दया याचिका खारिज या स्वीकार करने पर कैसा रहा है भारत के राष्ट्रपतियों का रिकॉर्ड?
क्या है खबर?
निर्भया गैंगरेप के दोषी मुकेश सिंह ने फांसी की सजा से बचने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास दया याचिका दायर की है।
इसके बाद चारों दोषियों को 22 जनवरी को होने वाली फांसी को टाल दिया गया है। अगर राष्ट्रपति उनकी याचिका खारिज करते हैं तो इसके 14 दिन बाद उन्हें फांसी दी जाएगी।
इस बीच दया याचिका संबंधी नियम और विभिन्न राष्ट्रपतियों का इस पर रुख चर्चा में आ गए हैं।
आइए इसके बारे में जानते हैं।
कानून
संविधान के अनुच्छेद 72 में मिला है राष्ट्रपति को सजा कम करने का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को मानवीयता के आधार पर किसी भी अपराधी की सजा माफ करने या कम करने का अधिकार दिया गया है।
राष्ट्रपति इस पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह लेता है, लेकिन अंतिम फैसला पूरी तरह से उसके विवेक निर्भर करता है।
भारत में दया याचिका कानूनी प्रक्रिया की अंतिम सीढ़ी है और अगर राष्ट्रपति किसी दोषी की दया याचिका को खारिज कर देता है तो उसके पास कोई कानूनी विकल्प नहीं बचता।
डाटा
1950 के बाद से अब तक 440 दया याचिकाएं
1950 में देश का संविधान लागू होने के बाद से अब तक देश के सभी राष्ट्रपतियों पर कुल मिलाकर 440 दया याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें से 308 दया याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया।
सबसे अधिक दया याचिका
पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के पास पहुंची सबसे अधिक दया याचिकाएं
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के पास सबसे अधिक 181 दया याचिकाएं पहुंची थीं।
उन्होंने इनमें से 180 दया याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया, वहीं एक दया याचिका को खारिज कर दिया।
उनके बाद अगले तीन राष्ट्रपतियों डॉ सर्वफल्ली राधाकृष्णन (57 याचिकाएं), जाकिर हुसैन (22 याचिकाएं) और वीवी गिरी (तीन याचिकाएं) ने अपना पास आई सभी याचिकाओं में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
सबसे ज्यादा खारिज
आर वेंकटरमण ने खारिज की सबसे अधिक याचिकाएं
वीवी गिरी के बाद राष्ट्रपति बने फकरुद्दीन अली अहमद के पास एक भी दया याचिका नहीं आई। अगले राष्ट्रपति एन संजीव रेड्डी के पास भी कोई दया याचिका नहीं आई।
देश के सबसे चर्चित राष्ट्रपतियों में शामिल रहे जैल सिंह के पास कुल 32 याचिकाएं आईं और उन्होंने इसमें से मात्र दो याचिकाओं को स्वीकार किया और बाकी 30 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
अगले राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने 50 में से 45 याचिकाएं रद्द की जो सबसे अधिक हैं।
सजा के खिलाफ
फांसी की सजा के खिलाफ थे अब्दुल कलाम
वेंकटरमण के बाद ऱाष्ट्रपति बने एसडी शर्मा के पास 18 दया याचिकाएं आईं और उन्होंने इन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।
अगले राष्ट्रपति केआर नारायण के पास एक भी याचिका नहीं आई।
2002 में राष्ट्रपति बने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने कार्यकाल में एक दया याचिका स्वीकार की और एक को खारिज कर दिया।
फांसी की सजा के खिलाफ खुलकर बोल चुके कलाम इसके खिलाफ थे।
रिकॉर्ड
एक-दूसरे के विपरीत रहा प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का रिकॉर्ड
देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के पास कुल 39 याचिकाएं आईं। उन्होंने इसमें से 34 याचिकाओं को स्वीकार करते हुए सजा को कम कर दिया, वहीं पांच याचिकाओं को रद्द कर दिया।
अगले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का रिकॉर्ड बिल्कुल इसके विपरीत रहा। उनके पास कुल 35 दया याचिकाएं आईं और उन्होंने इनमें से मात्र चार में सजा को कम करके उम्रकैद में तब्दील किया। बाकी 31 मामलों में दया याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।
मौजूदा राष्ट्रपति
एक दया याचिका खारिज कर चुके हैं राष्ट्रपति कोविंद
मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास निर्भया गैंगरेप के दोषी मुकेश की दया याचिका से पहले मात्र एक दया याचिका आई है और उन्होंने इसे भी खारिज कर दिया था।
उनके पास बिहार के जगत राय की दया याचिका आई थी जिन्हें भैंस चोरी के मामले में एक परिवार के छह सदस्यों की हत्या करने के लिए फांसी की सजा दी गई थी।
मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्रपति कोविंद मुकेश की दया याचिका को भी खारिज कर सकते हैं।