#NewsBytesExplainer: अल नीनो के कारण इस बार कम बारिश की संभावना, जानें ये होता क्या है
भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि इस साल अल नीनो के प्रभाव से मानसून के दौरान बारिश कम होने की आशंका है। मौसम विभाग ने कहा कि जून, जुलाई और अगस्त के मौसम में अल नीनो की 70 फीसदी संभावना है। इस वजह से कृषि समेत अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में प्रभाव पड़ सकता है। समझते हैं अल नीनो और ला नीना क्या होता है और मानसून पर कैसे असर डालता है।
अल नीनो क्या है?
अल नीनो एक तरह की मौसमी घटना है, जिसकी वजह से मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्री सतह का पानी सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जाता है। इसके चलते पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ती हैं और गर्म पानी पूर्व यानी अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर जाने लगता है। साल 1600 में पहली बार इस प्रभाव को देखा गया था।
अल नीनो का क्या असर होता है?
अगर अल नीनो दक्षिण अमेरिका वाले क्षेत्र की तरफ सक्रिय होता है, तो भारत में कम बारिश होती है। इसकी वजह से उत्तरी अमेरिका और कनाडा में भी कम बारिश होती है। वहीं, अमेरिका के गल्फ कोस्ट और दक्षिण पूर्व में ज्यादा बारिश होती है। समुद्र के पानी का तापमान बढ़ने से समुद्री जीवों पर भी इसका नकारात्मक असर होता है और यह जलवायु परिवर्तन के नजरिए से भी खतरनाक होता है।
ला नीना क्या होता है?
ला नीना का असर अल नीनो से ठीक उलटा होता है। इसमें पूर्व से बहने वाली हवा तेज गति से चलने लगती है, जिस वजह से समुद्री सतह का तापमान कम हो जाता है। इससे एशिया की तरफ गर्म पानी पहुंचने लगता है और अमेरिका के पश्चिमी तट पर ठंडा पानी बहने लगता है। आमतौर पर ला नीना के प्रभाव से उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में गर्म हो जाता है।
ला नीना का क्या असर होता है?
ला नीना से अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों में सूखा पड़ने लगता है और कनाडा वाले क्षेत्र में बारिश होने लगती है। इससे इंडोनेशिया से सटे इलाकों में तेज बारिश होती है और इक्वाडोर, पेरू जैसी जगहों पर सूखे जैसे हालात बन जाते हैं। ला नीना की वजह से भारत में तेज ठंड पड़ती है, और सामान्य से अधिक बारिश होती है। इन दोनों ही प्रभावों का असर दुनियाभर की जलवायु पर पड़ता है।
मौसम विभाग ने क्या भविष्यवाणी की है?
मौसम विभाग ने शुक्रवार को कहा कि जून, जुलाई, अगस्त के मौसम में अल नीनो की 70 प्रतिशत संभावना है। वहीं, जुलाई, अगस्त और सितंबर के मौसम में ये बढ़कर 80 प्रतिशत तक हो सकती है।
भारत में कब-कब देखा गया अल नीनो का प्रभाव?
रिपोर्ट के मुताबिक, 2001 से 2020 के बीच देश में 7 बार अल नीनो का प्रभाव देखा गया। इन 7 में से 4 बार (2003, 2005, 2009-10 और 2015-16) में देश में सूखे की स्थिति पैदा हो गई थी। इस दौरान खरीफ की फसलों के उत्पादन में क्रमश: 16 प्रतिशत, 8 प्रतिशत, 10 प्रतिशत और 3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी। इसका असर देशभर में मंहगाई बढ़ने के रूप में सामने आया था।
इससे निपटने के लिए सरकार क्या तैयारी कर रही है?
मौसम विभाग के मुताबिक, राज्य सरकारों को कम बारिश की स्थिति से निपटने के लिए पूर्वानुमान बताए जा रहे हैं। मौसम विभाग सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकने वाले 700 संभावित जिलों को कृषि और मौसम संबंधी सलाहकार सेवाएं देगा।
भारत के लिए क्यों जरूरी मानसून?
भारत में मानसून खेती के साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद अहम है। देश में होने वाली कुल वर्षा का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा मानसून से ही आता है। भारत में होने वाली कुल खेती में करीब 52 प्रतिशत किसान सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर रहते हैं। इससे देश में होने वाले कुल खाद्य उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है। यानी मानसून का सीधा असर महंगाई से लेकर सरकारी नीतियों पर भी पड़ता है।
मौसम विभाग ने मानसून सामान्य रहने की जताई है संभावना
मौसम विभाग ने 11 अप्रैल को कहा था कि इस साल मानसून में सामान्य बारिश होने की संभावना है। मौसम विभाग के मुताबिक, देश में जून से सितंबर तक सक्रिय रहने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान 96 फीसदी बारिश होने की संभावना है। मौसम विभाग मानसून का दूसरा अनुमान मई महीने के आखिर में जारी करेगा। मौसम विभाग के महानिदेशक एम महापात्रा के मुताबिक, बारिश के सामान्य और सामान्य से ज्यादा रहने की 67 प्रतिशत संभावना है।