सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका, फर्जी खबरों के लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराने की मांग
डिजीटल युग में सोशल मीडिया संचार का प्रमुख साधन बन गया है। इसके जरिए सूचनाओं को मिनटों में ही लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा दिया जाता है। अब सोशल मीडिया के जरिए फर्जी खबरें और नरफत फैलानी वाली सामग्री भी फैलाई जा रही है। इनमें फेसबुक, टि्वटर, व्हॉट्सऐप और इंस्ताग्राम प्रमुख है। ऐसे में एक अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर फर्जी खबरों के लिए सीधे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को जिम्मेदार ठहराने की मांग की है।
याचिका में की सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने की मांग
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार अधिवक्ता विनीत जिंदल ने इसी सप्ताह की शुरुआत में अधिवक्ता राज किशोर चौधरी के जरिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी। इसमें उन्होंने मांग की थी कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाया जाए तथा फेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम को सीधे नफरत फैलाने वाले भाषणों और फर्जी खबरें फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए। इस बिगड़ी स्थिति पर नियंत्रण होगा।
फर्जी खबर और नफरत फैलाने वाली खबरें चलाने वालों पर हो कड़ी कार्रवाई
याचिकाकर्ता ने कहा कि वर्तमान में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर जमकर फर्जी खबरें और नफरत फैलाने वाले संदेश चलाए जा रहे हैं। इससे माहौल खराब हो रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को सोशल मीडिया पर चलने वाली फर्जी खबरें और भड़काऊ टिप्पणियों को हटाने के लिए एक विशेष तंत्र स्थापित करने और दोषियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए कानून बनाने के आदेश दें। इसके अलावा जांच के लिए एक विशेषज्ञ जांच अधिकारी नियुक्त किया जाए।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर नहीं है कोई प्रतिबंध
याचिकाकर्ता ने कहा कि सोशल मीडिया अकाउंट शुरू करने के लिए एक पंजीकृत ईमेल आईडी की जरूरत होती है। इसके बाद फेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब यूजर्स को वीडियो या पोस्ट अपलोड करने का मंच प्रदान कर देते हैं। यूजर्स अपनी मर्जी से कोई भी सामग्री अपलोड कर देता है और उस पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है। इसी तरह उस सामग्री की जांच के लिए सरकार द्वारा भी कोई नियम नहीं बनाया गया है।
हिंदू देवी के खिलाफ की अभद्र टिप्पणियां
याचिकाकर्ता ने कहा कि गत दिनों ट्विटर हैंडल @ArminNavabi से एक अर्मिन नवाबी नाम के शख्स ने हिंदू देवी को लेकर दो अभद्र टिप्पणियां की थी। उसमें उसने अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। इसके चलते उन्होंने जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में संविधान में दी गई बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लोग इस तरह से ले रहे हैं कि उन्हें सोशल मीडिया पर कुछ भी कहने का अधिकार मिल गया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है निरपेक्ष
याचिकाकर्ता ने कहा कि संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है। इसके तहत विशेष कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह कानून द्वारा प्रदान किए गए कुछ प्रतिबंधों के अधीन हो सकती है। उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के साथ दी गई है। इसके लिए अनुच्छेद 19 (2) के तहत कई तरह की सावधानियां बरतने की बात कही गई है।