#NewsBytesExplainer: सुप्रीम कोर्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल, क्या हैं इस कदम के मायने?
सुप्रीम कोर्ट में 21 फरवरी को पहली बार लाइव ट्रांसक्रिप्शन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल हुआ। अभी केवल प्रयोग के तौर पर इसकी शुरुआत की गई है। इस मौके पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक या दो दिनों के लिए प्रयोग के लिए लाया गया है, ताकि इसकी कमी को दूर किया जा सके। इस मामले से जुड़े सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
लाइव ट्रांसक्रिप्शन होता क्या है?
लाइव ट्रांसक्रिप्शन यानी किसी भी बातचीत को साथ की साथ लिखित रूप में दर्ज करना। कोर्ट के संदर्भ में समझें तो सुनवाई के दौरान वकीलों, जजों और गवाहों के तर्क और बहस को लिखित रूप में रिकॉर्ड करना ट्रांसक्रिप्शन कहलाता है। कोर्ट की कार्यवाही का रिकॉर्ड वर्तमान में भी रखा जाता है, लेकिन ये काम कर्मचारियों द्वारा मैनुअली किया जाता है। अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए पहली बार इस काम को किया जा रहा है।
किस मामले का लाइव ट्रांसक्रिप्शन किया गया?
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के कमरा नंबर 1 में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ इसी कमरे में मामलों की सुनवाई करते हैं। फिलहाल वे महाराष्ट्र के सियासी संकट पर बनी पांच जजों की संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान CJI की अध्यक्षता वाली पीठ ने नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले में कोर्ट के 2016 के फैसले पर पुनर्विचार करने का फैसला टाल दिया था।
ट्रांसक्रिप्शन के लिए कौन से टूल का इस्तेमाल हो रहा है?
सुप्रीम कोर्ट में लाइव ट्रांसक्रिप्शन के लिए Teres नाम के आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टूल का इस्तेमाल हो रहा है। इसे बेंगलुरू की कंपनी नोमोलॉजी टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ने बनाया है। ये आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) तकनीक का इस्तेमाल कर ट्रांसक्रिप्शन करता है।
AI से ट्रांसक्रिप्शन में क्या समस्याएं आ रहीं?
CJI के अनुसार, अगर एक ही समय पर दो या दो से ज्यादा आवाजें आती हैं तो थोड़ी परेशानी होती है और एक कर्मचारी इन सभी गलतियों को ठीक करता है। उनके अनुसार, अभी केवल AI से ट्रांसक्रिप्शन की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश हो रही है और इसका स्थायी इस्तेमाल बाद में शुरू होगी इससे वकीलों, जजों और लॉ कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को मदद मिलेगी। वे देख सकेंगे कि कोर्ट में बहस कैसे की जाती है।
कितना बड़ा है ये कदम?
इस कदम को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के बाद दूसरे बड़ा फैसला माना जा रहा है। इसका सुझाव सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट की कार्यवाही के लाइव टेलीकास्ट वाली याचिका में दिया था। फैसले को कोर्ट का रिकॉर्ड बनाए करने के लिहाज से भी बड़ा माना जा रहा है। ट्रांसक्रिप्शन को बतौर रिकॉर्ड स्टोर किया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल वकील, जज और छात्र बाद में कभी भी कर सकेंगे।
किन देशों में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है?
दुनियाभर के देशों में कोर्ट की कार्यवाही को ट्रांसक्रिप्ट किया जाता है। हालांकि, इसके लिए अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल होती है। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाहियों का ऑडियो और टेक्स्ट ट्रांसक्रिप्ट किया जाता है। यूनाइटेड किंगडम (UK) में भी केस की अहमियत को देखते हुए कोर्ट की कार्यवाही को ट्रांसक्रिप्ट के रूप में रिकॉर्ड किया जाता है। बाद में कुछ फीस चुकाकर आप इस ट्रांसक्रिप्ट को खरीद सकते हैं।
इस फैसले पर क्या बोले वकील और जज?
मामले की सुनवाई कर रही पीठ के जजों में से एक जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि अब सही मायनों में 'कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड' बनेगा क्योंकि हर शब्द रिकॉर्ड हो रहा है। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि ये कोर्ट के लिए एक बड़ा कदम होगा। उन्होंने इसे अद्भुत बताया। मजाकिया अंदाज में उन्होंने कहा, "कई पीढ़ियों को पता चल जाएगा कि हमने कितने मुर्खतापूर्ण तर्क दिए थे।"