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    #NewsBytesExplainer: क्या होती है कृत्रिम बारिश, जो दिल्ली में हवा साफ करने के लिए कराई जाएगी?
    दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बारिश कराई जाएगी

    #NewsBytesExplainer: क्या होती है कृत्रिम बारिश, जो दिल्ली में हवा साफ करने के लिए कराई जाएगी?

    लेखन आबिद खान
    Nov 09, 2023
    04:24 pm

    क्या है खबर?

    दिल्ली में लगातार कई दिनों से वायु की गुणवत्ता बेहद खराब बनी हुई है। लोगों को सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन, गले में खराश और सर्दी-जुकाम जैसी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

    अब दिल्ली सरकार ने इससे निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनाई है। खबर है कि 20 और 21 नवंबर को दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है।

    आइए समझते हैं कि ये क्या होती है।

    क्या

    क्या होती है कृत्रिम बारिश?

    आसान भाषा में समझें तो एक होती है सामान्य बारिश, जो आमतौर पर जून से लेकर सितंबर तक होती है। ये बारिश पूरी तरह प्राकृतिक तरीके से होती है।

    इसके उलट जब कृत्रिम परिस्थितियां पैदा कर बारिश करवाई जाती है तो उसे कृत्रिम बारिश कहा जाता है। आमतौर पर इसके लिए अलग-अलग रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है।

    कैसे

    कैसे होती है कृत्रिम बारिश?

    इस प्रक्रिया में विमानों के जरिए बादलों के बीच में रसायनों का छिड़काव किया जाता है। आमतौर पर कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है।

    ये रसायन हवा से पानी के कणों को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं।

    बादल

    नमी वाले बादल का चयन है जरूरी

    इसके बाद सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे रसायनों का बादलों में छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और वे इतने भारी हो जाते हैं कि आसमान में लटके नही रह सकते हैं और बारिश के रूप में बरसने लगते हैं।

    रिपोर्ट्स के अनुसार, रसायनों को छिड़कने के लिए नमी वाले बादलों का चयन किया जाता है और इस दौरान हवा के बहाव की दिशा से भी खासा असर होता है।

    तारीख

    20-21 नवंबर को ही क्यों कराई जाएगी कृत्रिम बारिश?

    जानकारों के मुताबिक, कृत्रिम बारिश तभी कराई जा सकती है, जब बादल या वातावरण में नमी हो।

    दिल्ली के पर्यारवण मंत्री ने कहा, "कृत्रिम बारिश के लिए थोड़े बादल होने जरूरी हैं। हमें पता चला कि दिल्ली में 20 और 21 नवंबर को इस तरह का मौसम रहेगा। ऐसे में इन दिनों में पायलट प्रोजक्ट के लिए हमने IIT कानपुर से प्रस्ताव मांगा है। अगर हमें आज प्रस्ताव मिल जाता है तो कल हम इसे सुप्रीम कोर्ट में पेश करेंगे।"

    पहले

    क्या देश में इससे पहले कराई गई है कृत्रिम बारिश?

    1945 में इस तकनीक को विकसित किया गया था। तब से अब तक करीब 56 देश इसका इस्तेमाल कर चुके हैं।

    भारत में भी कई बार इसका इस्तेमाल हो चुका है। 1951 में टाटा द्वारा पश्चिमी घाटों पर सबसे पहले इस तरह की बारिश करवाई गई थी। इसके बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सूखे से निपटने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा चुका है।

    2008 ओलिंपिक में चीन ने भी कृत्रिम बारिश करवाई थी।

    IIT

    कृत्रिम बारिश को लेकर IIT कानपुर का प्रोजेक्ट क्या है?

    IIT कानपुर ने दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश कराने का प्रोजेक्ट तैयार किया था।

    इसके तहत राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी से बादलों में सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव करने के लिए एक विमान की मांग की गई थी।

    2018 में इस प्रोजेक्ट को गृह मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) से मंजूरी भी मिल गई थी। हालांकि, किन्ही कारणों से ये इस परियोजना पर अमल नहीं हो सकता।

    प्रभाव

    कितनी असरदार तकनीक है कृत्रिम बारिश?

    इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी कई सालों से इस संबंध में प्रयोग कर रहा है। ये प्रयोग 60 से 70 प्रतिशत तक सफल रहे हैं।

    हालांकि, इससे वायु प्रदूषण को कितना काबू किया जा सकता है, इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है और इस पर अध्ययन जारी है। आमतौर पर कृत्रिम बारिश की वजह से प्रदूषण में कमी आती है। चीन भी प्रदूषण कम करने के लिए इसका उपयोग कर चुका है।

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