भारतीय रेलवे को निजी ट्रेनें चलाने की जरूरत क्यों पड़ी? जानिये इससे जुड़े सवालों के जवाब
भारतीय रेलवे के लिए सवारी गाड़ियां फायदे का सौदा नहीं रही हैं। इन गाड़ियों के संचालन पर आने वाली लागत में से केवल 57 फीसदी ही टिकटों के जरिये वसूल हो पाती है। रेलवे इस घाटे की भरपाई मालगाड़ियों के जरिये होने वाली कमाई से करता है। इसी बीच अब सरकार निजी रेलगाड़ियों के संचालन को बढ़ाने की योजना बना चुकी है। आइये, जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जा रहा है और इसकी जरूरत क्यों पड़ी।
सेवाओं को सुधारने के लिए रेलवे को भारी निवेश की जरूरत
मौजूदा हालात में रेलगाड़ियों में मांग से कम सीटें मौजूद हैं। इसके कारण वेटिंग लिस्ट बढ़ती जाती है या ट्रेनों में क्षमता से अधिक लोग सफर करते हैं। ऐसे में रेलवे के लिए आधुनिक व्यवस्था लागू करने और बेहतर सेवाओं के लिए नए इंजन और डिब्बे के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी। इनके अलावा बिजली, कर्मचारियों और दूसरे संसाधनों की लागत रेलवे की जेब पर भारी पड़ेगी, जबकि रेलवे सवारी गाड़ियों के संचालन में घाटे से जूझ रहा है।
निजी रेलगाड़ियां क्यों चलाई जा रही है?
इसकी सबसे बड़ी वजह घाटे को कम करना और मौके को पैसे कमाने के अवसर में बदलना है। मोदी सरकार विचार कर रही है भविष्य में कुछ रेलगाड़ियां निजी कंपनियों द्वारा संचालित की जाएंगी। आज से पहले भारत में ऐसा नहीं किया गया है। इसके लिए पटरियां बिछाने, इंजन और डिब्बों की खरीद समेत दूसरे खर्चों के लिए आने वाली लगभग 30,000 करोड़ की लागत निजी कंपनियां वहन करेंगी। यानी अब सरकार को इसके लिए पैसा खर्च नहीं करना होगा।
निजी ट्रेनों के लिए एकमात्र शर्त- बेहतर सुविधाएं
निजी कंपनियों के लिए एकमात्र शर्त यह होगी कि उनकी ट्रेनों में भारतीय रेलवे की तुलना में अधिक सुविधाएं होनी चाहिए। इसके पीछे यात्रियों को बेहतर सहूलियत प्रदान करने का उद्देश्य है और वो भी रेलवे के बिना पैसे खर्च किए हुए।
निजी क्षेत्र कितनी रेलगाड़ियां चलाएगा?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकार ने देशभर में 109 व्यस्त रूटों की पहचान की है, जिन पर 35 साल के लिए 151 निजी ट्रेनें (कुल ट्रेनों का 5 प्रतिशत) चलाई जाएंगी। इन रूट पर आमतौर पर लंबी वेटिंग लिस्ट रहती है और यहां कमाई के अच्छे अवसर हैं। इस प्रोजेक्ट के लिए रूटों को बड़े शहरों जैसे पटना, सिकदंराबाद, बेंगलुरू, जयपुर, प्रयागराज, हावड़ा, चेन्नई, चंडीगढ़, दिल्ली और मुंबई के लिए दो-दो के आधार पर 12 कलस्टर में बांटा गया है।
कौन सी कंपनियों इन ट्रेनों का संचालन करेंगी?
रेलवे के नियमों के मुताबिक, बीते वित्त वर्ष में 1,126 करोड़ रुपये से लेकर 1,600 करोड़ रुपये की कुल संपदा वाली कंपनियां इनके लिए आवेदन कर सकती हैं। एक कंपनी एक से ज्यादा कलस्टर के लिए भी आवेदन कर सकती है। अभी तक GMR, RK एसोसिएट्स, बॉम्बार्डियर, वेदांता ग्रुप, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स, टीटागढ़ वैगन समेत कई कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी दिखाई है। रेलवे की मानना है कि अभी और कंपनियां भी इस सूची में शामिल होंगी।
कब तक चलने लगेंगी निजी ट्रेनें?
