पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बनाई समिति
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि इस यह समिति सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में अपना काम करेगी। समिति में तीन तकनीकी सदस्य होंगे, जो सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज आरवी रविंद्रन के नेतृत्व में काम करेंगे। यह समिति सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी और अब मामले की अगली सुनवाई आठ हफ्ते बाद होगी।
क्या था पेगासस जासूसी मामला?
जुलाई में सामने आई रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इजरायली कंपनी NSO ग्रुप के स्पाईवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर कई देशों के पत्रकारों, नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और चर्चित हस्तियों की फोन के जरिये जासूसी की गई या इसकी कोशिश की गई। इन लोगों में राहुल गांधी और प्रशांत किशोर समेत विपक्ष के कई नेता, मोदी सरकार के दो मंत्री, कई संवैधानिक अधिकारी और पत्रकार, अनिल अंबानी और CBI के पूर्व प्रमुख आलोक वर्मा समेत कई नाम शामिल थे।
"राष्ट्र सुरक्षा की चिंताएं उठाकर हर बार नहीं बच सकता राज्य"
बार एंड बेंच के अनुसार, बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "राज्य हर बार राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं उठाकर बच नहीं सकता। केंद्र सरकार को यहां अपना स्टैंड साफ करना था और वो कोर्ट को सिर्फ मूकदर्शक बनाकर नहीं छोड़ सकती। केंद्र की तरफ से साफ खंडन नहीं किया गया। ऐसे में हमारे पास याचिकाओं को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसलिए हम एक विशेषज्ञ समिति बना रहे हैं।"
कोर्ट ने कहा- सरकार की तरफ से अस्पष्ट खंडन स्वीकार्य नहीं
बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, "हमने सरकार को नोटिस भेजे थे। सरकार को जानकारी देने के लिए पर्याप्त मौके दिए गए थे, लेकिन उन्होंने सीमित हलफनामे सौंपे, जिनसे कार्रवाई की स्पष्टता पता नहीं चलती। अगर उन्होंने चीजें साफ की होतीं तो हमारा बोझ कम हो जाता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर बार राष्ट्र सुरक्षा के मुद्दे पर राज्य बचकर निकल जाएगा।" कोर्ट ने कहा कि सरकार की तरफ से अस्पष्ट खंडन स्वीकार्य नहीं है।
निजता में दखल पर कोर्ट ने जताई चिंता
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने निजता और टेक्नोलॉजी की महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि टेक्नोलॉजी जीवन को सुधारने के लिए इस्तेमाल हो सकती है, वहीं इसका उपयोग लोगों की निजता में दखल देने के लिए भी हो सकता है। जब निजता की बात आती है तो कुछ निश्चित सीमाएं हैं, लेकिन ये पाबंदियां संवैधानिक होनी चाहिए। कोर्ट ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया समेत 12 याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है।
सच्चाई का पता लगाने के लिए बनाई समिति- सुप्रीम कोर्ट
बुधवार को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेगासस मामले में सच्चाई का पता लगाने के लिए समिति बनाई गई है। निजता के अधिकार के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए। भारतीय नागरिकों की निगरानी में विदेशी एजेंसी का शामिल होना चिंता का विषय है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को इस तरह की टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार की जरूरत है। टेक्नोलॉजी जरूरी है, लेकिन निजता के अधिकार की रक्षा भी महत्वपूर्ण है।
सरकार ने हलफनामा देने से किया था इनकार
इससे पहले सितंबर में हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हलफनामा देने से इनकार कर दिया था। तब केंद्र की तरफ से कहा गया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित को देखते हुए सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर इस्तेमाल किया या नहीं, इसकी जानकारी हलफनामे में नहीं दी जा सकती। दूसरा रास्ता सुझाते हुए केंद्र ने कहा था कि मामले में स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जा सकती है जो पूरे केस की जांच करेगी।