थे आजाद

    चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के घडकौली गांव के रहने वाले हैं। वो सबसे पहले 2015 में अपने गांव के बाहर 'द ग्रेट चमार' का बोर्ड लगाने के लिए चर्चा में आए थे। इससे गांव के दलितों और ठाकुरों में तनाव पैदा हो गया था। आजाद लंबी मूंछे भी रखते हैं। आमतौर पर ऐसी मूंछे उच्च जाति के लोग रखते हैं इसलिए उनकी मूंछों और छवि को उच्च जाति के वर्चस्व को चुनौती की तरह माना जाता है।

    2014 में बनाई थी भीम आर्मी

    चंद्रशेखर आजाद ने विनय रतन आर्य के साथ मिलकर 2014 में बहुजन संगठन भीम आर्मी की शुरूआत की थी। दलित चिंतक सतीश कुमार के दिमाग की उपज मानी जाने वाली भामी आर्मी को भारत एकता मिशन के नाम से भी जाना जाता है और ये हाशिए पर पड़े दलित लोगों के लिए काम करती है। भीम आर्मी दलित शब्द के उपयोग के खिलाफ है और ये संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचारों पर चलती है।

    आजाद पर लगाया गया था NSA, 15 महीने जेल में रहे

    2017 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में राजपूतों और दलितों के बीच हिंसक झड़प के बाद आजाद को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया था और वे 15 महीने जेल में रहे थे।

    नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों से बड़े नेता बनकर उभरे आजाद

    नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों ने आजाद को एक बड़ा और गंभीर नेता बनकर उभरने में मदद की। पुलिस के कड़े पहरे के बावजूद वो 20 जनवरी को दिल्ली की जामा मस्जिद में CAA विरोधी प्रदर्शन में शामिल हुए। उन्होंने जंतर मंतर तक मार्च निकालने की कोशिश भी की लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके अलावा अन्य कई शहरों में भी वे प्रदर्शनों में शामिल हुए और इस दौरान उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया।

    दलित-मुस्लिम वोट बैंक एकजुट करने में लगे हैं आजाद

    CAA विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होकर आजाद ने मुस्लिमों का भरोसा जीतने का काम किया जिनमें इस कानून को लेकर सबसे ज्यादा चिंता और डर है। वहीं मायावती से अलग राजनीतिक विकल्प तलाश रहे दलितों में आजाद पहले से ही लोकप्रिय हैं। ऐसे में अगर वे दलित और मुस्लिमों को एक साथ लाने में कामयाब रहते हैं तो ये राजनीतिक तौर पर उनके लिए जिताऊ फॉर्मूला हो सकता है। उनकी नजर इसी वोट बैंक को एकजुट करने पर है।

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर आजाद की निगाहें

    आजाद के नई पार्टी लॉन्च करने के समय से इस बात का भी संकेत मिलता है कि वे 2022 में उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर हैं और पूरे दमखम से मैदान में उतर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो वे बसपा को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा सकते हैं। यही कारण है कि मायावती ने बयान जारी कर कहा है कि अलग-अलग संगठन बनाने से दलित समुदाय को कोई फायदा नहीं होगा।

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