चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच चला आ रहा विवाद क्या है?
केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच फिर से खींचतान शुरू हो गई है। केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ में कार्यरत कर्मचारियों के लिए केंद्र के नियम लागू किए हैं। इसके विरोध में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शुक्रवार को विधानसभा में चंडीगढ़ पर पंजाब का हक जताने के लिए एक प्रस्ताव पारित करा दिया। इसका अब हरियाणा सरकार सहित अन्य दलों ने पुरजोर विरोध शुरू कर दिया है। आएये जानते हैं आखिर क्या है विवाद?
कैसे हुई है ताजा विवाद की शुरुआत?
27 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया था कि 1 अप्रैल, 2022 से चंडीगढ़ के सरकारी कर्मचारियों पर अब केंद्र सरकार के कर्मचारियों के समान नियम लागू होंगे। इसका आम आदमी पार्टी (AAP) समेत पंजाब के तमाम दलों ने विरोध किया था और चंडीगढ़ पर पंजाब का हक कमजोर करने का आरोप लगाया था। AAP का कहना था कि भाजपा पंजाब में उसकी जीत से बौखला गई है। कांग्रेस ने इसे संघवाद पर हमला बताया था।
पंजाब विधानसभा ने पारित किया चंडीगढ़ को वापस उसे सौंपने का प्रस्ताव
इस मामले में 28 मार्च को मुख्यमंत्री मान ने पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ को तत्काल पंजाब को सौंपने का प्रस्ताव रखते हुए उसे पारित करा दिया। प्रस्ताव के नोटिस में मान ने कहा कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत पंजाब को पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में बांटा गया था। तब से भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड जैसे प्रावधानों के जरिए पंजाब और हरियाणा के प्रतिनिधियों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पद देकर साझा इलाकों के प्रशासन चलाया जा रहा था।
पंजाब के प्रस्ताव पर हरियाणा ने दर्ज कराया विरोध
पंजाब सरकार के इस प्रस्ताव का हरियाणा में भाजपा सहित तमाम दलों ने विरोध दर्ज कराया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा, "उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी है। AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल को इसकी निंदा करनी चाहिए या उन्हें हरियाणा के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। पंजाब के मुख्यमंत्री मान को भी हरियाणा के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने जो किया है, वह निंदनीय है।"
इससे जुड़े कई अन्य मुद्दे हैं- खट्टर
मुख्यमंत्री खट्टर ने कहा, "राजीव-लोंगोवाल समझौता 35-36 साल पहले हुआ था, जिसके मुताबिक चंडीगढ़, हरियाणा और पंजाब दोनों की राजधानी है। मैंने कल भी कहा था कि इससे जुड़े कई मुद्दे हैं। यदि वो ऐसा कुछ करना चाहते हैं, तो उन्हें पहले सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) मुद्दे को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।" उन्होंने कहा, "हिंदी भाषी क्षेत्र हरियाणा को नहीं दिए गए, बल्कि वो हरियाणा को हिंदी भाषी क्षेत्र देने को तैयार हैं।"
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रस्ताव को बताया राजनीतिक एजेंडा
हरियाणा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी मुख्यमंत्री खट्टर का समर्थन करते हुए कहा कि पंजाब सरकार का प्रस्ताव AAP का महज एक राजनीतिक एजेंडा है। इसके लिए पानी, क्षेत्र और पूंजी के तीन मुद्दों को हल करने की जरूरत है।
अनिल विज ने AAP को करार दिया 'बच्चा पार्टी'
हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने भी इस मामले में कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, "पंजाब में जो सरकार आई है, वह एक बच्चा पार्टी है। उसे मुद्दों की पूरी जानकारी नहीं है। चंडीगढ़ मुद्दा है, लेकिन वह अकेला मुद्दा नहीं है।" उन्होंने कहा, "चंडीगढ़ के साथ SYL का जल मुद्दा, हिंदी भाषी क्षेत्र का मुद्दा भी है। ऐसे में इन सभी मुद्दों का फैसला किया जाएगा, किसी एक मुद्दे का फैसला नहीं किया जा सकता है।"
पंजाब में पहले भी पारित किए जा चुके हैं ऐसे प्रस्ताव
चंडीगढ़ को पंजाब को देने के संबंध में यह पहला प्रस्ताव नहीं है। इससे पहले 18 मई, 1967 को चंडीगढ़ को पंजाब में शामिल करने की मांग को लेकर आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद ने एक गैर-सरकारी प्रस्ताव पेश किया था। इसी तरह 19 जनवरी, 1970 को चौधरी बलबीर सिंह ने चंडीगढ़, भाखड़ा और अन्य पंजाबी भाषी क्षेत्रों के हस्तांतरण के लिए विधानसभा में बिना किसी चर्चा के ही एक गैर-सरकारी प्रस्ताव पारित कर दिया था।
पंजाब में ये अन्य प्रस्ताव भी किए जा चुके हैं पारित
सुखदेव सिंह ढिल्लो ने 7 सितंबर, 1978 को चंडीगढ़ और अन्य पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में मिलाने का एक गैर-सरकारी प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था। इसी तरह चंडीगढ़ के बदले हिंदी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा में शामिल करने का एक गैर-सरकारी प्रस्ताव 31 अक्टूबर, 1985 को बलदेव सिंह मान पेश किया था। 6 मार्च, 1986 को ओमप्रकाश गुप्ता ने राजीव गांधी-हरचंद सिंह लोंगोवाल समझौते के कार्यान्वयन के लिए गैर-सरकारी प्रस्ताव पेश किया था।
साल 2014 में भी पारित किया गया था प्रस्ताव
इकबाल सिंह झुंडन ने 23 दिसंबर, 2014 को चंडीगढ़ और अन्य पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में शामिल करने के लिए एक गैर-आधिकारिक प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए उसे सर्वसम्मति से पारित कराया था, लेकिन इन पर कभी अमल नहीं हो सका।
चंडीगढ़ कैसे बनी थी राजधानी?
1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय पंजाब का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया था। उस समय पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी। ऐसे में 1952 में चंडीगढ़ शहर बनाकर उसे पंजाब की राजधानी बनाया गया। उसके बाद 1 नवम्बर, 1966 को पंजाब के हिंदी भाषित पूर्वी भाग को अलग कर हरियाणा राज्य बनाया गया था। उसके बाद चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी घोषित करते हुए उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था।
पंजाब सरकार के नियमों के तहत आते हैं चंडीगढ़ के 60 प्रतिशत कर्मचारी
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाने के साथ वहां के 60 प्रतिशत कर्मचारियों पर पंजाब सरकार के नियम लागू किए गए, जबकि 40 प्रतिशत कर्मचारियों को हरियाणा सरकार के आधीन रखा गया था।