कृषि कानून: सुप्रीम कोर्ट का ट्रैक्टर परेड में दखल देने से फिर इनकार
गणतंत्र दिवस पर किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर परेड में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दखल देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह पुलिस को तय करना है कि वह किसे दिल्ली में प्रवेश की इजाजत देती है और किसे रोकती है। इस पर फैसला सुनाना कोर्ट का काम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को भी ऐसी ही टिप्पणी कर चुका था। साथ ही कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को अपनी याचिका वापस लेने को भी कहा।
आउटर रिंग रोड पर निकाली जानी है ट्रैक्टर परेड
दरअसल, कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड बुलाई है। किसान संगठनों ने बताया कि ये परेड दिल्ली को घेरने वाले आउटर रिंग रोड पर निकाली जाएगी। 50 किलोमीटर लंबी यह परेड शांतिपूर्ण होगी और इसमें हजारों ट्रैक्टर हिस्सा लेंगे। इन ट्रैक्टरों पर तिरंगे झंडे लगाए जाएंगे। उन्होंने भरोसा दिया था कि इस ट्रैक्टर परेड के जरिए राजपथ पर होनी वाली गणतंत्र दिवस परेड में व्यवधान नहीं पहुंचाया जाएगा।
परेड पर फैसला देना पुलिस का काम- कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि ट्रैक्टर परेड को लेकर फैसला लेना पुलिस का काम है। कोर्ट इस मामले में कोई आदेश नहीं देगा। एसए बोबड़े ने कहा कि केंद्र सरकार को कानून-व्यवस्था से जुड़े मामलों में फैसले लेने की पूरी शक्तियां हैं और कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा। इस पर फैसला कोर्ट को नहीं बल्कि पुलिस को लेना है। इसके बाद याचिका वापस ले ली गई।
शांतिपूर्ण तरीके से रैली निकालना चाहते हैं किसान- प्रशांत भूषण
किसान संगठनों की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने बेंच को बताया कि किसान केवल बाहरी रिंग रोड पर शांतिपूर्ण तरीके से गणतंत्र दिवस मनाना चाहते हैं। उनका शांति को भंग करने का कोई इरादा नहीं है।
केवल राय देने के लिए है समिति- कोर्ट
वहीं मामले की जमीनी सच्चाई समझने केे लिए बनाई गई समिति पर उठ रहे सवालों पर भी कोर्ट ने निराशा व्यक्त की है। कुछ किसान संगठनों ने एक सदस्य के पीछे हटने के बाद समिति का दोबारा गठन करने की मांग की थी। इस पर सुनवाई करते हुए समिति को कोई शक्ति नहीं दी गई और इसे केवल राय के लिए गठित किया गया है। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
समिति के लोगों के बदनाम न करें- कोर्ट
कोर्ट ने कहा, "हमने समिति को सिर्फ सभी पक्षों की बातें सुनने और रिपोर्ट दायर करने की शक्ति दी थी। इसमें पक्षपात का सवाल कहां से आ गया। लोगों को बदनाम करने की जरूरत नहीं है।"
किसानों और सरकार के बीच 10वें दौर की बातचीत
दूसरी तरफ कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध का हल निकालने के लिए दिल्ली के विज्ञान भवन में 10वें दौर की बैठक चल रही है। पहले यह बैठक 19 जनवरी को होनी थी, लेकिन अपरिहार्य कारणों से इसे 20 जनवरी तक टाल दिया गया था। सरकार तीनों कानूनों में संशोधन की बात कह रही है, लेकिन किसानों का कहना है कि सरकार को तीनों कानून रद्द करने होंगे। उसके बाद ही आंदोलन खत्म होगा।
आंदोलन क्यों कर रहे हैं किसान?
मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लेकर लाई है। इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।