माना जा रहा है कि 12 निजी ट्रेनों का पहला सेट 2022-23, 45 ट्रेनों का दूसरा सेट 2023-24, 50 ट्रेनों का तीसरा सेट 2025-26 और बची हुई 44 ट्रेनों का आखिरी सेट 2026-27 से संचालित होने लगेगा।
जब रेलवे को घाटा हो रहा है तो कंपनियों को फायदा कैसे होगा?
रेलवे की आंतरिक अध्ययनों से पता चलता है कि यह कंपनियों के लिए फायदे का सौदा रह सकता है। दरअसल, निजी कंपनियां अपनी मर्जी से किराया तय कर सकेंगी। साथ ही वो किराये के अलावा दूसरी चीजों से भी कमाई की संभावनाएं तलाश सकती हैं। इनके अलावा भारतीय रेलवे की तुलना में इन ट्रेनों का किराया ज्यादा होगा। हालांकि, फिर भी कुछ जानकारों का कहना है कि यह जोखिम भरा काम है और कंपनियों को इस पर विचार करना चाहिए।
निजी ट्रेनों में यात्रियों को क्या सुविधाएं मिलेंगी?
निजी कंपनियों की ट्रेनों को भारतीय रेलवे की तुलना में उन्नत होना होगा और उन्हें 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ना होगा। भारतीय रेलवे की ट्रेनों की रफ्तार इससे कम है। निजी ट्रेनों को सभी सुरक्षा मापदंडों पर खरा उतरना होगा। हर ट्रेन में 16 डिब्बे लगे होंगे। संचालन शुरू होने से पहले उनका ट्रायल किया जाएगा। इसके अलावा सेवाओं और टिकटों के दाम निर्धारण में निजी कंपनियों को पूरी छूट होगी।
रेलवे को इससे क्या फायदा होगा?
जो कंपनी अपने राजस्व में से सबसे ज्यादा हिस्सा रेलवे को देने को तैयार होगी, उसे ही ट्रेनों के संचालन की अनुमति दी जाएगी। इसके अलावा रेलवे को प्रति किलोमीटर के हिसाब से एक्सेस चार्ज भी मिलेगा। इसे अभी तय नहीं किया गया है।
रेलवे निजी कंपनियों को क्या देगा?
बदले में रेलवे निजी ट्रेनों को बिना भेदभाव वाली एक्सेस देने को बाध्य होगा। इसका मतलब यह है कि रेलवे अपनी और निजी ट्रेनों में किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगा और एक के बदले दूसरी को प्राथमिकता नहीं देगा। इसके अलावा इसे अपने पूरे सिस्टम को इंफ्रास्ट्रक्चर को बिल्कुल तैयार रखना होगा। अगर निजी ट्रेनें इसमें किसी खामी के कारण तय मानकों पर खरा नहीं उतर पाएंगी तो रेलवे को उसका भुगतान करना पड़ेगा।
मरम्मत सुविधा लगाने के लिए जमीन देगा रेलवे
समझौते के तहत रेलवे निजी कंपनियों को मरम्मत सुविधाएं लगाने के लिए जमीन देगा। इसके अलावा वह ट्रेनों की साफ-सफाई के लिए अपनी वाशिंग लाइन इस्तेमाल करने देगा। 35 साल पूरे होने के बाद वो सभी सुविधाएं रेलवे के तहत आ जाएंगी।
क्या यह रेलवे का निजीकरण है?
विपक्ष और रेलवे यूनियनों ने इस फैसले का विरोध किया है। इनका कहना है कि यह रेलवे का निजीकरण करने की तरफ बढ़ाया गया कदम है। यूनियनों ने इसे लेकर कई मौकों पर विरोध प्रदर्शन भी किए हैं। दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड के प्रमुख वीके यादव ने इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) बताया है। रेल मंत्री पीयूष गोयल का कहना था कि रेलवे को निजी हाथों में सौंपने का कोई विचार नहीं है। ऐसा नहीं होगा।