कुणाल कामरा के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाने की अनुमति, जानिये पूरा केस
स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कथित अपमानजनक ट्वीट करने के लिए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कामरा पर अदालत की अवमानना का मामला चलाने की इजाजत दे दी है। वेणुगोपाल ने अपने पत्र में लिखा कि कामरा के ये ट्वीट्स न सिर्फ भद्दें हैं बल्कि हास्य और अदालत की अवमानना के बीच की रेखा को भी पार करते हैं। आइये, पूरा मामला विस्तार से समझते हैं।
क्या है कामरा के ट्वीट का मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में मुंबई की तलोजा जेल में बंद रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्बन गोस्वामी को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए थे। इसके बाद कामरा ने सुप्रीम कोर्ट और जजों को लेकर कुछ ट्वीट्स किए थे। कई लोगों ने इन ट्वीट्स को अपमानजनक मानते हुए उनके खिलाफ अदालत की अवमानना चलाने के लिए अटॉर्नी जनरल से इजाजत की मांग की थी।
कामरा के किन ट्वीट्स पर मचा बवाल?
कामरा ने बुधवार को दो ट्वीट किए थे। इनमें उन्होंने लिखा था, 'बिल्डिंग (सुप्रीम कोर्ट) के प्रति सम्मान बहुत पहले ही जा चुका है। इस देश का सुप्रीम कोर्ट आज देश का सुप्रीम जोक बन चुका है।'
कार्यवाही के लिए AG को मिले थे आठ से ज्यादा पत्र
बताया जा रहा है कि केके वेणुगोपाल को कामरा के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग वाले आठ से ज्यादा पत्र मिले थे। इस कार्यवाही की इजाजत देते हुए अटॉर्नी जनरल ने लिखा, "मुझे लगता है कि आज लोग मानते हैं कि वे देश के सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों की साहसपूर्व निंदा कर सकते हैं और उन्हें लगता है कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।"
पहले भी विवादों में रह चुके हैं कामरा
यह पहली बार नहीं है जब कुणाल कामरा पहली बार विवादों में फंसे हैं। जनवरी में उन पर इंडिगो की मुंबई से लखनऊ की फ्लाइट में अर्नब गोस्वामी के साथ बदसलूकी करने का आरोप लगा था। कामरा ने घटना का एक वीडियो ट्वीट किया था जिसमें वो गोस्वामी से सवाल पूछते हुए नजर आ रहे थे। कामरा गोस्वामी की पत्रकारिता को लेकर सवाल पूछ रहे थे। इसके बाद इंडिगो ने उन पर छह महीने का प्रतिबंध लगा दिया था।
दो तरह की होती है अदालत की अवमानना
अदालत की अवमानना दो तरह की होती है। पहली दीवानी अवमानना (सिविल कंटेप्ट) और दूसरी आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कंटेप्ट) होती है। दीवानी अवमानना अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के सेक्शन 2(बी) और आपराधिक अवमानना सेक्शन 2 (सी) के तहत आती है।
दीवानी अवमानना में क्या आता है?
दीवानी अवमानना में पीड़ित पक्ष अदालत को इस बारे में सूचित करती है। फिर अदालत उस व्यक्ति को नोटिस जारी करती है, जिस पर अदालत के आदेश, निर्देश और डिक्री का पालन कराने की जिम्मेदारी होती है। वहीं अगर कोई व्यक्ति जान-बूझकर अदालत के आदेश का उल्लंघन करता है तो उस पर भी दीवानी अवमानना का मामला चलाया जा सकता है। अवमानना का दोषी पाए जाने पर छह महीने की सजा या 2,000 रुपये का या दोनों हो सकते हैं।
आपराधिक अवमानना का मामला कब बनता है?
वहीं अगर व्यक्ति अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देता है, या उसकी प्रतिष्ठा धूमिल करने, या उसके मान-सम्मान को नीचा दिखाने की कोशिश, या अदालती कार्रवाई में दखल देता, खलल डालता है तो यह अदालत की आपराधिक अवमानना का मामला बनता है। इस इस तरह की हरकत चाहे लिखकर की जाए या बोलकर या फिर अपने हाव-भाव से ऐसा किया जाए ये अदालत की आपराधिक अवमानना में माना जाएगा।