जोशीमठ में भू-धंसाव के पीछे NTPC परियोजना की भूमिका की जांच करेगी उत्तराखंड सरकार
क्या है खबर?
उत्तराखंड सरकार जोशीमठ में भू-धंसाव के पीछे NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन) परियोजना की भूमिका की जांच करेगी।
कैबिनेट की बैठक के बाद उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू ने कहा कि आठ संस्थान जोशीमठ में भू-धंसाव के कारणों का अध्ययन कर रहे हैं। उनकी जांच में NTPC की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना भी शामिल है।
बता दें कि स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि उनके धंसते शहर के पीछे NTPC की भूमिका है।
बयान
रिपोर्ट के आधार पर करेंगे कार्रवाई- संधू
संधू ने कहा, "हम रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे। NTPC की सुरंग का सारा काम अगले आदेश तक रोक दिया गया है।"
उन्होंने आगे बताया कि राज्य सरकार ने प्रभावित परिवारों के लिए कई राहत कदमों का ऐलान किया है। इसमें भोजन भत्ता और छह महीनों तक बिजली और पानी के बिलों की माफी जैसे कदम शामिल हैं।
वहीं राज्य सरकार जोशीमठ की स्थिति के पीछे अभी तक प्राकृतिक वजहों को ही कारण मान रही है।
NTPC
2006 में शुरू हुई थी NTPC की परियोजना
जोशीमठ में भू-धंसाव की पहली घटना 1976 में दर्ज की गई थी। वहीं NTPC की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना 2006 में शुरू हुई थी।
NTPC का कहना है कि उसकी कोई भी सुरंग शहर के नीचे से नहीं जा रही है। उसकी सुरंग जोशीमठ शहर की बाहरी सीमा से एक किलोमीटर दूर है। पहाड़ों के नीचे खुदाई की बात करें तो यह जमीन से एक किलोमीटर नीचे है।
वहीं सुरंग के लिए ब्लास्टिंग की जगह बोरिंग की जा रही है।
जानकारी
मुख्यमंत्री बोले- जोशीमठ आपदा प्राकृतिक संकट
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दो बार यह दोहरा चुके हैं कि जोशीमठ आपदा प्राकृतिक संकट है और इसके पीछे कृत्रिम कारण जिम्मेदार नहीं हैं। पहले उन्होंने जोशीमठ में यह बात कही और शुक्रवार को कैबिनेट बैठक में भी यही बात दोहराई।
बयान
मुख्य सचिव ने दिया रिपोर्ट का हवाला
मुख्य सचिव संधू ने कहा कि उनके पास मौजूद रिपोर्ट में बताया गया है कि जोशीमठ भूस्खलन से पैदा हुए मलबे पर स्थित है और इसके नीचे ठोस चट्टान का आधार नहीं है। इसलिए इस शहर की नींव कमजोर है और जिस मिट्टी पर यह शहर बसा है, वह बहुत सघन नहीं है। इसलिए इसे प्राकृतिक आपदा कहा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि चट्टान पर मौजूद शहरों में ऐसी समस्या देखने को नहीं मिलती।
असहमति
पर्यावरण कार्यकर्ता सरकार से असहमत
सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता सरकार की इस बात से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि इसे प्राकृतिक आपदा बताकर सरकार उन निर्माण कार्यों से ध्यान हटा रही है, जिनके चलते स्थिति खराब हुई है।
पद्मभूषण से सम्मानित पर्यावरण कार्यकर्ता अनिल जोशी ने TOI को बताया कि 1,000 मीटर से ऊंचे निर्माण कार्य को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इसकी मंजूरी देने से पहले इसका पूरा अध्ययन किया जाना चाहिए।
भू-धंसाव
12 दिनों में पांच इंच से ज्यादा धंस चुकी है जोशीमठ की जमीन
12 दिनों में जोशीमठ पांच इंच से ज्यादा धंस चुका है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) ने सैटेलाइट तस्वीरें जारी करते हुए बताया कि 27 दिसंबर, 2022 से लेकर 8 जनवरी, 2023 के बीच जोशीमठ की जमीन 5.4 सेमी धंस चुकी है।
NRSC का कहना है कि जोशीमठ में भू-धंसाव की गति दिसंबर के आखिरी और जनवरी के पहले सप्ताह में बढ़ी है। हालांकि, अब यह रिपोर्ट वापस ले ली गई है।
कारण
जोशीमठ में भू-धंसाव के क्या कारण हैं?
जोशीमठ में भू-धंसाव के असल कारण अभी तक पता नहीं चले हैं, लेकिन माना जा रहा है कि यहां हुए अनियोजित निर्माण कार्य, इलाके में क्षमता से ज्यादा आबादी का आवास, पानी के प्राकृतिक बहाव में बाधा और जलविद्युत परियोजनाओं के चलते ऐसे हालात बने हैं। इसके अलावा जोशीमठ ऐसे इलाके में स्थित हैं, जहां भूकंप आने की आशंका अधिक रहती है। पिछले कई सालों से कई रिपोर्ट्स में सरकारों को ऐसी स्थिति की आशंका से अवगत कराया गया था।