क्या है शत्रु संपत्ति अधिनियम, जिसके तहत नीलाम हुई परवेज मुशर्रफ की उत्तर प्रदेश स्थित संपत्ति?
क्या है खबर?
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के परिवार की उत्तर प्रदेश में स्थित पैतृक संपत्ति (जमीन) को सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत नीलाम कर दिया।
गृह मंत्रालय के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक कार्यालय ने बागपत के कोटाना बांगर गांव में स्थित 13 बीघा जमीन को गुरुवार को ऑनलाइन नीलामी के आधार पर 1.38 करोड़ रुपये में नीलाम कर दिया।
बागपत के 3 स्थानीय किसानों ने इस जमीन को खरीदा है। आइए शत्रु संपत्ति अधिनियम के बारे में जानते हैं।
घोषणा
सरकार ने इस जमीन को साल 2010 में घोषित की थी शत्रु संपत्ति
इस नीलामी के बाद मुशर्रफ के रिश्तेदारों के नाम पर पंजीकृत यह संपत्ति अब नए मालिकों को हस्तांतरित की जाएगी, जिससे बागपत में भूमि अभिलेखों से मुशर्रफ के परिवार का नाम प्रभावी रूप से हट जाएगा।
बता दें कि बड़ौत तहसील के कोटाना गांव निवासी नूरू मियां (मुशर्रफ के रिश्तेदार) ने संपत्ति बेच दी थी। 1965 में पाकिस्तान गए नूरू के पास लगभग 13 बीघा जमीन थी, जिसे सरकार ने 2010 में शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया था।
शत्रु संपत्ति
सबसे पहले जानते हैं शत्रु संपत्ति क्या होती है?
1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के बाद भारत से पाकिस्तान में लोगों का पलायन हुआ।
भारत रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत बनाए गए भारत रक्षा नियमों के तहत भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकता लेने वालों की संपत्तियों और कंपनियों को अपने कब्जे में ले लिया और इन्हें शत्रु संपत्ति नाम देकर गृह मंत्रालय के अधीन शत्रु संपत्ति अभिरक्षक को सौंप दिया।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति का भी यही हुआ था।
जानकारी
ताशकंद घोषणापत्र में हुआ था यह समझौता
10 जनवरी, 1966 के ताशकंद घोषणापत्र के एक खंड कहा गया था कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के सिलसिले में किसी भी पक्ष द्वारा ली गई संपत्ति की वापसी पर चर्चा करेंगे। हालांकि, पाकिस्तान ने 1971 में अपने देश में ऐसी सभी संपत्तियों का निपटान कर दिया।
अधिनियम
भारत ने कब लागू हुआ था शत्रु संपत्ति अधिनियम?
भारत सरकार ने 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध के 3 साल बाद यानी 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू किया था।
इस अधिनियम में इस तरह की संपत्तियों के विनियमन या निपटान का प्रावधान किया गया था।
अधिनियम में इस तरह की संपत्तियों को भारत के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक कार्यालय के पास रखने का प्रावधान किया गया था।
इसके तहत केंद्र सरकार वर्तमान में देशभर में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की 12,611 संपत्तियों का स्वामित्व रखती है।
संशोधन
सरकार ने 2017 में किया था शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन
सरकार ने साल 2017 में संसद ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2016 पारित किया, जिसने 1968 अधिनियम और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम, 1971 में संशोधन किया।
इसमें 'शत्रु विषय' और 'शत्रु फर्म' शब्दों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें शत्रु और शत्रु फर्म के कानूनी उत्तराधिकारी और अन्य उत्तराधिकारी को शामिल किया गया था, चाहे वह भारत का नागरिक हो या फिर किसी ऐसे देश का नागरिक हो जो शत्रु नहीं है।
प्रावधान
संधोशन में और क्या किए गए थे प्रावधान?
संशोधित अधिनियम में प्रावधान था है कि शत्रु संपत्ति अभिरक्षक के पास रहेगी, भले ही शत्रु या शत्रु फर्म की मृत्यु, विलुप्ति, व्यवसाय के समापन या राष्ट्रीयता में परिवर्तन के कारण शत्रुता समाप्त हो गई हो, या कानूनी उत्तराधिकारी भारत का नागरिक हो या किसी ऐसे देश का नागरिक हो जो शत्रु नहीं है।
इसी तरह अभिरक्षक सरकार की पूर्व स्वीकृति से अपने अधीन आने वाली किसी भी प्रकार की शत्रु सम्पत्तियों का निपटान भी कर सकता है।
कारण
अधिनियम में संशोधन का क्या था कारण?
संशोधनों का कारण युद्ध के बाद पाकिस्तान और चीन गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों से सुरक्षा प्रदान करना था।
इसका मुख्य उद्देश्य इस संबंध में न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को नकारना था।
विधेयक में कहा गया था कि हाल ही में विभिन्न न्यायालयों की ओर से दिए गए आदेशों से शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत सरकार की शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और उसका कार्य करना मुश्किल हो रहा है।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था अधिनियम के खिलाफ फैसला
उत्तर प्रदेश के महमूदाबाद के पूर्व राजा की हजरतगंज, सीतापुर और नैनीताल में कई संपत्तियां थीं।
बंटवारे के बाद 1957 में राजा ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली। हालांकि, उनकी पत्नी और बेटे भारतीय नागरिक ही रहे।
1968 के अधिनियम के बाद राजा की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया और उनकी मौत के बाद बेटे ने संपत्ति पर दावा पेश किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 21 अक्टूबर, 2005 को बेटे के हक में फैसला सुनाया था।
बचाव
सरकार ने अध्यादेश जारी कर लगाई इस तरह के फैसलों पर रोक
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शत्रु संपत्तियों पर अधिकार के लिए कई याचिकाएं लग गई।
इसको देखते हुए 2 जुलाई, 2010 को तत्कालीन UPA सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर अदालतों को सरकार को शत्रु संपत्तियों को अभिरक्षक से अलग करने का आदेश देने से रोक दिया।
इस प्रकार 2005 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी हो गया और सरकार ने फिर से राजा की संपत्तियों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 2017 में अधिनियम में संशोधन किया गया।