सुप्रीम कोर्ट की राज्यपालों को नसीहत, कहा- विधेयकों को दें मंजूरी, आप जनता के प्रतिनिधि नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के मामले में राज्यपालों की भूमिका पर तल्ख टिप्पणी की है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "राज्यपालों को थोड़ा आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है और उन्हें ये पता होना चाहिए कि वह जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि नहीं है।" पीठ ने कहा, "राज्यपालों को विधानसभा से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले ही कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।"
CJI ने राज्यपालों से पूछा ये बड़ा सवाल
सोमवार को CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ 'पंजाब सरकार बनाम राज्यपाल' मामले की सुनवाई कर रही थी। CJI ने सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता से कहा, "राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट क्यों आना पड़ता है? राज्यपाल तभी विधयकों पर कार्रवाई करते हैं जब मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते हैं, इस प्रवृत्ति को रोकना होगा।" उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति अन्य राज्यों में भी आई है, जहां याचिका दायर होने के बाद ही राज्यपालों ने विधेयकों पर कार्रवाई की है।"
SG मेहता ने मामले में क्या कहा?
पंजाब के राज्यपाल की ओर से पेश हुए SG मेहता ने CJI की पीठ को बताया कि राज्यपाल ने सभी लंबित विधेयकों में से 2 को मंजूरी दे दी है और अन्य पर कार्रवाई जारी है। इस पर CJI ने SG मेहता को निर्देश दिए कि वे पंजाब विधानसभा से पारित विधेयकों पर राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में रिपोर्ट पेश करें। अब मामले पर अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी।
क्या है विधेयकों को मंजूरी न देने का मामला?
पंजाब के राज्यपाल पुरोहित आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के कार्यकाल के दौरान विधानसभा द्वारा पारित 27 विधेयकों में से 22 को अपनी मंजूरी दे चुके हैं। मौजूदा विवाद उन 3 विधेयकों को लेकर है, जिन्हें मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार 20 अक्टूबर को चौथे बजट सत्र के विशेष सत्र के दौरान पेश करने वाली थी। हालांकि, राज्यपाल के मंजूरी न देने के कारण इन्हें पेश नहीं किया जा सका।
राज्यपाल ने क्यों नहीं दी मंजूरी?
राज्यपाल ने 1 नवंबर को इन 3 में से 2 विधेयकों को अपनी मंजूरी दे दी थी। इस दौरान मुख्यमंत्री मान को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि वह विधेयकों को विधानसभा में पेश करने की अनुमति देने से पहले योग्यता के आधार पर उनकी जांच करना चाहते हैं। उनका तर्क था कि धन विधेयक को सदन में पेश करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा उन्होंने विशेष सत्र को अवैध बताया था।
न्यूजबाइट्स प्लस
ये पहला मौका नहीं है जब विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी में देरी को लेकर किसी राज्य सरकार ने राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कई गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव के ऐसे मामले कोर्ट में पहुंचे हैं। हाल में कोर्ट के आदेश पर तेलंगाना के राज्यपाल ने लंबित विधेयकों को मंजूरी दी थी। केरल और तमिलनाडु की सरकारों ने भी राज्यपाल के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की हैं, जो लंबित हैं।