मनी लॉन्ड्रिंग कानून: ED को गिरफ्तारी और संपत्ति जब्त करने का अधिकार- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाते हुए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के ज्यादातर कड़े प्रावधानों को वैध करार दिया। कोर्ट ने PMLA के तहत गिरफ्तार, पूछताछ और संपत्ति जब्त करने की प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शक्तियों को भी जायज ठहराया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ED के अधिकारी पुलिसकर्मी नहीं होते, ऐसे में जांच के दौरान उनके द्वारा रिकॉर्ड किए गए बयान को सबूत माना जा सकता है।
किस मामले पर सुनवाई कर रहा था सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट ने PMLA की कुछ धाराओं और इसके तहत गिरफ्तार करने की ED की शक्तियों को चुनौती देने वाली 100 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया। दरअसल, PMLA में गिरफ्तार करने, जमानत देने, सपत्ति जब्त करने जैसी प्रक्रियाओं को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के दायरे से बाहर रखा गया है। याचिककर्ताओं ने कहा था कि चूंकि केंद्रीय एजेंसियां पुलिस के समान हैं, इसलिए उन्हें CrPC का पालन करना चाहिए और ऐसा न करना असंवैधानिक है।
याचिकाओं में इन प्रावधानों पर भी उठाए गए सवाल
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि बिना कारण बताए आरोपी को गिरफ्तार करना असंवैधानिक है। इसके अलावा उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय सूचना रिपोर्ट (ECIR) को FIR के समान ही बताते हुए आरोपियों को इसे प्रदान न करने पर भी सवाल उठाए।
कोर्ट ने ED से संबंधित धाराओं को वैध ठहराया
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इन याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ED को गिरफ्तारी, कुर्की, सर्च और जब्त करने की शक्ति देने वाली PMLA की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 को वैध करार दिया। बेंच ने कहा ED जैसी जांच एजेंसियों के अधिकारी CrPC के तहत काम करने वाले पुलिस अधिकारी नहीं हैं, ऐसे में उनके द्वारा दर्ज किए गए बयान वैध सबूत हैं।
हिरासत में लेने के समय कारण बताना अनिवार्य नहीं- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को हिरासत में लेते समय ED अधिकारियों का इसका कारण बताना अनिवार्य नहीं है और गिरफ्तारी के समय इसका कारण बताना पर्याप्त है। बेंच ने ECIR प्रदान करना भी अनिवार्य नहीं बताया। उसने कहा कि यह एक आंतरिक दस्तावेज है और FIR के समान नहीं है। जमानत की धाराओं पर कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग में जमानत के कठोर 'जुड़वां प्रावधान' मनमाने नहीं हैं, बल्कि कानूनी हैं।
कोर्ट ने 2002 से पहले के मामलों पर PMLA लगाने को भी ठहराया वैध
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में PMLA के अस्तित्व में आने से पहले के मामलों में इसकी धाराएं लगाने को असंवैधानिक करार देने की याचिकाकर्ताओं की मांग को भी खारिज कर दिया। इसका बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक लगातार चलने वाला अपराध है और यह एक अकेला कार्य नहीं बल्कि पूरी कड़ी होती है। उसने कहा कि हो सकता है कि अपराध की शुरूआत 2002 से पहले हुई हो।
मोदी राज में 26 गुना बड़ी मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित छापेमारी
बता दें कि मोदी सरकार के राज में मनी लॉन्ड्रिंग संबंधित ED की छापेमारी में 26 गुना वृद्धि हुई है, लेकिन दोषी पाए जाने की दर में कमी आई है। पिछले आठ साल में ED मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में 3010 छापे मार चुकी है, हालांकि इस दौरान केवल 23 आरोपियों को ही सजा सुनाई गई है। इसके मुकाबले 2004 से 2014 के बीच 112 छापे पड़े थे, लेकिन किसी को भी दोषी करार नहीं दिया गया था।