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    आज ही के दिन 17 साल पहले हुआ था संसद पर हमला, जानें कब क्या हुआ

    आज ही के दिन 17 साल पहले हुआ था संसद पर हमला, जानें कब क्या हुआ

    लेखन प्रदीप मौर्य
    Dec 13, 2018
    05:31 pm

    क्या है खबर?

    दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत के 'लोकतंत्र के मंदिर' को आज से 17 साल पहले 13 दिसंबर, 2001 को आतंकियों ने लहूलुहान कर दिया था।

    आतंकियों की नापाक मंशा को नाकाम करने के लिए भारतीय जवानों ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी।

    पाँच आतंकियों ने संसद में घुसकर कई लोगों को मार गिराया था। आज हम आपको उस हमले के बारे में विस्तार से बताएंगे।

    संसद भवन

    अंबेसडर कार से संसद भवन परिसर में घुसे थे आतंकी

    देश की राजधानी दिल्ली स्थित संसद भवन पर 13 दिसंबर, 2001 को सुबह लगभग 11 बजकर 40 मिनट पर आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के पाँच आतंकी DL-3CJ-1527 नंबर वाली अंबेसडर कार से संसद भवन परिसर में गेट नंबर 12 की तरफ़ बढ़े।

    कार पर गृह मंत्रालय और संसद का स्टीकर लगा हुआ था, जिस वजह से गाड़ी को प्रवेश मिल गया।

    आतंकियों ने हड़बड़ी में उपराष्ट्रपति की कार में भी टक्कर मार दी थी।

    योजना

    असफल हो गई आतंकियों की योजना

    हमले के समय तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और 100 से ज़्यादा सांसद, संसद भवन में मौजूद थे।

    गृहमंत्री और अन्य नेताओं को संसद भवन में बनी सीक्रेट जगह पर ले जाया गया। आतंकी पूरी तैयारी करके आए थे कि वो सांसदो को बंधक बना सकें, लेकिन उनकी योजना असफल रह गई।

    जानकारी के अनुसार घटना से ठीक पहले लोकसभा और राज्यसभा 40 मिनट के लिए स्थगित की गई थी।

    भारत-पाकिस्तान

    कमर में विस्फोटक बाँध कर आये थे आतंकी

    संसद परिसर में आतंकियों को सबसे पहले CRPF की कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने देखा और तुरंत अलार्म बजा दिया।

    इसके बाद आतंकियों ने कमलेश को गोलियों से छलनी कर दिया। घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई थी।

    सुरक्षाबलों ने एक आतंकी को गोली मारी; लेकिन आतंकी ने कमर में विस्फोटक बाँध रखा था, जिससे उसमें विस्फोट हो गया।

    आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच लगभग 30 मिनट तक चली मुठभेड़ में पाँचों आतंकी मारे गए थे।

    हमला

    हमले ने खोल दी भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र की पोल

    आतंकियों के इस हमले में दिल्ली पुलिस के नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्यम के साथ ही CRPF की महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी शहीद हुई थीं।

    इसके अलावा संसद सुरक्षा के दो सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी आतंकियों का सामना करते हुए शहीद हुए थे।

    इस हमले के पीछे मास्टरमाइंड अफ़ज़ल गुरु का हाथ था। इस हमले ने भारतीय सुरक्षा व्यवस्था और ख़ुफ़िया तंत्र की पोल खोल कर रख दी थी।

    आरोपी

    हमले के चार आरोपी दोषी क़रार

    15 दिसंबर, 2001 को दिल्ली पुलिस ने जैश-ए-मुहम्मद के मुखिया और इस हमले के मास्टरमाइंड अफ़ज़ल को गिरफ़्तार किया।

    अफ़ज़ल के साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एएसआर गिलानी, अफ़शान गुरु एवं शौक़त हसन को गिरफ़्तार किया गया।

    पुलिस ने अफ़ज़ल को 29 दिसंबर, 2001 को 10 दिनों की पुलिस रिमांड पर भेजा। 4 जून, 2002 को चारों आरोपियों के कृत्यों को देखते हुए उन्हें दोषी क़रार दिया गया।

    अब्दुल कलाम

    बरक़रार रखी गई अफ़ज़ल की फाँसी की सज़ा

    18 दिसम्बर, 2002 को अफ़ज़ल, गिलानी, और शौक़त को फाँसी की सज़ा दी गई, जबकि अफ़शान को रिहा कर दिया गया।

    4 अगस्त, 2005 को हुई सुनवाई में अफ़ज़ल की फाँसी की सज़ा को बरक़रार रखा गया और शौक़त की फाँसी की सज़ा को 10 साल की क़ैद की सज़ा में बदल दिया गया।

    3 अक्टूबर, 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने अफ़ज़ल की बीबी तबस्सुम ने दया याचिका दायर की।

    जानकारी

    अफ़ज़ल को तिहाड़ जेल में लटकाया गया फाँसी पर

    12 जनवरी, 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका ख़ारिज कर दी। वहीं 23 जनवरी, 2013 को राष्ट्रपति ने भी अफ़ज़ल की दया याचिका को ख़ारिज कर दिया। 9 फ़रवरी, 2013 को अफ़ज़ल को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फाँसी पर लटकाया गया।

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