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    अयोध्या फैसला: इन तीन चेहरों ने दी थी राम मंदिर आंदोलन को धार

    अयोध्या फैसला: इन तीन चेहरों ने दी थी राम मंदिर आंदोलन को धार

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 09, 2019
    04:17 pm

    क्या है खबर?

    सालों से चले आ रहे अयोध्या भूमि विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है।

    कोर्ट ने विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर रामलला विराजमान का हक बताया है। वहीं मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है।

    इस सब के बीच आइये जानते हैं कि आजादी के बाद स्थानीय स्तर पर जमीन के मुद्दे से शुरू हुए राम मंदिर आंदोलन को धार देने वाले प्रमुख चेहरे कौन हैं।

    परमहंस रामचंद्र दास

    मस्जिद में मूर्ति रखने का दावा करने वाले परमहंस रामचंद्र दास

    इस मामले को बड़ा बनाने में सबसे पहले नाम परमहंस रामचंद्र दास का आता है।

    1913 में बिहार में जन्मे चंद्रेश्वर तिवारी अयोध्या आकर परमहंस रामचंद्र दास बन गए।

    दिसंबर, 1949 में अयोध्या की बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखी गई थीं, तब दास हिंदू महासभा के फैजाबाद प्रमुख थे।

    हालांकि, इस मामले में दर्ज FIR में दास का नाम नहीं था। उन्हें इस मामले से सीधे तौर पर नहीं जोड़ा गया, लेकिन उनका दावा था कि मूर्तियां उन्होंने रखी।

    घटनाक्रम

    मूर्तियां रखने जाने के बाद 'विवादित स्थल' बनी थी जगह

    मस्जिद में मूर्तियां रखने की घटना को इस मामले में बड़ा विवाद माना जाता था। मूर्तियां रखे जाने के बाद इस जगह को 'विवादित स्थल' कहा गया था।

    इसके मुख्य दरवाजे बंद कर दिए गए और मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से रोका गया था। हिंदुओ को उस समय मूर्तियों के दर्शन की इजाजत थी।

    1991 में वाशिंगटन पोस्ट से बात करते हुए दास ने यह बात फिर कही थी कि मूर्तियां रखने के पीछे उनका बड़ा हाथ था।

    जानकारी

    दास के नेतृत्व में बना था राम जन्मभूमि न्यास

    1984 में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर आंदोलन को गति देने के लिए पहली धर्मसंसद का आयोजन किया। दास ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। उनके नेतृत्व में राम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ है। वो अपनी मौत तक इसके प्रमुख रहे।

    अशोक सिंघल

    आंदोलन के लिए अशोक सिंघल ने जुटाया था जनसमर्थन

    अशोक सिंघल को मंदिर निर्माण आंदोलन के लिए जनसमर्थन जुटाने वाले सबसे प्रमुख चेहरे के तौर पर गिना जाता है।

    1926 में उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे सिंघल ने IIT (BHU) से पढ़ाई की थी। 1942 में सिंघल RSS के पूर्ण-कालिक प्रचारक बन गए।

    लगभग 40 साल बाद 1981 में सिंघल VHP के संयुक्त महासचिव बने। तीन साल बाद जब VHP की पहली धर्म संसद हुई तो उसे सफल बनाने में सिंघल की अहम भूमिका थी।

    प्रमुख चेहरा

    आंदोलनों का प्रमुख चेहरा बने रहे सिंघल

    धर्मसंसद की सफलता के बाद सिंघल को VHP का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।

    इस पद पर रहते हुए उन्होंने आंदोलन को नई दिशा देने के लिए कई योजनाएओं बनाई। इससे RSS की हिंदुवादी छवि बढ़ती गई।

    धीरे-धीरे वो संत-सन्यासियों और राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच एक सेतु की तरह काम करने लगे।

    इस दौरान शिलान्यास, कार सेवा और बाबरी मस्जिद विध्वंस आदि घटनाओं में सिंघल प्रमुख चेहरा रहे।

    आरोप

    सिंघल के साथ आरोपी बनाए गए थे आडवाणी और जोशी

    मस्जिद ढ़हाने के आरोप में लिखी गई FIR में सिंघल को मुख्य आरोपी के तौर पर नामित किया गया था।

    उनके साथ-साथ लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरी डालमिया, उमा भारती, गिरिराज किशोर, विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा को भड़ाकऊ भाषण देने के आरोप में नामित किया था।

    मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा के हिंदुवादी एजेंडे में उभार आया और पार्टी ने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। हालांकि, पहली बार यह सत्ता थोड़े समय रही।

    रथ यात्रा

    आडवाणी ने मंदिर के लिए निकाली थी रथ यात्रा

    अशोक सिंघल VHP में रहते हुए राम मंदिर आंदोलन तेज कर रहे थे वहीं लालकृष्ण आडवाणी राजनीतिक चेहरे के तौर पर इस आंदोलन को धार दे रहे थे।

    1990 के दौरान जब यह आंदोलन अपने चरम पर था, उस समय आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकाली थी।

    हालांकि, उन्हें बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया और यह यात्रा कभी अयोध्या नहीं पहुंची। उनके खिलाफ मस्जिद गिराने का मुकदमा अब भी जारी है।

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