अमेरिका: बढ़ते तापमान के चलते गर्मी की चेतावनी देगा नया रंग 'मैजेंटा'
राष्ट्रीय मौसम सेवा (NWS) और रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) ने बढ़ती गर्मी के चलते एक नई तापमान जोखिम प्रणाली शुरू की है। पृथ्वी दिवस पर घोषित इस प्रणाली में गर्मी को एक पैमाने पर रंगों द्वारा नापा जाता है, जिनमें अब एक नया रंग जुड़ गया है। गर्मी के अत्यधिक बढ़ते स्तर को मैजेंटा रंग से दर्शाया जाएगा। एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट में बताया गया कि यह स्तर लंबी अवधि की तीव्र गर्मी को दर्शाता है।
रंगों के जरिए नापा जाता है गर्मी का स्तर
अमेरिका द्वारा शुरू की गई यह नई प्रणाली गंभीर मौसम की स्थिति का 7 दिनों का पूर्वानुमान प्रदान करती है, जिससे जनता को बढ़ती गर्मी से निपटने में मदद मिलती है। हरा रंग कम गर्मी को दर्शाता है, वहीं पीला और नारंगी रंग गर्मी के प्रति संवेदनशील और जोखिम का संकेत देता है। लाल रंग सभी के लिए अधिक जोखिम का संकेत देता है और मैजेंटा सभी को गर्मी के अत्यधिक जोखिम की चेतावनी देता है।
जानिए कैसे मैजेंटा में बदलता है रेड अलर्ट
इस प्रणाली के तहत सबसे गर्म दिनों को लाल और मैजेंटा रंग से दर्शाया जाता है। रेड अलर्ट तब होता है, जब कोई दिन किसी विशेष समय और क्षेत्र के लिए साल के सबसे गर्म दिनों के 5% में आता है। गर्मी की लहर की गंभीरता जैसे अन्य कारकों के मद्देनजर यह अलर्ट मैजेंटा तक बढ़ जाता है। इस प्रणाली का एक संस्करण, जो पहले केवल पश्चिमी अमेरिका में उपयोग किया जाता था, अब देश भर में लागू किया जाएगा।
क्यों जरूरी है यह नई प्रणाली?
वर्त्तमान में बढ़ती गर्मी की लहर के कारण इस नई प्रणाली की जरूरत है। मई से सितंबर 2023 तक अमेरिका में सबसे गर्म तापमान दर्ज किया गया था, जिसके चलते कई लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। इसके अलावा, नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने पुष्टि की थी कि 2023 विश्व स्तर पर सबसे गर्म वर्ष था। भारत में दिल्ली का तापमान 40 डिग्री से अधिक होने के कारण लोग गर्मी से बेहाल हैं।
अत्यधिक गर्म हवाओं का प्रभाव
बढ़ती गर्मी के कारण दुनियाभर के शहरों के तापमान में तेजी से इजाफा हो रहा है। गर्मी के कारण अकेले अमेरिका में ही सालाना लगभग 1,300 लोगों की मौत हो जाती है। अनुमान है कि साल 2050 तक वैश्विक स्तर पर 38,000 लोगों की मौत हो जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, चिंताजनक रूप से गर्मी से सबसे ज्यादा प्रभावित जनसंख्या में 5 साल से कम उम्र के बच्चे और 65 साल से अधिक उम्र के लोग शामिल हैं।