क्या है PFI संगठन और क्यों NIA इसके ठिकानों पर कर रही है छापेमारी?
क्या है खबर?
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के तहत गुरुवार सुबह 13 राज्यों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के ठिकानों पर कार्रवाई करते हुए PFI के 106 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है।
इसे PFI के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन माना जा रहा है।
आइये जानते हैं कि आखिर क्या है PFI और NIA इसके ठिकानों पर छापेमारी क्यों कर रही है।
कारण
क्या है PFI संगठन के खिलाफ कार्रवाई का कारण?
NIA और ED ने यह कार्रवाई इंटेलिजेंस ब्यूरो द्वारा की गई गहन जांच और जुटाए गए डाटा की समीक्षा करने के बाद की है।
इसमें PFI पर आतंकी फंडिंग, आतंकी प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने और युवाओं को प्रतिबंधित संगठनों में शामिल करने के लिए कट्टरपंथी बनाने का आरोप लगा है।
खुफिया एजेंसियों ने इस संगठन को पश्चिम एशियाई देशों कतर, कुवैत, तुर्की और सऊदी अरब से अवैध रूप से पैसा मुहैया कराए जाने की भी बात कही है।
प्रतिक्रिया
PFI ने किया कार्रवाई का विरोध
NIA की ओर से कार्रवाई के तहत PFI के प्रदेशाध्यक्ष नजीर पाशा के बेंगलुरू स्थित आवास सहित अन्य ठिकानों की तलाशी भी ली है।
PFI ने कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा, "हम विरोध की आवाज को दबाने के लिए किए जा रहे एजेंसियों का इस्तेमाल को लेकर फासीवादी शासन का कड़ा विरोध करते हैं। एजेंसियों ने उनके राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय नेताओं के घरों के साथ राज्य समिति कार्यालय पर भी छापेमारी की है।"
जानकारी
आखिर क्या है PFI संगठन?
PFI एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है और यह खुद को पिछड़ों व अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला संगठन बताता है।
यह संगठन पहली बार 22 नवंबर, 2006 को केरल में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) के मुख्य संगठन के रूप में अस्तित्व में आया था।
उस दौरान संगठन ने दिल्ली के राम लीला मैदान में नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस आयोजित कर सुर्खियां भी बटोरी थी।
केरल के कालीकट से निकले इस संगठन का मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है।
संबंध
SIMI से भी बताया जाता है PFI का संबंध
साल 2011 में सामने आई खुफिया विभाग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि PFI का स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) से भी संबंध रहा है। SIMI एक प्रतिबंधित मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन है। 1977 में इसका गठन किया गया था।
इसका उद्देश्य पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव को इस्लामिक समाज में बदलना था। सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने को लेकर साल 2002 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था।
जानकारी
अपने सदस्यों का रिकॉर्ड नहीं रखता PFI
PFI राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), विश्व हिंदू परिषद (VHP) और हिंदू जागरण जैसे संगठनों की तर्ज पर मुसलमानों के बीच सामाजिक और इस्लामी धार्मिक कार्य करने में शामिल है। यह अपने सदस्यों का रिकॉर्ड भी नहीं रखता। इससे इन पर कार्रवाई करना मुश्किल होता है।
राजनीति
राजनीति में पकड़ के लिए बनाया SDPI
मुस्लिम, दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों के राजनीतिक मुद्दों को उठाने के उद्देश्य से 2009 में PFI के सदस्यों द्वारा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) नाम का एक राजनीतिक संगठन बनाया गया था।
SDPI का लक्ष्य मुसलमानों, दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों की उन्नति और समान विकास और सभी के बीच उचित रूप से सत्ता साझा करना है।
राजनीतिक कार्यों के लिए PFI इसे जमीनी कार्यकर्ता मुहैया कराता है।
प्रभाव
केरल में कितना रहा है PFI का प्रभाव?
केरल में PFI का खासा प्रभाव रहा है। वहां इस पर हत्या, दंगा, धमकाने और आतंकवादी संगठनों से संबंध के आरोप लगे हैं।
2012 में केरल सरकार ने हाई कोर्ट में PFI को SIMI की शाखा बताया था। 2014 में सरकार ने इस पर 27 हत्या, 86 हत्या के प्रयास और 106 सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया था।
इसी साल मई में केरल हाई कोर्ट ने PFI और SDPI को कट्टरपंथी संगठन करार दिया था।
सफलता
कर्नाटक में राजनीतिक रूप से कितने सफल रहे PFI और SDPI?
PFI और SDPI का प्रभाव मुख्य रूप से कर्नाटक के बड़ी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में है।
SDPI ने दक्षिण कन्नड़ और उडुपी के गांव, कस्बे और नगर परिषदों के स्थानीय चुनावों में जीत भी हासिल की है।
2013 में SDPI ने निकाय चुनावों में 21 नागरिक निर्वाचन क्षेत्रों में सीटें जीती थीं। 2018 में उसकी सीटों की संख्या 121 पहुंच गई और 2021 में इसने उडुपी जिले में तीन स्थानीय परिषदों सीटों पर कब्जा जमा लिया।
मांग
लंबे समय से PFI पर बैन की मांग कर रही है भाजपा
हालांकि, सरकार ने PFI को बैन नहीं किया है, लेकिन भाजपा ने हमेशा इसे इसके मुस्लिम समर्थक रुख के कारण कट्टरपंथी समूह करार देने का प्रयास किया है।
कर्नाटक में भाजपा ने अक्सर PFI पर प्रतिबंध लगाने के लिए उसके सदस्यों द्वारा भाजपा से जुड़े हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं की हत्या करने का आरोप लगाया है।
हालांकि, 2007 से कर्नाटक में PFI के खिलाफ दर्ज किए गए 310 से अधिक मामलों में से महज पांच में ही सजा हुई है।
सहयोग
कांग्रेस ने वापस लिए PFI के खिलाफ दर्ज मामले
कांग्रेस ने कभी भी PFI का खुलकर विरोध नहीं किया है। इसके उलट इकर्नाटक में 2013 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने PFI और SDPI सदस्यों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस ले लिया था।
इस पर भाजपा ने कांग्रेस पर उसके कार्यकाल में हुई सांप्रदायिक हिंसाओं में शामिल होने का आरोप लगाया था।
उस दौरान कांग्रेस सरकार ने 2008-2013 के बीच 1,600 PFI सदस्यों के खिलाफ दर्ज 176 मामलों को वापस लिया था।