अर्नब गोस्वामी को मिली राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दिए जमानत पर रिहा करने के आदेश
इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार किए गए रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अंतरिम जमानत वाली याचिका सुनवाई करते हुए उन्हें जमानत दे दी है। इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर तत्काल कोई फैसला सुनाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस मामले में हुई गोस्वामी की गिरफ्तारी
इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नायक (53) और उनकी मां कुमुद नायक ने 5 मई, 2018 को अपने फॉर्महाउस में आत्महत्या कर ली थी। वहां मिले सुसाइड नोट में अन्वय ने गोस्वामी, फिरोज और नीतेश पर बकाया 5.40 करोड़ रुपये नहीं चुकाने आरोप लगाते हुए आत्महत्या के लिए मजबूर होना बताया था। मामले में महाराष्ट्र CID ने कार्रवाई करते हुए गत बुधवार सुबह गोस्वामी के घर दबिश देकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले की खूब चर्चा हो रही है।
गोस्वामी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर की थी जमानत याचिका
अलीबाग कोर्ट द्वारा 14 दिन की जेल के आदेश देने के बाद गोस्वामी ने अपने वकील गौरव पारकर के जरिए बॉम्बे हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी। जिस पर शनिवार को हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर तत्काल कोई फैसला सुनाने से इनकार कर दिया था। हालांकि, गोस्वामी को सेशन कोर्ट में याचिका दायर करने की छूट दी गई थी। इस पर सुनवाई के लिए सेशन कोर्ट को चार दिन का समय मिला था।
गोस्वामी ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से जमानत याचिका को खारिज करने के बाद गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे ने याचिका में कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने बंद हो चुके मामले की जांच दुबारा जांच कराने के अधिकार का दुरुपयोग किया है। सरकार गोस्वामी के खिलाफ द्वेषतापूर्वक कार्रवाई कर रही है। उन्होंने जमानत देने के साथ मामले की CBI जांच की भी मांग की।
गोस्वामी ने अपनी गिरफ्तारी को बताया अवैध
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में गोस्वामी ने अपनी गिरफ्तारी को पूरी तरह से अवैध और द्वेषपूर्वक बताया है। उन्होंने कहा कि मामले में उनकी गिरफ्तारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
"...तो हम विनाश की राह पर चल रहे हैं"
गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा, "आप विचारधारा में भिन्न हो सकते हैं, लेकिन संवैधानिक अदालतों को इस तरह की स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी वरना तब हम विनाश के रास्ते पर चल रहे हैं। अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून नहीं बनाते और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं तो कौन करेगा?" कोर्ट ने कहा कि निजी स्वतंत्रता का हनन न्याय पर आघात होगा।
नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अगर राज्य सरकार किसी व्यक्ति को निशाना बनाती है तो उसे पता होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए शीर्ष अदालत है।" सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "हमारा लोकतंत्र लचीला है। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार को इन सब (TV पर अर्नब के तानों) को अनदेखा करना चाहिए। यह चुनाव लड़ने का आधार नहीं है। आप (महाराष्ट्र) सोचते हैं कि वो जो कहते हैं, उससे चुनाव में कोई फर्क पड़ता है?"
हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे से निपट रहे हैं- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र से पूछा, "क्या अर्नब गोस्वामी के मामले में हिरासत में लेकर पूछताछ किए जाने की जरूरत है? यहां हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे से निपट रहे हैं। हो सकता है आप उनकी (अर्णब) विचारधारा को पसंद नहीं करते हों।"
सुप्रीम कोर्ट ने मतभेदों के आधार पर लोगों को निशाना बनाए जाने पर जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों द्वारा विचारधारा, मतभेदों के आधार पर लोगों को निशाना बनाए जाने को लेकर भी चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम लगातार ऐसे मामले देख रहे हैं जहां उच्च न्यायालय लोगों को जमानत नहीं दे रहा और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने में नाकाम रहा है।" सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा "यदि कोई राज्य किसी व्यक्ति को द्वेषतापूर्वक टारगेट करता है, तो हमें एक मजबूत संदेश देने की आवश्यकता है।"