जोशीमठ में सालों से चल रहा है जमीन धंसने का सिलसिला, अब क्या है इसका समाधान?
उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ में जमीन धंसने के कारण मकानों में आई दरार को लेकर सरकार ने 600 परिवारों को तत्काल दूसरी जगह शिफ्ट करने की तैयारी शुरू कर दी है। इस बीच सवाल है कि जमीन धंसने का सिलसिला अभी शुरू हुआ है या फिर सालों से चला आ रहा है। इसको लेकर जियोलॉजी विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति सालों से चली आ रही है और इसके लिए मानवजनित ओर प्राकृतिक दोनों कारण जिम्मेदार है।
क्या है जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला?
चमोली में लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ में जमीन धंस रही है और इसके कारण करीब 600 के अलावा सड़कों में भी दरारें आ गई हैं। इससे इलाके के लोग दहशत में हैं और उन्हें मकान गिरने का डर सता रहा है। इसको देखते हुए शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रभावित 600 परिवारों को दूसरी जगह शिफ्ट करने के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों का जीवन और सुरक्षा उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
मुख्यमंत्री ने दिए एयरलिफ्ट की व्यवस्था सुनिश्चित करने के आदेश
मुख्यमंत्री धामी ने मौके पर तैनात गढ़वाल आयुक्त सुशील कुमार और सचिव आपदा प्रबंधन रंजीत कुमार सिन्हा को पुनर्वास कार्यों में तेजी लाने, चिकित्सा उपचार की सुविधा और लोगों को एयरलिफ्ट करने की भी व्यवस्था भी सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं।
"जोशीमठ में सालों से चली आ रही है यह स्थिति"
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन ने कहा, "जोशीमठ में जमीन धंसने के कारण मकानों और सड़कों में दरारों का दिखना नया मामला नहीं है। यह स्थिति सालों से चली आ रही है।" उन्होंने कहा, "इस पहाड़ी शहर में आज की स्थिति प्राकृतिक और मानवजनित दोनों तरह के कारणों का परिणाम है। यहां की मिट्टी कमजोर है और इसमें ज्यादातर हिस्सा भूस्खलन के बाद एकत्र हुए मलबे का है।"
जोशीमठ में जमीन धंसने के क्या है प्रमुख कारण?
सेन ने कहा, "जोशीमठ की नींव को तीन प्रमुख कारक कमजोर कर रहे हैं। पहला शहर एक सदी से भी पहले भूकंप के बाद हुए भूस्खलन के मलबे पर विकसित है। दूसरा, यह भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले जोन पांच में आता है और तीसरा, पानी का लगातार बहाव चट्टानों को कमजोर करता है।" उन्होंने कहा, "अनियोजित निर्माण, जनसंख्या का दबाव, पर्यटकों की भीड़, पानी के बहाव में बाधा और जल विद्युत परियोजनाएं जैसे मानवजनित कारक भी इसके जिम्मेदार हैं।"
50 साल पहले ही मिल गए थे वर्तमान स्थिति का संकेत
सेन ने कहा कि वर्तमान स्थिति की पहली चेतावनी के संकेत 50 साल पहले एमसी मिश्रा समिति की रिपोर्ट में मिल गए थे। उस रिपोर्ट में क्षेत्र में किए जा रहे अनियोजित विकास के खतरों को उजागर करते हुए प्राकृतिक कमजोरियों की पहचान की थी। उन्होंने कहा कि उसके बाद भी कई अध्ययन किए गए और सभी में एकसमान चिंताएं उजागर की गई थी, लेकिन उन पर ध्यान नहीं दिया गया और शहर का कई गुना विस्तार हो गया है।
पर्यटकों का प्रमुख केंद्र बना हुआ है चमोली
सेन ने कहा कि वर्तमान में जोशीमठ तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और शंकराचार्य मंदिर की ओर जाने वाले पर्यटकों का प्रमुख केंद्र है। ऐसे में अनियोजित और अवैज्ञानिक तरीके बड़े बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है। यह बड़ी समस्या है।
बड़े निर्माण के लिए आदर्श नहीं है जोशीमठ की मिट्टी- डोभाल
ग्लेशियोलॉजिस्ट डीपी डोभाल ने कहा कि यह क्षेत्र कभी ग्लेशियरों से ढंका था। यहां की मिट्टी बड़े निर्माण के लिए आदर्श नहीं है। इसी तरह नियमित भूकंप के झटकों से यहां की ऊपरी मिट्टी अस्थिर हो जाती है। उन्होंने कहा कि राज्य में जोशीमठ ही नहीं, बल्कि 5,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित अन्य कई कस्बे और शहर भी इस समस्या से ग्रसित हैं। ऐसे में आने वाले समय में वहां भी गंभीर स्थिति देखने को मिल सकती है।
स्थिति से निपटने के लिए क्या करना चाहिए?
सेन ने कहा कि पानी निकासी की व्यवस्था न होने से समस्या और बढ़ गई है। अनियमित निर्माण पानी के प्राकृतिक बहाव क्षेत्र के आड़े आता है और इससे पानी को वैकल्पिक मार्ग बनाने पड़ते हैं। उन्होंने इस समस्या से बचने के लिए लंबी अवधि की प्रतिक्रिया योजना में एक विस्तृत माइक्रोजोनेशन योजना शामिल होनी चाहिए। इसमें विभिन्न स्थानों पर खतरे वाली जगहों की पहचान की जाए और वहा खतरे वाली गतिविधियों को सख्ती से बंद करना चाहिए।