क्या है डाटा संरक्षण विधेयक और सरकार को इसे वापस क्यों लेना पड़ा?
क्या है खबर?
लोगों के निजी डाटा के इस्तेमाल और अवैध प्रसार को रोकने के लिए लाए गए डाटा संरक्षण विधेयक, 2021 को सरकार ने बुधवार को लोकसभा में वापस ले लिया है।
विधेयक को विपक्ष के विरोध के बाद दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास भेजा गया था। समिति ने दिसंबर 2021 में लोकसभा में इसकी रिपोर्ट पेश की थी। उसके बाद इसे वापस लिया गया है।
आइये जानते हैं कि क्या है यह विधेयक और इसे वापस क्यों लेना पड़ा।
सवाल
क्या है डाटा संरक्षण विधेयक?
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डाटा संरक्षण विधेयक को 11 दिसंबर, 2019 को सदन में पेश किया था।
इस विधेयक का उद्देश्य किसी व्यक्ति के निजी डाटा का इस्तेमाल और इसके प्रवाह को सुरक्षा प्रदान करना तथा निजी डाटा को इस्तेमाल करने वाली कंपनी के बीच भरोसा कायम करना था।
यूजर के डाटा को काम में लिए जाने के दौरान उसके अधिकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही इस विधेयक को तैयार किया गया था।
योजना
डाटा संरक्षण विधेयक में क्या बनाई गई थी योजना?
इस विधेयक में लोगों के डाटा के इस्तेमाल के दौरान संस्थागत और तकनीकी सावधानियों के लिए ढांचा तैयार करने, सोशल मीडिया प्रतिनिधि के लिए नियम बनाने, सीमा पार स्थानांतरण, निजी डाटा को काम में लाने वाली संस्थाओं की जवाबदेही, डाटा के गलत और नुकसानदायक इस्तेमाल को रोकने के लिए उचित कदम उठाने की योजना बनाई गई थी।
इसके अलावा यह विधेयक निजी डाटा को व्यक्ति या उससे जुड़ी जानकारी के रूप में परिभाषित करता है।
प्रावधान
विधेयक में क्या किए गए थे प्रावधान?
विधेयक भारत से निकले किसी भी निजी डाटा की बात करता है, जिसका इस्तेमाल सरकार या उसकी एजेंसी, भारतीय कंपनी, नागरिक या भारतीय कानून के तहत तैयार या शामिल किए गए किसी व्यक्ति या समूह द्वारा किया गया हो।
इसमें डाटा के मालिक को 'डाटा प्रिंसिपल्स' और डाटा संग्रह करने वाली संस्था को 'डाटा फिडूसियरी' कहा जाता है।
इसी तरह डाटा फिडूसियरी की तरफ से निजी डाटा को प्रोसेस करने वाली संस्था को 'डाटा प्रोसेसर' कहा जाता है।
जानकारी
विधेयक में डाटा के इस्तेमाल पर क्या थी बाध्यता?
विधेयक में निजी डाटा का इस्तेमाल करने वाली संस्था पर डाटा का प्रोसेस केवल कानून के तहत ही करने और पारदर्शिता तथा जवाबदेही कायम रखने की बाध्यता थी। इसी तरह डाटा संग्रहकर्ता के पास उचित सुरक्षा तरीके इजाद करने की जिम्मेदारी थी।
जुर्माना
विधेयक में किया गया था भारी जुर्माने का प्रावधान
विधेयक में उसके प्रावधानों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान किया गया था। इसके तहत कानून तोड़ने पर 15 करोड़ या कंपनी के वैश्विक टर्नओवर का चार प्रतिशत (इनमें से जो ज्यादा है) जुर्माना लगाया जाना था।
हालांकि, विधेयक में सरकार और उससे जुड़ी सभी सरकारी और निजी एजेंसियों को व्यापक छूट दिए जाने का भी प्रावधान किया गया था।
इसको लेकर ही विपक्ष के सांसदों ने विधेयक पर सवाल खड़ा किया था।
विरोध
विपक्ष ने किया था विधेयक का विरोध
विधेयक का कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और मनीष तिवारी सहित विपक्ष के अधिकतर सांसदों ने विरोध किया था।
उनका कहना था कि सरकार और उसकी संस्थाओं को दी जाने वाली छूट निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
इसी तरह इसके अनुच्छेद 12(A) और 35 पर भी विरोध जताया था।
अनुच्छेद 35 में भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशों के साथ मैत्री संबंध के लिए सरकार और उसकी एजेंसियों को छूट दी गई थी।
समीक्षा
समीक्षा के लिए संयुक्त समिति के पास भेजा गया था विधेयक
विपक्ष के विरोध के बाद इस विधेयक को दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा गया था।
इसके साथ केंद्र सरकार ने विधेयक पर उठाए गए सवालों के समाधान के लिए अपना जवाब भी भेजा था।
समिति ने विधेयक और सरकार के जवाबों की समीक्षा करने के बाद 16 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी।
उसके बाद इस विधेयक पर फिर से नए सिरे से बहस शुरू की गई थी।
वापसी
सरकार ने वापस क्यों लिया विधेयक?
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को इस विधेयक को वापस लेने का प्रस्ताव रखा जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी।
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने सरकारी नोटिस को ट्वीट कर लिखा, 'विधेयक को वापस लेने का निर्णय लिया जा रहा है, क्योंकि संसदीय पैनल की समीक्षा ने 81 संशोधनों का सुझाव दिया है। ऐसे में इसमें एक नए व्यापक कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। सरकार अब इस संबंध में नया विधेयक पेश करेगी।'