#NewsBytesExplainer: राजद्रोह कानून क्या है और विधि आयोग ने इसे बरकरार रखने की सिफारिश क्यों की?
विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A यानि राजद्रोह के कानून को बरकरार रखने की सिफारिश की है। केंद्र सरकार को सौंपी गई अपनी एक रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि राजद्रोह कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है, लेकिन इसके इस्तेमाल के संबंध में अधिक स्पष्टता लाने के लिए कुछ संसोधन किए जा सकते हैं। आइए जानते हैं कि आयोग ने अपने प्रस्ताव में क्या-क्या कहा है और आखिर ये राजद्रोह कानून क्या है?
क्या है राजद्रोह का कानून?
IPC की धारा 124A को राजद्रोह का कानून कहा जाता है। इसके तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के विरोध में कुछ बोलता-लिखता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों और संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है। देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने और प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मामला हो सकता है।
विधि आयोग ने कानून पर क्या-क्या कहा?
धारा 124A पर अपनी सिफारिश में विधि अयोग ने कहा कि भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए राजद्रोह कानून बनाए रखने की जरूरत है क्योंकि देश में आंतरिक सुरक्षा का खतरा मौजूद है। आयोग ने राजद्रोह के कानून में कुछ संशोधन करते हुए सजा बढ़ाए जाने की सिफारिश भी की है। आयोग ने कहा कि राजद्रोह को न्यूनतम 3 से 7 साल तक की जेल के साथ दंडनीय बनाया जाना चाहिए।
विधि आयोग ने क्यों की राजद्रोह कानून को बरकार रखने की सिफारिश?
विधि आयोग ने कहा कि नागरिकों की स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित हो सकती है, जब सरकार की सुरक्षा सुनिश्चित हो और मौजूदा परिवेश में राजद्रोह कानून को बनाए रखने की जरूरत है। आयोग ने कहा कि हालिया समय में सोशल मीडिया ने देश में नफरत फैलाने और सरकार के खिलाफ एजेंडा बनाने में अहम भूमिका निभाई है, जिसमें विदेशी ताकतों की संलिप्तता सामने आई है और इससे निपटने के लिए ये कानून मददगार साबित होगा।
विधि आयोग ने और क्या सुझाव दिए?
विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि IPC की धारा 124A जैसे प्रावधान की अनुपस्थिति में सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने वाली किसी भी अभिव्यक्ति पर विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए। आयोग ने कहा कि IPC की धारा 124A को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, ठीक नहीं है और ऐसा करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने जैसा होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई हुई है राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक
11 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। तत्कालीन मुख्य न्यायधीश (CJI) एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि राजद्रोह कानून के इस्तेमाल को रोक दिया जाए और पुनर्विचार तक इस कानून के तहत कोई नया मामला दर्ज न किया जाए। सरकार ने कोर्ट से राजद्रोह कानून में बदलाव के लिए समय मांगा था और अब विधि आयोग की ये रिपोर्ट आई है।
अंग्रेजों के जमाने का है देशद्रोह का कानून
गुलाम भारत में ब्रिटिश सरकार ने 1870 में राजद्रोह का कानून लागू किया था। इसका इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार का विरोध करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ किया जाता था और सरकार अपने विरोधियों के खिलाफ इस कानून के तहत केस दर्ज करती थी। देशद्रोह या राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। अपराध की प्रवृत्ति के हिसाब से इसमें 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा कानून में जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
क्यों होता है राजद्रोह कानून का विरोध?
जानकारों का कहना है कि संविधान की धारा 19 (1) में पहले से अभिव्यवक्ति की स्वतंत्रता पर सीमित प्रतिबंध लागू हैं, ऐसे में 124A की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। उनका कहना है कि सरकारें इस कानून का उपयोग अपने आलोचकों का दबाने के लिए करती हैं और ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित पाबंदी है। भारत में यह कानून बनाने वाले अंग्रेज भी अपने देश में भी इसे खत्म कर चुके हैं।