जोशीमठ में भारतीय सेना की इमारतों में भी आईं दरारें, जवानों को किया गया शिफ्ट
क्या है खबर?
भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने गुरुवार को बताया कि उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव के कारण सेना की 20 से अधिक इमारतों में भी दरारें आई हैं।
उन्होंने कहा कि जोशीमठ में तैनात सेना के जवानों को अस्थाई तौर पर दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया गया है।
उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर जवानों को स्थाई तौर पर औली शिफ्ट किया जाएगा।
बता दें कि जोशीमठ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बेहद करीब है।
बयान
सेना की तैयारियों पर कोई असर नहीं- जनरल पांडे
सेना प्रमुख ने कहा कि जोशीमठ में जमीन धंसने का सेना की तैयारियों और सैन्य अभियानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
उन्होंने कहा कि दरारें आने से चीन की सीमा के पास LAC तक जाने वाली सड़क को खास नुकसान नहीं हुआ है और सीमा सड़क संगठन (BRO) के जवान इसकी मरम्मत कर रहे हैं।
जनरल पांडे ने कहा कि सेना ने स्थिति पर नजर बनाई हुई है।
अहमियत
जोशीमठ सेना के लिए क्यों है अहम?
चीन से लगती LAC से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जोशीमठ में सेना का एक बड़ा गैरिसन (सैन्य ठिकाना) है।
LAC के नजदीक होने के कारण यहां सुरक्षा की दृष्टि से सेना और भारतीय-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के करीब 20,000 जवान तैनात रहते हैं।
इसके साथ ही क्षेत्र में तोपखाने और मिसाइल प्रणालियों समेत सेना के आधुनिक उपकरण भी मौजूद हैं।
बता दें कि भारत और चीन के बीच अभी LAC पर तनाव चल रहा है।
दौरा
जोशीमठ जा सकते हैं रक्षा मंत्री
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को लखनऊ में जोशीमठ की स्थिति को लेकर कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्थिति से निपटने के लिए समाधान ढूंढ रहे हैं और केंद्र सरकार भी राज्य सरकार की पूरी मदद कर रही है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि उन्होंने हालात का जायजा लेने के लिए रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट को जोशीमठ भेजा था और जरूरत पड़ने पर वह भी जोशीमठ जा सकते हैं।
कारण
जोशीमठ में क्यों धंस रही है जमीन?
जोशीमठ में भू-धंसाव के असल कारण अभी तक पता नहीं चले हैं, लेकिन माना जा रहा है कि यहां हुए अनियोजित निर्माण कार्य, इलाके में क्षमता से ज्यादा आबादी का आवास, पानी के प्राकृतिक बहाव में बाधा और जलविद्युत परियोजनाओं के चलते ऐसे हालात बने हैं।
इसके अलावा जोशीमठ ऐसे इलाके में स्थित हैं, जहां भूकंप आने की आशंका अधिक रहती है।
पिछले कई सालों से कई रिपोर्ट्स में सरकारों को ऐसी स्थिति की आशंका से अवगत कराया गया था।