उत्तर प्रदेश: जेलर को धमकाने के मामले में मुख्तार अंसारी को 7 साल जेल की सजा
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जेलर को धमकाने और उन पर पिस्तौत तानने के 19 साल पुराने एक मामले में गैंगस्टर और राजनेता मुख्तार अंसारी को दोषी करार देते हुए सात साल जेल की सजा सुनाई है। इसके अलावा कोर्ट ने उन पर कुल 37,000 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना राशि नहीं चुकाने पर उन्हें अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने अंसारी को सीधे बांदा जेल ले गई।
मुख्तार ने तलाशी लेने पर दी थी जेलर को धमकी
साल 2003 में अंसारी के लखनऊ जेल में बंद होने के दौरान कुछ लोग उनसे मिलने आए थे। इस पर तत्कालीन जेलर एसके अवस्थी ने तलाशी के आदेश दिए थे। इससे गुस्सा हुए मुख्तार ने जेलर को जान से मारने की धमकी दी और गाली गलौच करते हुए उन पर पिस्तौल तान दी थी। इसको लेकर जेलर ने आलमबाग थाने में मुख्तार के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने मुख्तार को बरी कर दिया था।
सरकार ने हाई कोर्ट में दी थी आदेश को चुनौती
ट्रायल कोर्ट से बरी किए जाने के बाद सरकार ने आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि, मुख्तार ने अन्य मामलों की तरह इसे भी मैनेज कर लिया था, लेकिन सरकार की प्रभावी पैरवी ने उनके सारे प्रबंधों को ध्वस्त कर दिया। इस मामले में दो साल तक चली सुनवाई के बाद जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने उन्हें दोषी करार देते हुए सात साल जेल की सजा सुनाते हुए 37,000 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया।
मुख्तार को किस धारा में मिली कितनी सजा?
हाई कोर्ट ने मुख्तार को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353 (राजकार्य में बाधा के लिए हमला या आपराधिक बल) के तहत दो साल का कठोर कारावास और 10,000 रुपये जुर्माना, धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत दो साल की जेल और 2,000 रुपये जुर्माना तथा धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत सात साल जेल और 25,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। मुख्तार को ये तीनों सजा एक साथ भुगतनी होगी।
मुख्तार के खिलाफ 10 मामलों में चल रहा है ट्रायल
मुख्तार के खिलाफ प्रयागराज, मध्य प्रदेश और MLA कोर्ट में 10 मुकदमों का ट्रायल चल रहा है। इसके अलावा, उन पर सबसे बड़ा मुकदमा मऊ में ठेकेदार की हत्या का है। इसी तरह वह वाराणसी में अजय राय के भाई के हत्या, नंद किशोर रूंगटा अपहरण और हत्याकांड, विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड, जेल अधीक्षक आरके तिवारी हत्याकांड जैसे गंभीर मामलों में भी आरोपी है। ये हत्याएं साल वर्ष 1978, 1986, 1988, 1990 और 1992 में की गई थी।
कैसा रहा मुख्तार का राजनीतिक सफर?
अपनी आपराधिक छवि साफ करने के लिए मुख्तार 1995 में राजनीति में उतरे और 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ सदर से चुनाव जीत लीया। इसके बाद 2002 और 2007 में निर्दलीय जीतकर वह मुलायम सिंह यादव के करीबी बन गए। साल 2007 में मायावती के सत्ता में आते ही वह बसपा में शामिल हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें मुरली मनोहर जोशी के सामने उतारा था। उस दौरान मायावती ने उन्हें रॉबिनहुड कहा था।
मुख्तार ने 2012 में बनाई थी खुद की पार्टी
2010 में मायावती ने अंसारी बंधुओं से किनारा कर लिया। ऐसे में मुख्तार ने 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले कौमी एकता दल के नाम से अपनी पार्टी बना ली। इसके बाद उन्होंने इसी पार्टी से मऊ सदर सीट से चुनाव भी जीत लिया था।
सरकार ने जब्त की मुख्तार की करोड़ों की संपत्ति
सरकार ने मुख्तार के खिलाफ कार्रवाई कर उनकी 527 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जब्त कर ली है। सरकार ने गैंगस्टर एक्ट के तहत मुख्तार और उसके करीबियों की 247 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की है। इसी तरह अवैध कब्जे से करीब 281 करोड़ की संपत्तियां या तो मुक्त कराई गई हैं या ध्वस्त कर दी गई है। बता दें कि देशभर में मुख्तार पर कुल 59 मामले दर्ज हैं, इसमें से 20 मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं।