तीन बच्चे होने के कारण पंचायत समिति की महिला चेयरपर्सन को कोर्ट ने किया अयोग्य घोषित
ओडिशा के कंधमाल जिले में अदालत ने पंचायत समिति प्रमुख एक महिला को तीन बच्चे होने के कारण उसके पद से हटा दिया है। जिला अदालत ने एक कानून का उल्लंघन करने के लिए महिला सदस्य को अयोग्य करार दिया। बता दें कि ओडिशा पंचायत समिति अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसके दो से अधिक बच्चे हों, वह पंचायत में कोई भी पद ग्रहण नहीं कर सकता। 1994 में संशोधन के जरिए अधिनियम में ये बदलाव किया गया था।
BJD विधायक की पत्नी हैं महिला चेयरपर्सन
उदयगिरी क्षेत्र से बीजू जनता दल (BJD) के विधायक सलूगा प्रधान की पत्नी सुभरांति प्रधान 2017 में दरिंगबाड़ी पंचायत समिति की चेयरपर्सन बनी थीं। तांजुगिया पंचायत समिति की सदस्य रूडा मल्लिक ने सुभरांति के खिलाफ याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था कि उन्होंने ओडिशा पंचायत समिति अधिनियम के प्रावधानों से बचने के लिए अपने बच्चों की संख्या छिपाई है। उन्होंने आरोप लगाया था कि सुभरांति के दो नहीं तीन बच्चे हैं।
फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करेंगी सुभरांति
मल्लिक के वकील सिद्धेश्वर दास ने बताया कि सुभरांति ने जानबूझ कर अपने बच्चों की संख्या छिपाई थी ताकि वह पंचायत समिति की प्रतिनिधि बन सकें। उन्होंने कहा कि 1996 में सुभरांति के एक बेटा हुआ था और उससे पहले उनके दो बच्चे थे। अब जिला जज गौतम शर्मा ने मामले में फैसला सुनाते हुए सुभरांति को पद के लिए अयोग्य करार दे दिया। सुभरांति ने जिला अदालत के फैसले के खिलाफ ओडिशा हाई कोर्ट में अपील करेंगी।
कुछ इस तरह हुई इस नियम की शुरूआत
दो बच्चों संबंधी इस नियम की शुरूआत 1991 की जनगणना के बाद हुई थी। राष्ट्रीय विकास परिषद ने 1992 में केरल के पूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरण की अध्यक्षता में जनसंख्या पर एक समिति का गठन किया था। इसी समिति ने दो से अधिक बच्चों वाले लोगों के पंचायत में कोई भी पद ग्रहण करने पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की थी। राजस्थान ने समिति की सिफारिशों से पहले ही अपने यहां ये कानून लागू कर दिया था।
इन राज्यों में लागू है दो बच्चों संबंधी ये नियम
करुणाकरण समिति की सिफारिशों के बाद 1993 में आंध्र प्रदेश और हरियाणा ने 1993 में अपने यहां ये कानून लागू किया। ओडिशा ने 1993 में जिला परिषदों और 1994 में पंचायत समितियों और ग्राम पंचायत के लिए ये कानून बनाया। हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने 2000 में अपने यहां समिति की सिफारिशों को लागू करते हुआ कानून बनाया, जबकि महाराष्ट्र ने 2003 में इन नियमों को लागू किया, जिसे पुरानी तिथि 2002 से लागू किया गया।
ओडिशा की जनसंख्या वृद्धि दर में आई है कमी
जब ओडिशा ने दो बच्चों संबंधी इस कानून को लागू किया था, तब राज्य की जनसंख्या 3.16 करोड़ थी और दशकीय वृद्धि दर 20.06 प्रतिशत थी। 2011 में राज्य की जनसंख्या बढ़कर 4.19 करोड़ हो गई, लेकिन इस बीच जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई। 2001-2011 के बीच राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर 13.97 प्रतिशत रही, जो देश की औसत वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत से कम थी। इसी कारण राज्य में इन कानून में बदलाव की मांग उठती रहती है।
"विधायकों और सांसदों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं"
एक्टिविट्स रितुपर्णा मोहंती के अनुसार, ओडिशा की जनसंख्या में धीमी वृद्धि को देखते हुए अब राज्य सरकार को दो बच्चों संबंधी इस कानून में संशोधन कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधायकों और सांसदों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है।
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
ये पहली बार नहीं है जब दो से अधिक बच्चे होने के कारण किसी को पंचायत समिति के लिए अयोग्य घोषित किया गया है। इससे पहले अगस्त 2002 में ओडिशा हाई कोर्ट ने दो से अधिक बच्चे होने के कारण नौपाड़ा जिले की एक आदिवासी सरपंच मीणा सिंह मांझी को अयोग्य करार दिया था। मीणा ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, लेकिन पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।