पहले भी हो चुकी हैं महाराष्ट्र जैसी घटनाएं, जानें कब-कब राजनीति में आए ऐसे दिलचस्प मोड़
क्या है खबर?
रातोंरात बदले महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम ने सबको चौंका कर रख दिया है।
कल शाम तक महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की सरकार बनना लगभग तय नजर आ रहा था, लेकिन आज सुबह सभी राज्य में भाजपा की सरकार बनने की खबर के साथ जागे। पूरे प्रकरण में NCP के अजित पवार अहम खिलाड़ी बनकर उभरे हैं।
वैसे ऐसे घटनाक्रम राजनीति में पहले भी हो चुके हैं। आइए ऐसे ही मामलों के बारे में जानते हैं।
शरद पवार
शरद पवार खुद भी कर चुके हैं ऐसा
सबसे पहले बात NCP प्रमुख शरद पवार की ही करते हैं।
आज शरद पवार के साथ जो उनके भतीजे अजित पवार ने किया है, वैसा ही कुछ कभी उन्होंने कांग्रेस के साथ किया था।
दरअसल, आपातकाल के बाद हुए 1978 विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस के दो धड़ों, कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) ने साथ आकर सरकार बनाई।
तब शरद पवार और उनके गुरू यशवंत राव पाटिल कांग्रेस (यू) में थे।
जानकारी
कांग्रेस (यू) से अलग होकर सबसे युवा मुख्यमंत्री बने शरद पवार
जुलाई 1978 में ही शरद पवार अपने गुरू यशवंत राव के इशारे पर कांग्रेस (यू) से अलग हो गए और जनता पार्टी के साथ मिलकर प्रोगेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनाई। तब वह 38 साल की उम्र में राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे।
हरियाणा
देवीलाल को हटा मुख्यमंत्री बने भजनलाल
आपातकाल के बाद महाराष्ट्र की तरह एक और राज्य में भी ऐसा ही घटनाक्रम देखने को मिला।
हरियाणा में 1979 में चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और भजनलाल इसमें डेयरी मंत्री बने।
लेकिन उन्होंने अपनी ही पार्टी में तख्तापलट कर दिया और देवीलाल को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बन गए। जिस तरीके से ये पूरा घटनाक्रम हुआ, वो भी अपने आप में एक मजेदार किस्सा है।
घटनाक्रम
देवीलाल ने बंदूक की नोक पर बंद किए 42 विधायक
दरअसल, देवीलाल को भजनलाल के इरादों के बारे में पता चल गया था और उन्होंने 42 विधायकों को बंदूक की नोक पर तेजाखेड़ा के अपने घर में बंद कर लिया।
इनमें से एक विधायक निहाल सिंह अपने बेटी की शादी के लिए छुट्टी लेकर अपने गांव आ गए। देवीलाल भी उनके पीछे-पीछे चले आए और जब वहां पहुंचे तो भजनलाल को पहले से वहां मौजूद पाया।
बाद में भजनलाल अन्य विधायकों को भी अपनी तरफ करने में कामयाब रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी
जब एक वोट से गिरी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार
1998 में केंद्र की अटल बिहारी सरकार भी कुछ ऐसे ही घटनाक्रम में एक वोट से गिर गई थी।
दरअसल, NDA में शामिल AIADMK ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।
तब ओडिशा के मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग ने मुख्यमंत्री बनने के बावजूद लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था और वो वोट करने लोकसभा आ गए। उनके एक वोट से अटल बिहारी की सरकार गिर गई।
बिहार
नीतीश ने बिठाया तो मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपक कर बैठ गए जीतनराम मांझी
बिहार में जीतनराम मांझी से जुड़े प्रकरण को कौन भूल सकता है।
2014 लोकसभा चुनाव में JD(U) की करारी हार के बाद संगठन को मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और JD(U) के ही महादलित नेता जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।
लेकिन जल्द ही मांझी अपनी मर्जी चलाने गए और नीतीश को उन्हें जबरदस्ती मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से हटाना पड़ा।
मांझी इसके बाद JD(U) से अलग हो गए।
कर्नाटक संकट
कर्नाटक में भी दोहराई गई वही कहानी
हालिया कर्नाटक संकट को तो कौन ही भूल सकता है।
2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
बीएस येदियुरप्पा ने 17 मई, 2018 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन वो 19 मई को बहुमत साबित नहीं कर पाए।
इसके बाद कांग्रेस-JD(S) ने मिलकर सरकार बनाई। लेकिन इस साल जुलाई में गठबंधन के 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया जिससे सरकार गिर गई और येदियुरप्पा ने फिर से अपनी सरकार बना ली।