चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से की कल्याण सिंह की शिकायत, खुद को बताया था भाजपा कार्यकर्ता
क्या है खबर?
चुनावी माहौल में नेता अक्सर आचार संहिता का उल्लंघन कर देते हैं और चुनाव आयोग इसी पर पैनी नजर बनाए हुए है।
इसी कड़ी में आयोग ने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के एक बयान को आचार संहिता का उल्लंघन माना है और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखकर उनकी शिकायत की है।
कल्याण सिंह ने ऐसा क्या कहा था जिससे चुनाव आयोग नाराज हो गया है, आइए जानते हैं।
बयान
कल्याण सिंह ने कहा था, हम सभी है भाजपा के कार्यकर्ता
दरअसल, पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए कल्याण सिंह ने खुद को भाजपा का कार्यकर्ता बताया था।
उन्होंने कहा था, "हम सभी भाजपा के कार्यकर्ता हैं। हम चाहते हैं कि भाजपा बड़ी जीत हासिल करे। देश के लिए जरूरी है कि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनें।"
बता दें कि कल्याण एक संवैधानिक पद पर हैं और उनका ऐसा बयान आचार संहिता और पद की मर्यादा दोनों के खिलाफ है।
जानकारी
भाजपा के दिग्गज नेता रहे हैं कल्याण सिंह
कल्याण सिंह 2 बार भाजपा की ओर से यूपी के मुख्यमंत्री रहे हैं। वह पहली बार राम मंदिर आंदोलन के समय 1991-92 तक मुख्यमंत्री रहे। दूसरी बार वह 1997-1999 के बीच इस पद पर रहे। अभी वह 4 सितंबर 2014 से राजस्थान के राज्यपाल हैं।
आचार संहिता का उल्लंघन
चुनाव आयोग ने की कार्रवाई की मांग
कल्याण सिंह के इसी बयान को संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने सोमवार को इस मुद्दे पर बैठक की।
बैठक के बाद आयोग ने राष्ट्रपति कोविंद को पत्र लिखकर उनकी शिकायत की।
इस पत्र में कल्याण के बयान को आचार संहिता का उल्लंघन बताया गया है और इसे राज्यपाल के पद की गरिमा के खिलाफ बताया है।
आयोग ने मामले पर राष्ट्रपति से कार्रवाई करने की मांग की है।
दरअसल, राज्यपाल ऐसे किसी एक पार्टा की समर्थन नहीं कर सकता।
मर्यादा के खिलाफ
राज्यपाल होने पर भी भाजपा के आंतरिक मसलों पर बोलते रहे हैं कल्याण
बता दें कि कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री रहे हैं।
इस लोकसभा चुनाव में उनके बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया एटा से भाजपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं।
राज्यपाल होते हुए भी भाजपा का खुलेआम समर्थन करने के अलावा कल्याण बीते दिनों अलीगढ़ से सतीश गौतम को भाजपा का टिकट दिए जाने पर भी विरोध जता चुके हैं।
एक राज्यपाल के नाते उनको किसी पार्टी के मसलों में कुछ कहना उचित नहीं है।