नाबालिग का पीछा करना और उसे 'आजा-आजा' कहना भी है यौन उत्पीड़न- मुंबई कोर्ट
मुंबई के डिंडोशी स्थित सत्र न्यायालय ने नाबालिग लड़की का पीछा करना और उसे लगातार 'आजा-आजा' कहकर पुकारना स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। इसको लेकर न्यायालय ने ऐसे ही एक मामले में 28 वर्षीय युवक को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POSCO) अधिनियम के तहत दोषी मानते हुए पूर्व में भुगती गई सजा के बराबार जेल की सजा सुनाई है। कोर्ट के इस फैसले की अब काफी चर्चा हो रही है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला एक 15 वर्षीय किशोरी का है। सितंबर, 2015 में वह कक्षा 10वीं की छात्रा थी और रोजाना पैदल चलकर फ्रेंच ट्यूशन जाती थी। उसी दौरान आरोपी करीब 20 साल का था और उसने किशोरी का साइकिल से पीछा करना शुरू कर दिया। वह पीछे चलते हुए उसे लगातार 'आजा-आजा' कहकर परेशान कर रहा था। आरोपी का यह सिलसिला कई दिनों तक जारी रहा। ऐसे में किशोरी को मजबूरन ट्यूशन जाना बंद करना पड़ा।
किशोरी ने परिजनों से की मामले की शिकायत
मुंबई पुलिस के अनुसार, किशोरी ने पहले तो रास्ते में मौजूद लोगों से मदद मांगी, लेकिन आरोपी साइकिल से फरार हो गया। इसके बाद उसने पहले ट्यूशन टीचर और फिर अपने परिजनों को मामलो की जानकारी दी। इसके बाद सामने आया कि आरोपी किशोरी के घर के पास स्थित बहुमंजिला इमारतों में रात्रि चौकीदार का काम करता है। इसके बाद किशोरी की मां ने पुलिस थाने पहुंचकर आरोपी की हरकत को लेकर शिकायत दर्ज करा दी।
पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया
पुलिस ने किशोरी की मां की शिकायत के आधार पर दबिश देकर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया। उसके बाद मामले की सुनवाई चलती रही। इस बीच मार्च, 2016 में कोर्ट ने उसे जमानत दे दी, लेकिन उसे इस तरह की किसी भी गतिविधि में शामिल न होने की हिदायत भी दी थी। इसके अलावा उसे हर महीने संबंधित पुलिस थाने में उपस्थित होने के भी आदेश दिए थे।
न्यायालय ने आरोपी को दोषी मानकर सुनाई सजा
इस मामले में गत दिनों अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एजे खान ने सुनवाई करते हुए कहा कि नाबालिग लड़की का पीछा करना और उसे लगातार 'आजा-आजा' कहना स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। ऐसे में आरोपी POSCO अधिनियम के तहत दोषी है। हालांकि, न्यायालय ने आरोपी के रियायत बरतने की मांग करने पर उसे सितंबर, 2015 से मार्च, 2016 के बीच भुगती जेल की सजा के बराबर सजा सुनाकर मामले का निस्तारण कर दिया।