USAID से भारत को मिली फंडिंग क्या बांग्लादेश के लिए थी? नई रिपोर्ट पर भिड़े कांग्रेस-भाजपा
क्या है खबर?
भारत में मतदान बढ़ाने के लिए USAID द्वारा की गई 182 करोड़ रुपये की कथित फंडिंग को लेकर नई जानकारी सामने आई है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, ये राशि भारत नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लिए थी। इनमें से 116 करोड़ रुपये राजनीतिक और नागरिक आंदोलन के लिए बांग्लादेश में बांटे भी जा चुके हैं।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।
मामला
क्या है मामला?
एलन मस्क के नेतृत्व वाले अमेरिका के सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने कई देशों को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग पर रोक लगाई थी।
इसमें भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 182 करोड़ रुपये की फंडिंग भी शामिल थी।
इसके अलावा बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने के लिए 251 करोड़ रुपये, नेपाल में राजकोषीय संघवाद और जैव विविधता संरक्षण के लिए 338 करोड़ रुपये की फंडिंग भी रद्द की गई थी।
बांग्लादेश
बांग्लादेश को कैसे भेजी गई राशि?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, USAID ने वॉशिंगटन स्थित समूह कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (CEPPS) के जरिए राशि भेजी थी।
DOGE ने CEPPS द्वारा भेजे गए 182 करोड़ रुपये के जिस भुगतान को चिन्हित किया है, वो बांग्लादेश के 'अमार वोट अमार' कार्यक्रम के लिए स्वीकृत किया गया था। ये राशि जुलाई 2022 में भेजी गई थी।
ढाका में USAID राजनीतिक प्रक्रिया सलाहकार ने 2024 में अमेरिका यात्रा के दौरान इसकी पुष्टि की थी।
कांग्रेस
कांग्रेस बोली- रिपोर्ट भाजपा के झूठ को उजागर करती है
कांग्रेस ने इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए भाजपा पर निशाना साधा है।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने लिखा, 'क्या यह भाजपा का राष्ट्रविरोधी रवैया नहीं है कि वह तथ्यों की जांच किए बिना और यह समझे बिना कि भाजपा सबसे लंबे समय तक विपक्ष में रही है और समय-समय पर सरकार को अस्थिर करने के लिए बाहरी ताकतों से प्रत्यक्ष और अनैतिक मदद लेती रही है, तुरंत विपक्षी दलों पर उंगली उठाना शुरू कर देती है?'
भाजपा
भाजपा ने क्या कहा?
भाजपा ने रिपोर्ट में 182 करोड़ रुपये के वित्तपोषण के संदर्भ को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
भाजपा IT सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, 'रिपोर्ट ने 2012 में एसवाई कुरैशी के नेतृत्व में चुनाव आयोग और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) को दरकिनार कर दिया। रिपोर्ट 2014 से शुरू होकर भारत की चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से विभिन्न श्रेणियों के तहत दिए गए वित्तपोषण पर भी चुप है।'
ट्रंप
डोनाल्ड ट्रंप बोले- ये रिश्वत जैसा
मामले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "मेरा मानना है कि भारत को फंडिंग एक किकबैक स्कीम है। यानी जो पैसा दिया जाता है, उसमें हेरफेर होता है। इसमें किसी को भी नहीं पता कि इसके पीछे क्या चल रहा है।"
इससे पहले ट्रंप ने कहा था, "हमें भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 2.1 करोड़ डॉलर देने की क्या जरूरत है? मुझे लगता है कि वे (बाइडन प्रशासन) किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे।"