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    NewsBytesExplainer: CBI के लिए सामान्य सहमति क्या है और किन राज्यों ने इसे वापस लिया है?
    CBI के लिए सामान्य सहमति को किन राज्यों ने वापस लिया है

    NewsBytesExplainer: CBI के लिए सामान्य सहमति क्या है और किन राज्यों ने इसे वापस लिया है?

    लेखन नवीन
    Jun 15, 2023
    05:54 pm

    क्या है खबर?

    तमिलनाडु ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को जांच के लिए दी सामान्य सहमति को वापस लेने की घोषणा की है।

    तमिलनाडु सरकार ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ऊर्जा मंत्री सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद यह कदम उठाया है।

    2014 के बाद अधिकांश गैर भाजपा शासित राज्य ऐसा कर चुके हैं और पिछले साल तेलंगाना ने भी इसका ऐलान लिया था।

    आइए जानते हैं कि CBI के लिए सामान्य सहमति क्या है और किन राज्यों ने इसे वापस लिया है।

    अधिनियम

    DSPI अधिनियम और राज्य सरकार की सहमति

    दरअसल, CBI का गठन दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (DSPI) अधिनियम, 1946 के तहत हुआ है। इसके तहत जांच एजेंसी को किसी विशेष राज्य में अपराध की जांच करने से पहले राज्य सरकारों की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।

    DSPI अधिनियम की धारा 6 के तहत CBI का अधिकार क्षेत्र नियंत्रित होता है। इसे दिल्ली क्षेत्र से बाहर अपने शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के प्रयोग के लिए राज्य सरकार की सहमति लेना आवश्यक है।

    सामान्य सहमति

    क्या होती है सामान्य सहमति?

    CBI को राज्य सरकारें दो तरह से सहमति देती हैं, एक सामान्य और दूसरी विशिष्ट। सामान्य सहमति, जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि CBI को राज्यों के भीतर निर्बाध रूप से काम करने की अनुमति देता है।

    इसके विपरीत अगर CBI के पास राज्य सरकार की सामान्य सहमति नहीं है तो उसे किसी भी केस या कार्रवाई के पहले राज्य से सहमति के लिए आवेदन करना होगा और सहमति ने दिए जाने पर वह कार्रवाई नहीं कर सकती है।

    जानकारी

    क्या है विशिष्ट सहमति?

    DSPI अधिनियम की धारा 5 में CBI को विशिष्ट क्षेत्र अधिकार दिये गए हैं। CBI किसी राज्य में स्थित केंद्रीय प्रतिष्ठानों या सेवारत कर्मचारियों के खिलाफ बिना राज्य सरकार की अनुमति के कार्रवाई कर सकती है। हालांकि, ये अधिकार अधिक स्पष्ट नहीं है।

    सहमति 

    सहमति लेना क्यों जरूरी है?

    DSPI अधिनियम के तहत CBI के अधिकार क्षेत्र में केवल केंद्र सरकार के विभाग और उनमें कार्यरत कर्मचारी ही आते हैं।

    इसके तहत CBI राज्य सरकार के कर्मचारियों और किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जांच संबंधित सरकार की सहमति के बाद ही कर सकती है।

    अगर किसी राज्य ने सामान्य सहमति वापस ली है तो CBI उस राज्य में बिना सरकार की मंजूरी के नया मामला दर्ज नहीं कर सकती।

    क्या है स्थिति

    कहां से हुई थी सहमति वापस लेने की शुरुआत?

    भारत के सभी राज्यों ने CBI को सामान्य सहमति दी थी, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद 2014 से यह बदलना शुरू हो गया।

    2015 में सबसे पहले मिजोरम ने CBI ले सामान्य सहमति वापस ली थी, जहां उस वक्त कांग्रेस का शासन था। यहां सरकार बदलने के बाद अभी तक इसे बहाल नहीं किया गया है।

    इसके बाद 2018 में तृणमूल कांग्रेस (TMC) शासित पश्चिम बंगाल ने भी सामान्य सहमति वापस ले ली थी।

    सहमति

    यह राज्य भी वापस ले चुके हैं सहमति

    2018 में एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने भी CBI से सहमति वापस ले की घोषणा की थी, जो उस वक्त आंध्र प्रदेश की सत्ता में थी। यहां वाईएस जगन मोहन रेड्डी सरकार के सत्ता में आने के बाद इस निर्णय को पलट दिया।

    2019 में छत्तीसगढ़ ने सहमति वापस ली थी, जबकि पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल और झारखंड ने 2020 में सहमति वापस ले ली थी।

    महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद फैसला पलटा गया है।

    राहत

    इस आदेश से जांच एजेंसी को मिली राहत

    CBI का किसी राज्य द्वारा सामान्य सहमति वापस लेना अनिवार्य रूप से उसे राज्य के भीतर एजेंसी को शक्तिहीन बना देता है, लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट के एक आदेश ने जांच एजेंसी को राहत दी है।

    जुलाई, 2022 में कोर्ट ने CBI द्वारा अवैध कोयला खनन और पशु तस्करी के एक मामले की जांच में अहम फैसला सुनाया था। तब कोर्ट ने कहा कि एजेंसी को किसी अन्य राज्य में केंद्रीय कर्मचारी की जांच करने से नहीं रोका जा सकता।

    लंबित

    अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला

    कलकत्ता हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जहां अभी मामला लंबित है।

    कोर्ट के आदेश के बाद CBI अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अन्य राज्यों में केंद्र के कर्मचारियों की जांच भी तब तक ही कर सकती है, जब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आदेश को रद्द नहीं कर दिया जाता।

    हालांकि, हाई कोर्ट ने स्षष्ट कहा था कि देशभर में भ्रष्टाचार के मामलों को समान रूप से देखा जाना चाहिए।

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