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    #NewsBytesExplainer: राजस्थान चुनाव में गुर्जर बहुल सीटें कैसे निर्णायक साबित हो सकती हैं?
    सचिन पायलट को गुर्जर समाज के बड़े नेता के तौर पर पहचान मिली हुई है

    #NewsBytesExplainer: राजस्थान चुनाव में गुर्जर बहुल सीटें कैसे निर्णायक साबित हो सकती हैं?

    लेखन महिमा
    Nov 25, 2023
    04:02 pm

    क्या है खबर?

    राजस्थान में चुनावी प्रचार थमने के बाद आज मतदान जारी है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां गुर्जर बहुल सीटों पर विशेष जोर दे रही थी।

    गुर्जर समुदाय का समर्थन राजस्थान में चुनावी समीकरण बदल सकता है। इसे देखते हुए कांग्रेस ने 11 तो भाजपा ने 10 गुर्जर प्रत्याशी उतारे हैं।

    आइए समझते है कि राजस्थान की राजनीति में गुर्जर समुदाय कैसे निर्णयाक साबित हो सकता और कितनी सीटों पर इसका प्रभाव है।

    प्रभाव

    राजस्थान में कितनी है गुर्जरों की संख्या?

    राजस्थान की आबादी में गुर्जर समुदाय की संख्या करीब 70 लाख है और यह कुल मतदाताओं का करीब 7 प्रतिशत है। राजस्थान की कुल 200 सीटों में से 35 विधानसभा सीटें गुर्जर बहुल मानी जाती हैं।

    पूर्वी राजस्थान में गुर्जर बहुल कई सीटें हैं। यहां ढूंढाड़ क्षेत्र के सवाईमाधोपुर-टोंक और दौसा में 4 सीटें गुर्जर बहुल मानी जाती हैं।

    इसके अलावा 10 से अधिक सीटें मेवाड़ क्षेत्र में हैं और यह भाजपा का गढ़ माना जाता है।

    सीट

    राजस्थान की किन सीटों पर है गुर्जरों का प्रभाव?

    गुर्जर राज्य की 30-35 सीटों को प्रभावित कर सकते हैं और इनमें अजमेर, टोंक, करौली, अलवर, धौलपुर, दौसा और सवाई माधोपुर जैसे जिलों की सीटें हैं।

    इन सीटों पर भाजपा 200 और 2013 के चुनावों में आगे रही थी, जबकि पायलट की वजह से कांग्रेस को 2018 में इन सीटों पर लाभ हुआ था। गुर्जर बहुल सीटों में से 8 शहरी इलाकों और बाकी ग्रामीण इलाकों में हैं।

    हालांकि, इन सीटों पर चुनावी रुझान लगभग एक जैसा ही रहा है।

    प्रदर्शन

    अब तक कैसा रहा है कांग्रेस और भाजपा का प्रदर्शन?

    गुर्जर भाजपा के पारंपरिक मतदाता रहे हैं। साल 2008 और 2013 में गुर्जर प्रभाव वाली सीटों पर भाजपा आगे थी। 2013 और 2018 में भाजपा ने मेवाड़ क्षेत्र में 10 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज की थी।

    साल 2013 में ढूंढाड़ क्षेत्र में भाजपा ने अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2018 में उसे हार का सामना पड़ा था।

    साल 2018 में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने की संभावना से कांग्रेस को गुर्जर मतदाताओं का समर्थन मिला।

    पायलट प्रभाव 

    सचिन पायलट का क्या प्रभाव है?

    सचिन पायलट गुर्जर समुदाय के प्रमुख नेता माने जाते हैं। जब कांग्रेस ने उन्हें अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया और उन्हें मुख्यमंत्री बनने की संभावना बनी तो कांग्रेस को इससे कांग्रेस को फायदा हुआ।

    सचिन पायलट के कारण ही साल 2018 में भाजपा का पारंपरिक वोट उससे छिटक कर कांग्रेस के खाते में चला गया और कांग्रेस ने 100 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

    टोंक जिले में गुर्जरों के कारण ही कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की थी।

    नुकसान

    किसे हो सकता है नुकसान?

    मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस द्वारा 2018 में पायलट को मुख्यमंत्री न बनाने और फिर उपमुख्यमंत्री के पद के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटाए जाने से गुर्जरों का बड़ा वर्ग नाराज हो सकता है।

    चुनाव प्रचार के दौरान भी पायलट बनाम गहलोत विवादों को भाजपा ने खूब हवा दी।

    भाजपा ने प्रमुख गुर्जर चेहरा रमेश बिधूड़ी को टोंक निर्वाचन क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंप मतदाताओं को साधने का प्रयास किया, जिसका असर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है।

    गुर्जर मीणा 

    गुर्जर-मीणा मनमुटाव का क्या असर पड़ सकता है?

    गुर्जर और मीणा के बीच का मनमुटाव कांग्रेस और भाजपा के लिए मुसीबत बन सकता है। दोनों की आबादी राज्य में लगभग बराबर है।

    ये दोनों समुदाय किसी एक पार्टी को वोट नहीं देते हैं। अगर गुर्जर भाजपा का समर्थन करते हैं तो मीणा कांग्रेस के पक्ष में रहे हैं।

    भाजपा किरोड़ी मीणा को मैदान में उतारकर मीणाओं को साधने में जुटी है, जिसका सीधा असर गुर्जरों के बीच भाजपा की पहुंच पर पड़ सकता है।

    न्यूजबाइट्स प्लस 

    न्यूजबाइट्स प्लस 

    1993 के बाद से राजस्थान में हर 5 साल में सरकार बदली है।

    1993 में भाजपा के भैरो सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस जीती और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। 2003 में कांग्रेस को हार मिली और भाजपा ने वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाया।

    2008 में भाजपा हार गई और गहलोत फिर मुख्यमंत्री बने।

    2013 में फिर भाजपा जीती, लेकिन 2018 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने।

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