कावेरी जल विवाद: सुप्रीम कोर्ट का तमिलनाडु की याचिका पर अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कावेरी जल विवाद से संबंधित तमिलनाडु की याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, "हमारे पास इस मामले में कोई विशेषज्ञता नहीं है।" मामले में कोर्ट ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) से 8 सितंबर से पहले कर्नाटक सरकार द्वारा छोड़े गए पानी की मात्रा पर एक रिपोर्ट मांगी है। इसके बाद आगे की सुनवाई होगी।
आज सुनवाई के दौरान क्या हुआ?
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि CWMA की बैठक सोमवार को होने वाली है। इस पर जस्टिस गवई की बेंच ने कहा, "हमारे पास इस मामले पर कोई विशेषज्ञता नहीं है। यह उचित होगा कि CWMA अपनी रिपोर्ट सौंपे कि पानी छोड़े जाने के निर्देशों का पालन किया गया है या नहीं।" बता दें कि तमिलनाडु ने कोर्ट में याचिका दायर कर कर्नाटक से प्रतिदिन 24,000 क्यूसेक जल छोड़ने की मांग की है।
कर्नाटक सरकार ने तमिलनाडु की मांग को बताया गलत
कर्नाटक सरकार ने मामले में कोर्ट में एक हलफनामा दायर करते हुए तमिलनाडु सरकार की मांग को गलत बताया है। कर्नाटक सरकार ने कहा कि तमिलनाडु का मानना है कि इस साल सामान्य बारिश हुई, जबकि ऐसा नहीं है। कर्नाटक सरकार ने कहा कि इस साल सामान्य से कम बारिश हुई है और सितंबर में 367.6 करोड़ क्यूबिक फीट (TMC) जल छोड़ना संभव नहीं है और इसे सुनिश्चित करने की तमिलनाडु की मांग का कोई कानूनी आधार नहीं है।
क्या है कावेरी जल विवाद?
कावेरी जल विवाद करीब 150 साल से चला आ रहा है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच यह विवाद सुलझाने के लिए 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) की स्थापना हुई थी। 2007 में CWDT ने जल बंटवारे की व्यवस्था की थी, जिसके तहत तमिलनाडु को 404.25 TMC, कर्नाटक को 284.75 TMC, केरल को 30 TMC, और पुडुचेरी को 7 TMC पानी मिलता है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी जल बंटवारे की इस व्यवस्था को बरकरार रखा।
पानी के बंटवारे को लेकर क्यों होता है विवाद?
कावेरी नदी के जल बंटवारे समझौते के तहत कर्नाटक को सामान्य बारिश होने पर प्रत्येक साल जून से मई तक तमिलनाडु को 177.25 TMC जल साझा करना अनिवार्य है। इसके अलावा जून से सितंबर तक मानसून के महीनों के दौरान 123.14 TMC पानी देना होता है। हालांकि, दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में अक्सर यह जल विवाद उत्पन्न हो जाता है, विशेषकर तब जब राज्यों में सामान्य से कम बारिश होती है।