सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने आज समलैंगिक विवाह पर अपना फैसला सुनाया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने देश में समलैंगिंक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने माना कि समलैंगिकों को विवाह की मंजूरी न देना उनके साथ भेदभाव है और उन्हें विषमलैंगिक जोड़ों के समान अधिकार होने चाहिए। कोर्ट ने इसे सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला बताते हुए केंद्र सरकार को एक समिति बनाने का निर्देश दिया।
CJI ने अपने फैसले में क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(e) में विवाह करने का अधिकार भी शामिल है। उन्होंने कहा कि विवाह करने के अधिकार में अपना पार्टनर चुनने और इस विवाह की पहचान का अधिकार भी शामिल है और ऐसे (समलैंगिक) विवाह को मंजूरी न देना समलैंगिकों के साथ भेदभाव होगा। उन्होंने कहा कि विवाह के आधार पर कई सेवाओं और फायदे मिलते हैं और समलैंगिकों को ये न देना भेदभाव होगा।
समलैंगिक जोड़ों को बच्चों गोद लेने अधिकार पर नहीं बनी सहमति
CJI और जस्टिस एसके कौल ने माना कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार है, लेकिन जस्टिस रवींद्र भट्ट, पीएस नरसिम्हा और हिमा कोहली ने असहमति जताते हुए प्रस्ताव को खारिज कर दिया। हालांकि, संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से समलैंगिक जोड़ों को विवाह की मंजूरी देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम को रद्द करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि ऐसा करने से देश में आजादी से पहले की अराजकता जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
सरकारों को विवाह में समलैंगिकों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए- CJI
अपने फैसले के निष्कर्ष में सरकार के कई तर्कों को खारिज करते हुए CJI ने कहा कि यौन रुझान के आधार पर विवाह करने के अधिकार पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती और केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों को विवाह करने के समलैंगिकों के अधिकार में भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार समलैंगिकों पर समिति बनाए, जिसमें राशन कार्ड, बैंक खाते और पेंशन आदि में परिवार के तौर पर उनका नाम शामिल किया जाए।
समलैंगिकों के साथ भेदभाव खत्म करने के लिए CJI के निर्देश
CJI ने फैसले में केंद्र और राज्य सरकारों को कुछ निर्देश भी दिए। उन्होंने कहा कि सरकारें ये सुनिश्चित करें कि समलैंगिकों के साथ वस्तु और सेवाओं तक पहुंच समेत किसी तरह से भेदभाव न हो, जनता को समलैंगिकों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाया जाए, उनकी मदद के लिए हॉटलाइन बनाई जाए, समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर बनाए जाएं, उन्हें किसी तरह की हार्मोनल थेरेपी या ऑपरेशन से सुरक्षित किया जाए और उनके साथ पुलिस भेदभाव न करे।
जस्टिस एसके कौल ने क्या कहा?
संवैधानिक पीठ में शामिल जस्टिस एसके कौल ने अपने फैसले में कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही समलैंगिक संबंधों को मान्यता मिली हुई है और वे CJI के फैसले से सहमत हैं कि समलैंगिकों के खिलाफ भेदभाव मिटाने के लिए एक कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वे कह चुके हैं कि विशेष विवाह अधिनियन संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
संवैधानिक पीठ के बीच विवाह को मान्यता देने में भी नहीं बनी सहमति
संवैधानिक पीठ के बीच समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर भी सहमति नहीं बनी सकी। CJI ने कहा कि अगर 2 ट्रांसजेंडर शादी की इच्छा रखते हैं और खुद को महिला और पुरुष के तौर पर पेश करते हैं तो उनकी शादी को मान्यता दी जा सकती है। जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने इस विचार से असहमति जताई और कहा कि वह विशेष रूप से अंतरंग संबंधों के मामले को लोकतांत्रिक बनाने के CJI के विचारों से सहमत नहीं हैं।
क्या है मामला?
कुछ साल पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत देश में समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे, लेकिन 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध करार देने वाले धारा 377 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र नहीं किया था, जिसके कारण अभी तक इनकी स्थिति अधर में लटकी हुई थी।