मुस्लिमों में बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समाज में बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करने के तैयार हो गई है। कोर्ट सर्दियों की छुट्टी के बाद अगले साल मामले पर सुनवाई शुरू करेगा। सोमवार को याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की अपील पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबड़े इसके लिए सहमत हुए। बता दें कि इन दोनों प्रथाओं पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं और इन्हें महिला विरोधी माना जाता है।
भारत में बहुविवाह अपराध, लेकिन मुस्लिमों को है छूट
अगर बहुविवाह यानि एक से अधिक विवाह की बात करें तो भारत में ये कानूनी अपराध है। हालांकि, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट, 1937 के तहत मुस्लिमों को इससे छूट मिली हुई है। इसमें शादी और उत्तराधिकार जैसे निजी मामलों में मुस्लिमों को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने का अधिकार दिया गया है। इसी कारण मुस्लिम अपने धार्मिक रिवाजों के मुताबिक एक से अधिक विवाह कर सकते हैं।
बहुविवाह से भी ज्यादा विवादित है निकाह हलाला की प्रथा
वहीं निकाह हलाला की प्रथा बहुविवाह से भी ज्यादा विवादित है। इस प्रथा के अनुसार, अगर अपनी पत्नी को तलाक देने के बाद कोई मुस्लिम व्यक्ति फिर से उससे शादी करना चाहता है तो उसकी पत्नी को पहले किसी और व्यक्ति से शादी करनी होगी। इसके बाद दूसरा पति महिला को तलाक देगा और उसी के बाद पहला पति उससे शादी कर पाएगा। यानि पति की गलती का "भुगतान" महिला को करना पड़ता है।
लंबे समय से उठते रहे हैं इन प्रथाओं पर सवाल
बहुविवाह और निकाह हलाला तलाक-ए-बिद्दत यानि तत्काल तीन तलाक के साथ मुस्लिम समुदाय से जुड़ी सबसे विवादित प्रथाएं रही हैं। तत्काल तीन तलाक को पहले ही कानूनी अपराध बनाया जा चुका है और अब इन दोनों प्रथाओं के खिलाफ याचिका दायर की गई है।
याचिका में कहा गया, धार्मिक नेता करते हैं अपने प्रभाव का दुरुपयोग
अश्विनी कुमार की याचिका में कहा गया है कि निकाह हलाला और बहुविवाह की प्रथाओं का प्रचार करने वाले इमाम, मौलवी आदि धार्मिक नेता मुस्लिम महिलाओं को दबाने के लिए अपने पद, प्रभाव और शक्ति का घोर दुरुपयोग कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि महिलाओं को संपत्ति की तरह पेश करने वाली ये प्रथाएं संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 के तहत उन्हें प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
'महिलाओं के सम्मान से जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन करती हैं प्रथाएं'
याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं को बराबरी और सम्मान का अधिकर देने में विफलता से उनके सम्मान से जीवन जीने के सबसे बुनियादी मानवाधिकार का उल्लंघन होता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके सामाजिक और आर्थिक अधिकारों पर भी प्रभाव पड़ता है। उपाध्याय ने कहा कि बहुविवाह की प्रथा IPC की धारा 494 का उल्लंघन करती है, जबकि निकाह हलाला IPC की धारा 375 के तहत रेप के बराबर है।
CJI बोबड़े ने पूछा- क्या हजार साल से चल रही हैं ये प्रथाएं?
याचिका को जब CJI बोबड़े के सामने रखा गया तो उन्होंने इन प्रथाओं की प्राचीनता पर सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये हजार साल से जारी हैं। इसके बाद उन्होंने सर्दियों की छुट्टी (19 दिसंबर-5 जनवरी) के बाद इस पर सुनवाई का आदेश दिया।