
हरियाणा और पंजाब में ही कृषि विधेयकों का इतना जोरदार विरोध क्यों हो रहा है?
क्या है खबर?
शुक्रवार को हरियाणा और पंजाब के किसानों ने कृषि विधेयकों को लेकर सड़कों और रेल की पटरियों पर विरोध प्रदर्शन किया।
किसानों की मांग है कि सरकार नए कानून बनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व्यवस्था खत्म करना चाहती है।
यूं तो देशभर के किसान इन विधेयकों के विरोध में सड़कों पर उतरे थे, लेकिन हरियाणा और पंजाब ऐसे राज्य रहे, जहां ये विरोध ज्यादा मुखर है।
आइये, जानते हैं कि यहां ज्यादा विरोध क्यों हो रहा है।
पृष्ठभूमि
क्या है विधेयकों का मामला?
मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक लेकर आई है।
इनमें से दो संसद से पारित हो चुके हैं।
पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन बिलों का जमकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिए सरकार मंडियों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से छुटकारा पाना चाहती है।
विरोध की वजह
हरियाणा और पंजाब में MSP और सरकारी खरीद की व्यवस्था मजबूत
हरियाणा और पंजाब में विरोध प्रदर्शनों के मुखर रहने की एक वजह यह है कि यहां सरकारी खरीद और MSP की व्यवस्था बाकी राज्यों की तुलना में मजबूत है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि MSP की व्यवस्था सभी प्रकार के किसानों के लिए न्यायसंगत और पर्याप्त नहीं है।
सरकार ने 20 से ज्यादा फसलों के लिए MSP घोषित किए हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ गेहूं और चावल की ही बड़े स्तर पर खरीद की जाती है।
कृषि विधेयक
आधे से अधिक किसानों को MSP का अंदाजा ही नहीं
हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब ही ऐसे राज्य हैं, जहां गेहूं के लिए MSP की व्यवस्था मजबूत है।
अगर चावल की बात करें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और हरियाणा के ही किसानों को MSP का फायदा मिलता है। बाकी राज्यों में सरकारी खरीद के इंतजाम कमजोर हैं।
2012-13 में हुए एक सर्वे में पता चला था कि केवल 33.2 प्रतिशत चावल और 39.2 प्रतिशत गेहूं किसानों को ही MSP के बारे में जानकारी है।
राय
विरोध की क्या वजह बताते हैं विशेषज्ञ?
बीबीसी से बात करते हुए कृषि मामलों के जानकार हरवीर सिंह कहते हैं कि कई राज्यों में विरोध मुखर होने की वजह वहां की राजनीति और किसान संगठनों से भी है। किसान आंदोलन के इतिहास को देखें तो इनका केंद्र पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश रहा है।
वो कहते हैं कि जिन राज्यों के किसानों पर इस विधेयक का सीधा असर पड़ रहा है वहीं के किसान अधिक विरोध कर रहे हैं।
बयान
"किसानों से जुड़ी रही हरियाणा और पंजाब की राजनीति"
हरवीर सिंह यह भी कहते हैं कि पंजाब और हरियाणा, दोनों राज्यों की राजनीति किसानों से जुड़ी है और इस कारण वहां पार्टियों के लिए किसानों के पक्ष में खड़ा होना मजबूरी भी हो जाती है।
MSP
हरियाणा और पंजाब से होती है 90 प्रतिशत सरकारी खरीद- शर्मा
वहीं एक और कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं सरकार की कुल खरीद का लगभग 90 फीसदी हिस्सा हरियाणा और पंजाब से होता है, जबकि देश के आधे से ज्यादा किसानों को यह अंदाजा ही नहीं कि MSP क्या है। ऐसे में उन्हें यह समझने में वक्त लगेगा।
वो यह भी कहते हैं कि जिन 6 प्रतिशत किसानों को MSP मिलता है उनकी आय सुनिश्चित हो जाती है। इसलिए वो संकट से बचे किसानों में शामिल हैं।
MSP
MSP क्या है और इसकी शुरुआत कैसे हुई?
सरकार किसान की फसल के लिए एक न्यूनतम मूल्य निर्धारित करती है, जिसे MSP कहा जाता है।
यह एक तरह से सरकार की तरफ से गारंटी होती है कि हर हाल में किसान को उसकी फसल के लिए तय दाम मिलेंगे। 1966-67 में पहली बार गेहूं के लिए MSP का ऐलान किया गया था।
वहीं अगर आप इन तीन विधेयकों के प्रावधान और उनके विरोध की वजहों को विस्तार से समझना चाहते हैं तो यहां टैप कर सकते हैं।